Ye Jeevan Kyaa Hae - a story plot for making film
18/09/2012 15:37ये जीवन क्या है
लेखक - राघवेन्द्र कश्यप
सच्चाई के अंशों को समाये हुए काल्पनिक घटनाओं पर आधारित यह कथा-प्लौट फिल्म बनाने के उद्देश्य से लिखा गया है....
With sacred intentions only one can succeed truly
लेखक - राघवेन्द्र कश्यप
सच्चाई के अंशों को समाये हुए काल्पनिक घटनाओं पर आधारित यह कथा-प्लौट फिल्म बनाने के उद्देश्य से लिखा गया है....
लेखक का नाम - राघवेन्द्र कश्यप
सच्चाई के अंशों को समाये हुए काल्पनिक घटनाओं पर आधारित यह कथा-प्लौट फिल्म बनाने के उद्देश्य से लिखा गया है....
सुरेन्द्राचार्य एक ज्योतिषी और तान्त्रिक है...इसने अपने आवास से ही ज्योतिष और तन्त्र विद्या का व्यवसाय फैला रखा है....उसने कुछ तन्त्र और मन्त्र साधनायें तथा ज्योतिषीय अध्ययन के बल पर भविष्यवाणी करने में इतनी सफलता पा ली कि इसका नाम धीरे-धीरे प्रसरने (फैलने) लगा.... इसे इस व्यवसाय में अच्छी सफलता मिल रही है...इसका भाग्य ऐसा है कि इसकी भविष्यवाणियां अधिकांशतः सत्य निकलती हैं...अब उसने एक कक्ष किराये पर ले उसमें अपना ज्योतिष कार्यालय चलाना आरम्भ कर दिया है... समय बीतता गया....सन् १९८५ ई. से अब १९९० हो गया, और अब १९९५....२०००...२००५...२०१०....सांसारिक विकास होता गया पर समाज गिरता गया मानवीय मूल्यों और धार्मिक-आध्यात्मिक विश्वासों और तदनुरूप कर्मों की दृष्टि से....लोगों का मन सांसारिक बातों में ही २४ घण्टे फंसा रहने लगा....पूर्व की भांति समाज में धर्मचर्चा और ज्ञानचर्चा अब हंसी या महत्त्वहीनता की बातें होती चली जा रही थीं... सुरेन्द्राचार्य की भविष्यवाणी की क्षमता भी न्यून होती गयी...पर उसका सांसारिक आधुनिक दिखावा और अहंकार उतना ही बढता गया...सुरेन्द्राचार्य का ज्योतिष कार्यालय अब उसके आवास में और एक साधारण कक्ष में न रह एक बिजनेस-सेण्टर की बिल्डिंग में शिफ्ट हो गया था...वहां बडे ही आधुनिक ढंग से उसका ज्योतिष और तन्त्र कार्यालय चल रहा था...उसके ज्योतिषीय ज्ञान और तान्त्रिक शक्तियों का प्रभाव बहुत न्यून(कम) हो चला था, पर उसकी प्रसिद्धि न केवल अब भी बनी हुई थी अपितु और भी बढती चली जा रही थी...उसे सहस्रों (हजारों) रुपये प्रतिदिन की आय हो रही थी... सुरेन्द्राचार्य का सपना एक करोडों रुपये की बिल्डिंग क्रय करने (खरीदने) का था...ग्रहपीडा हरने और मन्त्रानुष्ठान कराने के नाम पर उसे विशेष धनप्राप्ति हो रही थी....फल कुछ मिले या न मिले, लोग इसकी चिन्ता नहीं करते थे....एक भी फल घट गया तो उसकी प्रशंसा बहुत ही प्रसरती थी...तब भी वह कृपण(कंजूस) ऐसा था कि सौ या पचास रुपये भी न्यून लेने की बात उसे बहुत भारी बात जान पडती थी...एक व्यक्ति बडी आशा से उससे ज्योतिष आदि सीखने का अनुरोध कर रहा था...वह स्वयम् ज्योतिष आदि की पुस्तकें पढ उससे ज्ञानवर्धन की आशा रखता था....सुरेन्द्राचार्य ने उसे कहा वह औफिस में ही असिष्टेण्ट या शिष्य जैसा रहे, और जहां ग्राहकों को डील करे वहीं समय मिलने पर मुझसे सीखता भी रहे...वह शिष्य के रूप में औफिस में नियमित रूप से आने व बैठने लगा...
