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25/05/2011 16:37

"सभा जी, बधाई हो....आपके गाने इतने सुमधुर कि आह...मैं क्या बताऊं.....एक पर एक हिट होते जा रहे हैं...."

"आप कौन?"

"सभा जी, मेरी यह शुभ कामना है कि आप भारत की नम्बर वन गायिका बनने का भी सौभाग्य प्राप्त कर पायें...मैं आपका एक साधारण-सा फैन बोल रहा हूं...."

"आपने गायन में अभी क्या स्थिति प्राप्त कर ली है....?"

"गायन ! और मैं ! मैं तो केवल वैसे ही गुनगुना लेता हूं...."

"तो आप किस क्षेत्र में काम करते हैं?"

"मुझे तो कोई कला नहीं आती...मैं अनेम्प्लौय्ड हूं.....कहीं कोई अच्छा-सा जौब मिल जाये..."

"यदि तुम्हें  गाने, लिखने, अभिनय, आदि की कोई कला अच्छे-से आई होती, और तुम बौलिवुड में अवसर पाने के अन्वेष में मुझसे सम्पर्क करते, तो यथासम्भव मैं तुम्हारी सहायता कर सकती थी...क्योंकि प्रतिभाशाली लोग गिनती के ही होते हैं....पर तुम तो लाखों करोडों साधारण लोगों में से एक के रूप में मुझसे बात कर रहे हो....यदि इसी प्रकार तुम्हारे जैसे ही अन्य करोडों लोग मुझे फोन करने लग जायें तो मेरा क्या होगा????? इस साधारण अवस्था में रहते मुझे या किसी और कलाकार को भी फोन करने का साहस नहीं करना....फोन रख दो..." समर रिसीवर रख देता है.....मिनट दो मिनट शान्त खडा रहता है...तत्पश्चात् फोनकौल के रुपये दे वहां से चला जाता है....

  

एक व्यक्‌ति लम्बे-लम्बे पग बढाते रोड्‍पर चला जा रहा है.....उसके संग एक छोटा-सा बैग्‌कन्धे से लटक रहा है...अभिजानने की मुद्रा बनाते वह एक अपार्ट्‍मेण्ट्‍में घुसता है....लिफ्‍ट्‍में घुस तृतीय तल पर जाता है....एक-एक द्वार से होते हुए वह एक किनारे के द्वार पर रुकता है.....इस फ्लैट्‍का द्वार अन्य आते-जाते लोगों की दृष्‍टि से छिपा-सा है, जिसे देख वह व्यक्‍ति प्रसन्नता से ...माइ लक्‌...बुदबुदाता है....वह जानता है कि अभी अन्दर कोई नहीं है.....सावधानी से पर शीघ्रता से वह उस द्वार की चाभी बना अन्दर घुसता है....इधर-उधर निरीक्षण कर वह बाहर आ द्वार लौक कर वहां से चला जाता है....पुनः रात आठ बजे वह वहां आ द्वार खोल अन्दर लाइट जलाता है....प्रकाश में उसका मुख दिखता है....अरे ये तो कोई और नहीं, समर ही है....वह पुनः द्वार अन्दर से लौक कर लाइट बुझा पलंग के नीचे घुस जाता है....कोई आधे घण्टे पश्चात् सभा द्वार अन्लौक कर अन्दर प्रवेश करती है....यह गायिका सभा पटेल का ही आवास है....वह डिनर कर ही आ रही थी....थकी...एसी चला सैण्डल उतार वह आराम से वैसे ही पलंग पर लेट जाती है.....लाइट जल रही है....वह आराम का मात्र आलिंगन करना चाह रही थी पर उसकी आंखों ने यह दिखाया कि वह आराम में डूबती जा रही थी....जब समर को यह विश्वास हो गया कि वह सो गयी है तो वह पलंग के नीचे से बाहर निकला.....उसने विना विलम्ब किये अचेत करने वाली औषधि क्लोरोफार्म सभा को सुंघायी....अब सभा प्रायः अचेत हो चुकी थी....समर ने बडे आराम से सभा को कुछ प्यार किया....तत्पश्चात् संग उसके सम्भोग करना आरम्भ किया, विचारा - ’कण्डोम लगा ही लूं....इसके शरीर में मेरे वीर्य का अभिज्ञान भविष्य में कभी भी न हो पाये....कुछ मिनट सम्भोग कर तत्पश्चात् उठा, सभा के पर्स को टटोला....उसमें आज उसे मिले एक सहस्र रुपयों के सौ नोटों की एक गड्डी मिली....उसे उसने अपने पौकिट में डाला...सभा के शरीर के वस्त्रों को पूर्ववत् ही कर, अन्य भी परिवर्तित स्थितियों को पूर्ववत् कर आराम-आराम से द्वार से बाहर निकल उसे लौक कर, आंखों पर काला चश्मा चढा, लिफ्ट से उतर वाच्मैन के समीप से ही आराम से निकल चला गया...अभी रात के नौ बजने वाले थे पर चहल-पहल  अभी भी बनी थी इसलिये वाच्मैन ने उसपर विशेष ध्यान नहीं दिया....

