Locks continues 1
सारा रौंग मैं करूंगा....उस शौप में अभी कुछ और घण्टों के लिये हीं कहीं और से उडाया हीरे का एक छोटा पीस रखा है....मुझे वह चाहिये....कोई एक करोड उसका मूल्य होगा....सुन रहा है?????" समर ’हूं’ कहता है....
"अब प्लान सुन...जैसे ही गार्ड रेष्टोरेण्ट की ओर बढेगा, हम शौप की ओर बढेंगे...मैं शौप के तीनों तालों को खोल अन्दर घुसुंगा...तू शटर गिरा कम्बल लपेट ऐसा लेट जायेगा कि आते-जाते लोगों को ताले खुले न दिखें.....जैसे ही मैं अन्दर से नौक करूं, तू प्रथम यह देखेगा कि किसी की दृष्टि शौप की ओर है या नहीं....तब शटर उठायेगा.....आज इस शौपिंग काम्प्लेक्स में केवल टी-ष्टाल और रेष्टोरेण्ट ही खुले हैं...."
योजनानुसार वैसा ही उन दोनों ने किया....कोई पन्द्रह-बीस मिनट अन्दर रह जौन सफलतापूर्वक हीरा ले बाहर निकला...पर शटर गिरा जैसे ही ताले लगाना चाहा कि समर ने कहा कि सामने से इस गली में कोई मुडा है, इधर ही आयेगा.....जौन का काम हो चुका था, इसलिये वह ताले शौप के अन्दर डाल शटर भूतल से सटा छोड समर संग दूसरी ओर से निकल जाता है....मार्ग में रेष्टोरेण्ट है.....देखता है कि गार्ड आराम से खा रहा है.....जौन रेषटोरेण्ट के कोने पर बैठ सिगरेट बेच रहे लडके से एक सिगरेट लेने को मुडता है....वह सिगरेट जला एक कश मारता है और गार्ड की ओर देखता है तो उसका हृदय धक्क से रह जाता है....गार्ड वहां बैठा नहीं था.....दोनों वहां से भाग निकलने को अभी सोचते ही हैं कि संकटकालीन सायरन बजता है....दोनों के पांव आगे की ओर बढते हैं कि रेष्टोरेण्ट स्वामी बोलता है- "ये चोरी होने की सूचना देनेवाला सायरन बजा है....कोई भी अपने स्थान से हिलेगा भी नहीं....नहीं तो उसे ही चोर समझा जायेगा.....”
जौन को मिला स्वर्ग छिनता-सा लगा....दोनों ही अभी भौंचक्के खडे थे कि कोई पांच-दस मिनट पश्चात् उस शौप का गार्ड आया और बोला - "चोर ने शटर से ताले खोल हीरे का एक आभूषण चुरा लिया है.....केवल उसी का बौक्स खुला पडा है....चोर इस शौपिंग काम्प्लेक्स में ही है....आप सभी आराम खाना-पीना कर सकते हैं, पर यहां से बाहर आप तभी जा पायेंगे जब यहां इंच-इंच स्थान की छानबीन कर हीरे के आभूषण को पुनःप्राप्त कर लिया जाता है...इसमें घण्टों लग जा सकते हैं" गार्ड के ऐसी घोषणा से जौन की फंसी-फंसी सी सांस आराम से चलने लग गयी....दो-चार मिनट में पुनः चहल-पहल आरम्भ हो गयी.....जौन समर को वहीं रुकने को कह अन्दर की ओर जाता है....कोई आधे घण्टे पश्चात् वह लौट कर आया और बडे धीमे स्वर में निश्चिन्तता की सांस लेता समर से बोला -"समझ लो हमलोग अब राजा बन गये....हीरा किसी को मिल नहीं पायेगा और हमलोग आराम से बाहर निकल जायेंगे....आ कुछ खाया-पीया जाये...." दोनों ने निश्चिन्तता से खाना-पीना किया....पुलिस और वहां के कर्मचारियों ने चप्पा-चप्पा छान मारा, प्रत्येक व्यक्ति को पूरा सर्च किया, पर कहीं कुछ नहीं मिला...वे चिल्लाये- "चोर कोई भूत रहा होगा...चुराकर कहीं अदृश्य हो गया..." अन्ततः सबको वहां से जाने दिया गया.....पर जाने देते समय कुछ कर्मचारियों की दृष्टि जौन पर पडी और वे परस्पर परामर्श किये - ’यह व्यक्ति बहुत समय इधर बैठा नहीं दिखा है...’ "ए....चोरी होने से पहले और पश्चात् भी तू बहुत समय इधर बैठा नहीं दिखा है, जबकि अन्य सभी लोगों का कर्मचारियों ने अभिज्ञान कर लिया है कि ये इधर बैठे या घूमते दिखे हैं...कहां था उतने समय????"