प्रदेश के एक मन्त्री की पत्नी सीता देवी को सुरेन्द्राचार्य के सम्बन्ध में कई बार प्रशंसायें सुनने को मिलीं, तो उसने सुरेन्द्राचार्य से मिलने का विचार किया...उसे कई वर्षों से सन्तान नहीं हो रहा था, और एक होने को हुआ तो मर गया...सीता देवी ने सुरेन्द्राचार्य को अपनी जन्मकुण्डली दिखायी....सुरेन्द्राचार्य ने उससे ग्रहशान्ति और मन्त्रानुष्ठान आदि के नाम पर सहस्रों रुपये लिये....और समस्या समाधान का कार्य आरम्भ किया....वह रुपये पर रुपये मांगता गया जो लाख की सीमा पार कर गये पर समस्या वहीं की वहीं बनी रही...कुछ मास बीतने जाने पर भी जब सीता देवी को बात कुछ भी बनती नहीं दिखी, तो उसका मन निराश होने लगा...निराशा संग-संग क्रोध लाने लगी....उसने पति के असिष्टेण्ट श्याम को बुलाया और उसे यह बात बतायी...श्याम-"ये ज्योतिषी आदि भी क्या सन्तान उत्पन्न करवा सकते हैं जब डौक्टर्स ने कह दिया कि सन्तान कभी नही हो सकती....?" सीता देवी - "तो अब क्या किया जाये....?" श्याम -"रुपये डूब गये और क्या..." सीता देवी- " डूब कैसे गये..? उसको लौटाने होंगे....कोई सौ पचास रुपये नहीं हैं कि छोड दिया जाये...! मैं अभी फोन करती हूं...." वह क्रुद्ध वहां फोन करती है....शिष्य बताता है कि अभी एक घण्टे पश्चात् ज्योतिषी जी आयेंगे...सीता देवी और श्याम सुरेन्द्राचार्य से मिलने तब सीधे उसके कार्यालय पहुंचते हैं...पांच मिनट ही अभी प्रतीक्षा की थी कि सुरेन्द्राचार्य आ पहुंचा....
"प्रणाम...." सीता देवी ने हाथ जोडे...."प्रणाम ज्योतिषी जी..." श्याम ने भी हाथ जोडे...
"प्रणाम प्रणाम....धन्य भाग्य हमारे जो मन्त्रिणी जी हमारे यहां पधारीं...."
"अरे ज्योतिषी जी...थोडा दम धरिये...अभी मैं मन्त्रिणी नहीं बनी हूं, केवल मन्त्रीपत्नी हूं...."
"हां हां हां...पर वो भी आप बन जा सकती हैं....मैंने आपकी कुण्डली देखी ही है...आपका भाग्य अच्छा है..."
"हां क्यों नहीं...जब आपके आशीर्वाद से मां बन गयी तो अब मन्त्रिणी भी बन ही जाउंगी..."
"हां.....! आइये आइये....अन्दर बैठिये...."
सीता देवी ने श्याम को संकेत किया अन्दर बैठते ही....
"देखिये ज्योतिषी जी....मैडम का कहना है कि आप इनकी सन्तान की कामना अपने तन्त्र-मन्त्र से पूरी कर नहीं पाये...और जो यह आश्वासन दिया है वह न जाने कितने वर्षों में भी पूरा हो पाये या न हो पाये...अतः लम्बे विचार-विमर्श के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि जो लाखों रुपये आपको दिये गये हैं वो आप विना विलम्ब किये अभी लौटा दें...."
"लाखों रुपये....? मात्र एक लाख और कोई बीस सहस्र रुपये.....और सुनिये....काम बहुत किया जा चुका है, और अभी भी चल रहा है...यह धर्म का नियम है कि कर्म किये जाओ और फल की चिन्ता न करो....यदि इस जन्म में न भी फल मिला तो अगले जन्म में किये कर्म का फल अवश्य मिल जाता है...."