 

सभा की जब नीन्द टूटी तब रात के कोई ढाई बज रहे थे....वह चिन्तित हुई...उसने पर्स से रुपये निकाल अल्मीरा में रख देने को सोचा....पर यह क्या!!! पर्स में तो कोई गड्डी नहीं थी....सबकुछ वैसा ही था पर वह लुट चुकी थी....उसने तुरत राज अपने म्यूजिक डायरेक्टर को फोन किया - "मुझे भलीभांति स्मरण है कि वह एक लाख रुपये की गड्डी मेरे पर्स में थी जब मैं निज फ्लैट में प्रवेश की थी....मेरे सोये में ही यह चोरी हुई जबकि कहीं किसी के अन्दर आने का कोई चिह्न नहीं दिख रहा...."

"किसी ने तुम्हारे फ्लैट की डुप्लिकेट चाभी बना अन्दर प्रवेश कर वे रुपये उडा लिये....अभी भी हम तालों के सम्बन्ध में तो उन्नीसवीं शताब्दी में ही जी रहे हैं....कहीं तुम्हारे संग तो कुछ नहीं किया?"

"कुछ लगता तो है पर मैं श्योर नहीं हूं...."

"अभी तीन बजने वाले हैं....तुम आठ - साढे आठ बजे पर्यन्त आ जाओ.... हमारा डौक्टर तुम्हारी वर्जिनिटि चेक कर लेगा...."

सभा का चेकप होता है तो उसकी वर्जिनिटि तो सिद्‍ध होती है पर विथ कण्डोम सेक्सुअल इण्टरकोर्स भी दिख रहा है...किसने किया होगा!!! तब भी, थैंक गौड बच गयी..

....’"क्या मैं चोरी की कम्प्लेण्ट पुलिस को दूं..?"

"सभा, तुम मेरा कहना मानो और ऐसा कुछ न करो जिससे समस्या न्यून न होकर और बढ जाये....क्योंकि जिन-जिन प्रदेशों में मैं अभी तक रहा हूं वहां की घटनाओं से व कभी व्यक्तिगत अनुभव से भी मेरे अनुभव में ऐसा आया कि पुलिस तुम्हें कम्प्लेण्ट के नाम पर थाने बुला सकती है.... तू, तेरा बोलना, गाली भी देना, अन्दर कर देने की धमकी देना, मिथ्या आरोप में फंसा देना, कभी जान भी मार देते हैं लौकप में....मदिरा पीये हुए ये ऐसे डेंजरस वर्दी वाले अपराधी हो सकते हैं जिनके पीठ पर प्रशासन, शासन, पूरे संसार की पुलिस और शासन का हाथ रहता है....पुलिस और क्रिमिनल्स दोनों से निर्दोष और अच्छे लोगों को बहुत दूर रहना चाहिये....क्योंकि ये निर्दोष और सीधे लोगों के संग विना भय के दुर्व्यवहार या अन्याय कर सकते हैं, तथा धनवान्‌ और पावरफुल लोगों को सैल्यूट मारते हैं चाहे वे कितने भी दुष्ट हों...अपराधियों के संग इनकी सांठ-गांठ हो सकती है....इसलिये तुम मेरा कहना मानो...तुम्हारे एक लाख के स्थान पर तुम्हें मैं न्यूनतम दस लाख की आय तुरत करवा देता हूं...केवल मैं यह इच्छता कि तुम्हारा मन प्रसन्न रहे....कोई चिन्ता तुम्हारे मन में न रहे....और तुम मधुर से मधुर स्वर में गाते रहो.... तुम फ्लैट के अन्दर सिटकिनी लगाना न भूलो....और मैं केवल विशेष लेसर बीम से ही खुलने वाले लौक्स के सम्बन्ध में जानकारी लेता हूं....."

