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25/05/2011 17:10

बट इण्डियन ष्‍टाइल है.... फकर तो कोई इण्डियन ही जान पडता है..... फेस छुपा रखा है.... लगता है कभी मैंने इसे कहीं देखा है..... इसका फेस सुनील के फोटो से मिलता-जुलता है.... और ये तो साधारण स्तर की गायिका राधिका है.....!... तो इससे यह स्पष्‍ट होता है कि राधिका को गायन क्षेत्र में सफल बनाने का आश्वासन दे सुनील से उसकी फकिंग की... और चुपके-से उसकी ब्लू फिल्म भी बना ली.... यह वीडियो तो सुनील के नाश के लिये पर्याप्त है..... वह राज को फोन लगाता है पर राज उसकी कौल देख सम्पर्क-विच्छेद कर देता है..... हूं.... तो राज अप्रसन्न है मुझसे.... कोई बात नहीं.... मैं स्वयम्‌ ही देखता हूं क्या करना चाहिये.... वह सौफ्ट्वेयर इंजीनियर से इस सम्बन्ध में बात करता है.....इंजीनियर भी यह देख स्पष्‍ट करता है कि यह सुनील ही है....और अब सुनील को निज अपराध स्वीकार के संग-संग राज सर से क्षमाप्रार्थना के लिये विवश करना चाहिये.... इंजीनियर राज से बात करता है.... राज समर को - "सोच-विचार कर कार्य करो.... कहीं इससे सुनील हमारे लिये संकटकारी न बन जाये....."

"सुनील से मुझे इस सम्बन्ध में कोई भय नहीं जान पडता.... वो दब जायेगा...."

"तो ऐसा ही करो..."

समर सुनील को - "हमें एक वीडियो फाइल कहीं से मिली है.... जिसमें तुम गायिका राधिका का रेप कर रहो हो..."

"मैंने उसका कभी रेप नहीं किया है....."

"ओहो.... रेप नहीं किया है....पर पूजा तो की है, न? जो तुमने राधिका देवी की पूजा की है उसके दृश्य हमारे संग हैं...क्या कहते हो.....?"

"तुम...तुम क्या इच्छते हो.....?"

"बहुत कुछ नहीं....केवल इतना ही सा....कि जितने अपराध तुमने राज म्यूजिक के विरुद्‍ध किये हैं उन सबके सम्बन्ध स्पष्‍ट और सार्वजनिक अपराध-स्वीकृति करो...और राज जी से सबके समक्ष क्षमायाचना करो....."

"नहीं तो...?"

"नहीं तो, वो अभी मैं नहीं जानता.... यदि तुम ’न’ बोलो...तो हम रणनीति निश्चित करेंगे कि आगे क्या करना है.... हम तुम्हें छोडेंगे नहीं इतना निश्चित है...और तब तुम नष्ट हो जाओगे यह भी निश्चित जान पडता है...."

"कहां से बोल रहे हो अभी...?"

समर कुछ भी उत्तर नहीं देता है..... कुछ क्षणों तक शान्ति छायी रहती है....तत्पश्चात्‌ कौल डिस्कनेक्ट हो जाता है....समर का मन अशान्त होने लगता है.... उसे लगता है सुनील उसपर आक्रमण करा सकता है....वह इंजीनियर से इस सम्बन्ध में बात करता है.....

"क्या आवश्यकता थी उसे सीधे धमकी देने की....किसी और से कहलवा सकते थे यही बात....वो वीडियो कहीं और शो करवा दे सकते थे..... अब हो गयी गुण्डों मवालियों से दुश्मनी और अशान्ति एवम्‌ भय का आरम्भ...और ये राज सर क्यों अप्रसन्न हैं ...?”

समर सारी बात इंजीनियर को बताता है और उसे बोध कराता है कि वह कोई रौंग व्यक्ति नहीं है...बाइ मिष्टेक ही जो हुआ...वह सभा को बहुत प्यार करता है... सभा उसके जीवन में आयी प्रथम स्त्री है.....इंजीनियर यही बात राज को बताता है...राज - "मैं तो मान लूं....पर सभा जो बहुत क्रुद्‌ध है समर पर....वह तो केवल यह बोली कि समर ने ही उसके एक लाख रुपये चुराये थे.... वह यह भूल गयी कि समर ने उसका उस दिन रेप भी किया था..."तभी सभा राज के कक्ष में प्रवेश करती है -"किसने मेरा रेप किया था...?"

"वो मैं किसी और की बात कर रहा था...."

"यहां कोई और सभा नहीं है.....समर ने मेरा रेप किया और मुझे इसकी जानकारी नहीं...!"

"तुम भूल रही हो....उस दिन चोरी के संग-संग....."

"हां....हां.... मैं समर को एक अच्छा मनुष्य मानती थी....वह इतना गिरा हुआ निकलेगा ऐसा मैंने कभी सोचा भी नहीं था...."

"नहीं....ऐसा नहीं है...समर एक अच्छा ही मनुष्य है... उसने जो भी किया केवल तुम्हारे संग ही किया.... हो सकता है कि उसे ही तुम्हारा पति बनना तुम्हारे भाग्य में लिखा हो.... वह तुम्हें बहुत प्रेम करता है...."