"बहुत अच्छा पण्डी जी...तो आप यह कहना चाहते हैं कि ये जो एक लाख बीस हजार रुपये आपको मैंने दिये वो आपको अगले जन्म में सन्तान पाने के लिये दिये हैं...?"
"वो....भला ज्योतिषी तान्त्रिक को दिये रुपये भी भला किसी को वापस मिले हैं कभी....!"
"नहीं मिले हों कभी....पर आप लौटायेंगे मुझे अभी..." वह गुर्रायी....
"शान्त शान्त देवी जी....यह धर्म का स्थान है....यहां क्रोध शोभा नहीं देता है....(शिष्य को संकेत करता है....-) देवी जी को कुछ शीतल पेय पिलाओ....मैं जरा एक विशेष कार्यवश बाहर निकल रहा हूं...." ऐसा कहता वह आगे बढा और धीरे-धीरे द्वार से बाहर निकल गया....
"श्याम...ये तो आराम से ऐसे चला गया जैसे इन रुपयों पर उसका वैध अधिकार बनता हो....क्या किया जाये अब...?"
"क्या किया जायेगा मैडम....इन लोगों का तो बस ऐसे ही चलता रहा है...सदा की ही बात है, आज कोई नयी बात नहीं है...."
"पर मैं नहीं छोडूगी...लेकर रहूंगी अपने रुपये...देखो यहां कितने का सारा सामान है...सब मंगवा लो...."
"अरे आप भी क्या बात सोच रही हैं मैडम...छोडिये जाने दीजिये...क्या कमी है आपके पास...मन्त्री जी यदि चाहें तो कई लाख रुपये देखते-देखते आपके हाथों में आ जायें...."
"ऐसी कौन-सी बात है...जरा पूछुं तो...." पति से बात करती है....
"ये ज्योतिषी-तान्त्रिकों की बात कुछ ऐसी है कि कुछ करते बनता नहीं... कोई और होता तो अभी तक में मैं अन्दर करवा देता...श्याम क्या कहता है...?" वह उसे मोबाइल देती है...
"सर...अभी आप मैडम को वापस बुला लें....बहुत क्रोध में हैं..."
"ऐसा है, तुम अभी आ जाओ...मैं मुख्यमन्त्री से ऐसे ठगों के विरुद्ध विधान (कानून) बनाने की बात करता हूं..."
सीता देवी लौट जाती है, पर आवास पहुंच भी शान्त न बैठी, और सुरेन्द्राचार्य को चेतावनी दे बैठी कि या तो रुपये लौटाओ अथवा तुमसे बलपूर्वक वसूल लिया जायेगा... उसने कुछ कर्मचारियों को भेज दिया कि चाहे जैसे हो सके उससे रुपये वसूल कर लाओ....वे कर्मचारी जा सुरेन्द्राचार्य से अभद्र भाषा में रुपये वापस मांगने लगे....पर तुरत ही श्याम को इस बात की जानकारी हुई और उसने उन कर्मचारियों को वापस बुलवा लिया...यह जान सीता देवी क्रुद्ध हुई -"तुमने कैसे इन्हें वापस बुला लिया जब मैंने भेजा था...?"
"मैडम आप इसकी चिन्ता न करें...सप्ताह भर के अन्दर सर को कई लाख रुपयों का लाभ होनेवाला है...मैंने प्लान सर को समझा दिया है..." और प्लान के अनुसार जब मन्त्री मुख्यमन्त्री से बात करता है तो मुख्यमन्त्री इस सम्बन्ध में रुचि नहीं लेता है यह कहते हुए कि समाज समर्थन नहीं करता है इन लोगों के विरुद्ध कार्यवाही के लिये..."
"पर हमारे जो इतने रुपये डूबे...?"
"वो मैं कम्पेन्सेट कर देता हूं....पिछले बार जब आप कुछ लोगों के काम के सम्बन्ध में जो कुछ डौक्यूमेण्ट्स लाये थे, वो लेते आइये..."