 

सभा ने एक मास की इस लघु अवधि में ही कोई आठ-नौ हिट गाने गा निज के केयरियर के संग-संग राज की म्यूजिक कम्पनी को भी उन्नति के मार्ग पर आगे बढा दिया था....पर.... पर राज की इस उन्नति पर किसी की दृष्टि टेंढी हो गयी थी....वह है --- एक व्यक्ति खडा पीछे से आगे की ओर मुडता स्क्रीन पर उभरता है....कहता है---"जिसपर मेरी दृष्टि टेढी हो जाये.....करा दूं उसकी हाय हाय... नाम है मेरा.....सुनील उपाध्याय....." वह निज औफिस में बैठा सोच रहा है - ’सभा मेरे लिये गायेगी ऐसा निश्चित हो चुका था...पर रातों-रात राज ने उसे मुझसे छीन अपनी कम्पनी के संग कर लिया...यदि आज वह मेरी कम्पनी के संग होती तो मेरी कम्पनी नम्बर वन म्यूजिक कम्पनी बनने की ओर बढ चुकी होती....राज ने मेरी उन्नति छीनी है...मैं उसकी उन्नति छीन लूंगा....इयाह्...."

पर वास्तविकता यह है कि -(फ्लैश बैक) कहीं ब्रेक मिले इस अन्वेष में उसने कई म्यूजिक कम्पनियों और म्यूजिक डायरेक्टरों से उसने सम्पर्क किया था....अन्ततः उसने सुनील की म्यूजिक कम्पनी के लिये गाना स्वीकार कर लिया, और डौक्युमेण्ट्स भी साइन कर दिये.....अगले दिन प्रातःकाल उसे वहां गाने का रिहर्सल आदि आरम्भ कर देना था....पर....इस प्रातःकाल से पूर्व ही रात में राज की कम्पनी में एक फिल्म-विशेष के लिये ही गानों की रिकार्डिंग हो रही थी.....गायिका का स्वर राज को गाने के उपयुक्त नहीं लग रहा था....उसने नयी गायिकाओं के आवेदनों को परखना आरम्भ किया....सभा का स्वर उसे बहुत मधुर और आकर्षक जान पडा....उसने उसका मोबाइल नम्बर डायल किया.....एक बार घण्टी बज-बजकर थक गयी....पुनः डायल किया...इस बार सभा की नीन्द टूट गयी....उसने कौल रिसीव किया....-"मिस सभा पटेल?"

"यस...स्पीकिंग..."

"मैं राज....राज म्यूजिक से.....हमने आपका मधुर गायन सुना, और अपनी नयी रिकार्डिंग के लिये आपको अवसर देने का विचार किया है....."

"पर मैंने आज ही सुनील म्यूजिक से कौन्ट्रैक्ट पेपर पर साइन किया है...अभी कुछ समय के लिये तो मुझे केवल उन्हीं के लिये गाना है....."

"-ऽऽऽऽ.....पर....रुपये कितने मिलेंगे आपको वहां से?"

"अभी एक एल्बम में मुझे प्रायः फ्री गाना है...इसकी सफलता मेरा पारिश्रमिक निश्चित करेगी..."

"ऐसे तो आपका शोषण होगा....आपका स्वर इतना मधुर है कि आपको अभी से लाखों रुपये मिलने चाहिये, जो मेरी कम्पनी में सम्भव है...."

"पर....ये कौण्ट्रैक्ट जो साइन कर दिया है मैंने???"