"ये कर्मचारी न हो कोई आइंष्टीन हैं जिनकी स्मृति में सबकी छवि बन्धी हुई है....अरे एकाध व्यक्ति ध्यान से उतर गया भी तो हो सकता है!!!"
वाच्मैन - "अच्छा, हो सकता है ऐसा ही हो...पर हो सकता है ऐसा न भी हो....इसलिये तुम अब इधर इस शौपिंग काम्प्लेक्स में नहीं आओगे....प्रवेश प्रतिबन्ध....."
जौन तिरस्कारपूर्वक ’हूं’ कह कन्धे उचकाता वहां से निकल चला जाता है....
४ कोई आठ-नौ दिन बीत गये तो जौन ने समर को बुलाया - "तू आज जायेगा ज्वेलरी शौपिंग काम्प्लेक्स.....मेन गेट से घुसकर राइट से पांचवी गली में अन्दर घुसेगा....सबसे अन्तिम शौप का शटर तुझे गिरा मिलेगा, क्योंकि वे इस साइड का शटर गिरा ही रखते हैं....शटर के राइट साइड वाले ताले के समीप पहुंचते ही तेरे हाथों से फाइल गिर जायेगी और तू गिरे कागजों को उठाने अपने जूतों पर बैठ जायेगा....इस प्रकार कि तेरा मुख ठीक उस ताले के ऊपर होगा....तू विना विलम्ब किये अपने छोटे हैण्ड बैग से अपने उदर के समक्ष उस ताले को खोल उस ताले के सर्वांग समरूप इस ताले को निकाल वहां लगा देगा...यह काम आधे मिनट में हो जाना चाहिये....कोई तुझे ऐसा करते देख न पाये...और उस ताले को ले यहां तू यथाशीघ्र आ जा....." समर - "मैंने कहा था मैं कोई रौंग वर्क नहीं करूंगा..."
"अरे, वाच्मैन ने रोका नहीं होता तो मैं ही जाता....किसी को उसके पुराने ताले के स्थान पर कुछ नया-सा ताला देना कोई रौंग वर्क होता है क्या??? ये तो भलाई का काम है....जा फटाफट...." समर निर्देशानुसार सारा कुछ कर सफलतापूर्वक वह ताला ले लौट आता है....तब जौन द्वार की सिटकिनी चढाता है, आराम से बैठ ताले को उपकरणों से खोलता है...उसके हाथ की कुशलता ऐसी कि कोई विशेष ध्वनि भी नहीं होती ताले के अन्दर की बौडी खोल देने में....खोलते ही समर की आंखें फैल जाती हैं....हीरे का एक जगमगाता टुकडा अन्दर से निकला....
"समर, तू आगे की सुन....इस हीरे को बेचने मुझे बाहर जाना है.....कितने समय में लौटकर आउंगा यह अभी बता नहीं सकता....पर जब भी लौटकर आउंगा....तुझे कुल आय का पच्चीस प्रतिशत अवश्य दूंगा....पर तुझे यह बात किसी को भी नहीं बतानी है....समझ ले, ऐसी कोई बात हुई ही नहीं है....” समर हां में सर हिलाता है....सायंकाल पर्यन्त में जौन नगर से बाहर चला जाता है....