सभा के मन सहसा समर के प्रति प्रेम उमडने लगता है..."अच्छी बात है...कहां है वह, उससे मैं मिलना इच्छती हूं....." तभी रिसेप्शन से फोन आता है कि सभा के परिवारवाले उससे मिलने आये हैं..... सभा रिसेप्शन को जाती है.... वहां खडा एक व्यक्ति बताता है कि सामने के गेष्ट हाउस में वे ठहरे हैं....आइये.....वह उसके संग जाती है..... इधर इंजीनियर लौट अपने कार्यकक्ष में आता है तो समर वहां बैठा इण्टरनेट सर्फ कर रहा है...."समर... अब तुम्हारे ग्रह पुनः तुम्हारे पक्ष में आ रहे लगते हैं....सभा मान गयी है तुमसे विवाह करने को और अभी तुमसे मिलने ही आ रही थी...."

"तो...! क्या हुआ...अब नहीं आ रही है..?"

"रिसेप्शन से फोन आया कि उसके परिवार वाले उससे मिलने आये हैं...अतः वह उधर ही गयी है....."

समर सीसीटीवी से रिसेप्शन का दृश्य देखता है पर वहां न तो सभा दिखी न ही सम्बन्धित कोई व्यक्ति.... वह चिन्तित हो इंजीनियर से कहता है कि वह देखने जा रहा है कि कहां गये सब...!....रिसेप्शन से जानकारी मिली कि वह सामने के गेष्ट हाउस में गयी है.....रिसेप्शन से कुछ आगे बढ उसने सभा को फोन किया पर सभा का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला...इधर जब सभा वहां गेष्ट हाउस के कम्यूनिटी हौल में पहुंची तो अन्दर घुसते ही उस व्यक्ति ने बाहर से द्वार बन्द कर दिया.... अन्दर एक व्यक्ति कुर्सी पर सर पीछे किये बैठा है....

"कौन हो तुम..? और मुझे इस प्रकार से यहां लाने का उद्‍देश्य...?"

"राज की दिन-प्रतिदिन हो रही उन्नति के पीछे तुम हो...यदि तुम न रहो संग उसके तो हमारी कम्पनी बहुत सरलता से राज म्यूजिक को बहुत पीछे छोड दे सकती है....."

"तुम्हारी कम्पनी? क्या करते हो तुम...? क्या है तुम्हारा नाम?"

"जिसपर मेरी दृष्टि टेढी हो जाये.....करा दूं उसकी हाय हाय... नाम है मेरा.....सुनील उपाध्याय....." उसकी चेयर सभा के समक्ष मुडती है...."तुमने मुझे अभिजान लिया होगा....तुम यदि कौण्ट्रैक्ट के अनुसार हमारे संग काम करती  होती तो राज म्यूजिक के स्थान पर सुनील म्यूजिक की धूम मची होती.... पर तुमने हमारे संग विश्वासघात किया.... कोई बात नहीं...हम उसे भूलने को तैयार हैं... यदि तुम अब भी हमारी कम्पनी में आ जाओ....."

"कभी नहीं....मैं राज सर से ऐसा विश्वासघात कभी नहीं कर सकती...."

"अओऽऽऽऽ...राज के संग विश्वासघात विश्वासघात है.....और हमारे संग विश्वासघात क्या कुत्ते की मुंह पर मारी लात है...!!!!!!"

सभा अपने हाव-भाव से दृढ जान पडती है....सुनील क्रुद्‍ध होता है - "अरे ओझा....कहां गया ओझा रे धरती का बोझा.....शीघ्र पान ला....!"

ओझा पान ले अन्दर घुसता है - "का रे उपधिया....चिल्लाता क्यों है....तुम्हारा मैं पीयून हूं का??? फ्रेण्ड्ली वे में ला दिया....ले पकड...."

"अरे....का बोला...उपधिया?????? यहां लोग मुझे कितने सम्मान से गुरुजी गुरुजी कहते हैं....और तुम मुझको उपाध्याय जी भी नहीं, उपधिया कह दिया....दुबारा बोला तो तेरा टिकट कटवा दूंगा...सीधे जौनपुर का....कुछ बात पल्ले पडी...!"

"जो स्त्रियां होती हैं उनका पल्ला होता है.....जो पुरुष होते हैं उनका बल्ला होता है.... और मेरा कोई कुछ बिगाड नहीं सकता....क्योंकि मैं जहां खडा हो जाऊं...वहां केवल धूंये का छल्ला होता है....."

"तुझे तो मैं अभी देखता हूं..." सुनील का मोबाइल बजता है....-"हां...हलो...क्या...वह रिसेप्शन से चल पडा है....अच्छा....अरे ओझा...फटाफट इस देवी जी का मोबाइल छीनकर ला...."