५ कितने ही दिन बीत गये, जौन की कोई सूचना नहीं.....समर एकाकी ही अब निज भविष्य बनाने की चिन्ता में बैठा है....टीवी पर बौलिवुड समाचार आ रहा है...एक नयी गायिका अपने प्रथम गीत से ही चारों ओर छा गयी है....सभी उसके मधुर स्वर की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा कर रहे हैं.....नाम है सभा.....सभा पटेल.....उसका इण्टरव्यू दिखाया जा रहा है...."आपको निज प्रथम गीत पर ही मिल रही इतनी प्रशंसा पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?"
"इससे मेरा उत्साह बहुत बढा है....यह मेरे सुखद भविष्य का सूचक है...."
"अपने पति या ब्वाय्फ्रेण्ड के सम्बन्ध में बतायें?"
"विवाह मेरा हुआ नहीं है....और ब्वाय्फ्रेण्ड मैंने कभी किसी को बनाया नहीं....मेरा पति ही मेरा ब्वाय्फ्रेण्ड होगा..."
"आपकी इस चौबीस वर्ष की अवस्था पर्यन्त में कभी किसी से कुछ भी रिलेशन तो रहा होगा?"
"नहीं....मेरा फर्ष्ट रिलेशन मेरे पति के संग ही बनेगा..."
"इतने आत्मविश्वास से बोलने का कारण?"
"इस सम्बन्ध में मैं अपना भविष्य जानती हूं....." वह मुस्कुरायी।
६ समर सभा की ओर बहुत आकर्षित हुआ - ’काश ये मेरी पत्नी बन जाये.....पर मेरी तो कोई ऐसी स्थिति ही नहीं है कि मेरा इससे विवाह सम्भव हो सके....’ कुछ दिन और बीते....सभी के एक पर एक हिट गाने आते गये....संयोग से एक समाचार में सभी का ऐड्रेस और फोन नम्बर लिखा उसे दिखता है....वह उससे बात करने का मन बनाता है....उसका पुराना मोबाइल फोन अच्छे-से काम नहीं कर रहा है....’नये मोबाइल का क्रय कर उससे सभा से बात करूंगा..’ ऐसा विचार कर कुछ रुपये ले एक शौप पर जाता है...."ये मोबाइल फोन कितने का है?..."
"जितना एम आर पी उसपर लिखा है..."
"अभी मेरे एक मित्र ने एक मल्टीमीडिया मोबाइल फोन का क्रय किया....एम आर पी लिखा था दस सहस्र रुपये....जबकि मिला केवल पांच सहस्र रुपये में....कोई पुराना नहीं...पूरा नया....उसका मार्केट रेट ही ऐसा है.....तुम तो उसे भी दस सहस्र में ही बेचते!!!....."
"हां..निःसन्देह.....सौ-दो सौ रुपये...या बहुत अनुरोध करने पर पांच सौ रुपये पर्यन्त भी छोड दे सकता हूं..."
"और बोलोगे, ये ही दो-चार सौ रुपये तो मिलेंगे मुझे इसे बेचने पर...यदि वह भी छोड दिया तो मुझे क्या मिलेगा???’
"ही ही ही....बुद्धिमान् हो...."
समर का मन अप्रसन्न हो गया....’देश में जिसे देखो वही एक-दूसरे को लूटने के प्रयास में लगा है.....पर लूटकर भी धन आदि सुरक्षित कहां रखेंगे!!! क्योंकि ताले अब भी उन्नीसवीं शताब्दी के चलते आ रहे हैं जिन्हें बहुत सरलता से कोई भी खोल अन्दर घुस इच्छापूर्वक अपने कार्य कर बाहर आ पुनः ताले वैसे ही लगा दे सकता है जैसे कि वह अन्दर घुसा नहीं था...हाय रे मानव-बुद्धि!!! कितनी की साइण्टिफिक उन्नति!!! कहां हैं तुम्हारे साइण्टिफिक ताले???? जिसे कोई और खोल न पाये?.......’
उसने पीसीओ से सभा को फोन करने को विचारा....नम्बर लगा....सभा ने रिसीव किया - "हलो..."
"