ओझा पहुंचता है सभा के समीप तो सभा उसे निकाल कर मोबाइल दे देती है....ओझा वह मोबाइल स्विच औफ कर सुनील को दे देता है.....सुनील -"सभा....अन्तिम बार पूछ रहा हूं... संग मेरे आती क्या....? नहीं??????????? तो मरने को अब मन बना ले.....न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.... न रहेगी सभा राज के संग... न लगेगी उन्नति राज के अंग... ओझा, इसे इसके चिताकक्ष में ले चल...."

"मुझ एकाकी से यह नहीं ले जा पायेगी...तू भी इसे पकड...."

दोनों उसे पकड एक खम्भे से बान्ध देते हैं और सभी लकडी की वस्तुओं पर एवम्‌ चारों ओर पेट्रोल छिडक कर आग लगा देते हैं..... आग अभी सभा से दूर है... ऐसे में दोनों द्वार से बाहर निकल बाहर से द्वार का हैण्डल लगा देते हैं... पर संयोग से उनके जाते समय अन्दर आते हुए समर की दृष्टि उनपर पडती है.... सुनील उसे देख कुछ घबडाया-सा तेजी से आगे बढने लगता है तो समर का साहस बढ जाता है - "....तुम सुनील हो, हां ??"

"कौन सुनील ??"

पर समर को विश्वास हो जाता है कि यह सुनील ही है, और उसने सभा के संग कुछ गडबड की है....वह तुरत फोनकर इंजीनियर व अन्य कर्मचारियों को वहां पहुंचने कहता है...और सुनील को ललकारता है....इसपर सुनील उसे मारने को आगे बढता है....दोनों में मारामारी आरम्भ हो जाती है.....इतने में इंजीनियर आदि भी वहां आ सुनील को मारने लग जाते हैं.....ओझा वहां से भागना चाहता है पर समर उसे पकड मारने लग जाता है और कहता है बता कहां है सभा? वह बता देता है....

"तो चल मेरे संग और उसे बचा...." उधर सबलोग सुनील से मारामारी में लगे हैं इधर समर और ओझा गेष्ट हाउस से हाथवाला अग्निशामक यन्त्र ले हौल में अन्दर घुसते हैं....किसी प्रकार बचते और कुछ संघर्ष करते सभा तक पहुंचते हैं....दोनों किसी प्रकार सभा को खम्भे से खोल निकालना चाहते हैं...पर आग ही आग तबतक पूरा फैल गया है कि जीवित बच निकलना सम्भव नहीं लग रहा है....तभी समर  विपरीत दिशा के द्वार को अपने बहुत समीप देखता है जिधर आग भी न्यून है....दोनों जलते लट्‍ठे से मार-मार वह द्वार तोड देते हैं और उधर से बाहर रोड पर निकल टैक्सी ले हौस्पीटल पहुंचते हैं....तीनों ही को भर्ती कर लिया जाता है.... सभा जलने से अधिक नर्वस हो अचेत हो गयी है....

उधर सभी सुनील को अपने वश में कर इतना मारने लग जाते हैं कि वह त्राहि-त्राहि करने लग जाता है.....सभी उससे पूछते हैं कि चल बता सभा कहां है नहीं तो हम तुम्हें यहीं मारकर गाड देंगे... हारकर कहता है कि वह सामने के हौल में है.... तब उसे ले सब उस हौल की ओर बढते हैं तो देखते हैं कि आग की लपटें उस द्वार को भी जलाते बाहर निकल रही हैं.... तब वे सुनील को और मारने लग जाते हैं....सुनील अपने प्राणों की भिक्षा मांगता है....सभी - "यदि हमारे हाथों से नहीं मारा जाना चाहता है तो सभा को अन्दर से जीवित बचाकर ला...नहीं तो तेरी मौत निश्चित है"

....सुनील विवशता में अन्दर घुस जाता है सभा को जीवित निकाल लाने को... तब सभी का ध्यान समर की ओर जाता है....समर कहां है....समर को इंजीनियर फोन करता है....समर बताता है कि वे तीनों हौस्पीटल पहुंच गये हैं..... कुछ चोटें लगी हैं, कुछ जल भी गया है पर सब कुछ दिनों में ठीक हो जायेगा...सभा नर्वस हो कुछ अचेत हो गयी थी पर अब धीरे-धीरे उसकी स्थिति में सुधार हो रहा है....तब सबलोग यह सोचते हैं कि अब क्या किया जाये अन्दर तो सुनील फंस गया होगा.... तभी पुलिस भी सूचना पा आ जाती है... सब उसे सारी बात बताते हैं.... तुरत अग्निशामक यन्त्र मंगवाया जाता है....जब सारी आग बुझाकर हौल को शीतल कर दिया जाता है तब सबलोग अन्दर घुसते हैं.... अन्दर मध्य में सुनील का जला शव पडा है.... सब एकसह बोल पडे -"अरे इसकी तो हो गयी हाय-हाय....नाम था जिसका सुनील उपाध्याय...." और ठहाके फूट पडते हैं...अब दृश्य में सभा और समर विवाहित हो किसी गार्डेन में और समुद्रतट पर एक-दूसरे की बांहों में प्रेमगीत गाते हुए...

                                                                       समाप्‍त

आनेवाले सम्भावित कथा-प्लौट्स --

१. वाय्‌रस्

२. विनय ठाकुर का भूत