इस प्रकार मन्त्री कई लाख रुपयों का काम करवा सन्तुष्ट हो गया....
इन बातों से सुरेन्द्राचार्य भयभीत तो नहीं हुआ, पर अपमानित अनुभव करता हुआ श्मशान घाट की ओर चल पडा...और लौकिक सिद्धि पाने के उद्देश्य से एक बडे खण्डहर के एक भाग को अपने तन्त्र-मन्त्र साधना के अनुकूल बना वहां साधना आरम्भ कर दी...कर्णपिशाचिनी सिद्धि और सर्वमनःकामना सिद्धि के मन्त्रों का विधिपूर्वक जाप आरम्भ किया...कोई डेढ-दो मास पश्चात् एक प्रेस-रिपोर्टर सिद्ध उस श्मशान से होकर गुजर रहा था...वह भूत-प्रेत, साधना-सिद्धि-चमत्कार इत्यादि पर अनुसन्धान कर रहा था अपने प्रेस-रिपोर्टिंग के कर्म के संग-संग...उसने ध्यानमग्न सुरेन्द्राचार्य को देखा और उसके समक्ष कुछ दूर अपना वीडियो-रिकार्डर औन कर रख दिया...कुछ समय रिकार्डिंग कर पुनः उसने उसके आसपास की रिकार्डिंग की और वहां से चला गया...जब प्रेस में वह इस वीडियो रिकार्डिंग को कम्प्यूटर पर देख रहा था तो उसे लगा सुरेन्द्राचार्य किसी से बातें कर रहा था मानो सुरेन्द्राचार्य के सर के आसपास कोई आत्मा या भूत हो, क्योंकि कोई स्वर नहीं सुनायी दे रहा था...ध्यान से देखने पर आत्मा जैसा कुछ अस्पष्ट श्वेत आकृति दिखने भी लगी...उसने पुनः उस दृश्य को प्ले किया....सभी ध्यान से सुरेन्द्राचार्य को और उसके सर का निरीक्षण कर रहे थे कि सुरेन्द्राचार्य के मस्तिष्क में वह प्रेस का दृश्य उभरा, और वह जान गया कि लोग उसकी वीडियो रिकार्डिंग देख रहे हैं और क्या विचार मन्थन कर रहे हैं....तुरत उसका मस्तिष्क उस कम्प्यूटर के स्क्रीन पर हल्की मुखाकृति के संग उभरा और देखते ही देखते सारा स्क्रीन काला हो गया...सिद्ध आदि ने तुरत कम्प्यूटर चेक किया तो पाया वह शट-डाउन हो गया था, अतः वह पुनः श्टार्ट तो हो गया पर वह वीडियो-फाइल करप्ट हो गयी थी, अर्थात् देखने के अयोग्य हो गयी थी...सभी ने निराशा अनुभूत की, पर तुरत सिद्ध ने वीडियोरिकार्डर में औरिजनल फाइल प्ले किया तो वह भलीभांति चल रही थी...सबने आराम की सांस ली....पुनः उसकी कुछ कापियां बना एक कौपी कम्प्यूटर पर चलायी गयी जिसके निरीक्षण करते समय एक सहकर्मी ने सहसा कहा-"मैं इसे जानता हूं, यह सुरेन्द्राचार्य है - एक प्रसिद्ध ज्योतिषी और तान्त्रिक..." वहां लोगों को विश्वास हुआ कि अवश्य सुरेन्द्राचार्य के अधिकार में कुछ भूत होंगे जिनसे वह कोई भी काम करवा ले सकता है...सहकर्मियों ने अपने अलग-अलग विचार व्यक्त किये....
"जैसे कोई बोतल वाला जिन्न या अलादीन के चिराग वाला जिन्न....हा हा हा...."
"पर सुरेन्द्राचार्य को तो अबतक करोडपति क्या अरबपति तक बन जाना चाहिये था...."
"हो सकता है ये भूत अभी-अभी उसके वश में आये हों..."
"यह भी तो हो सकता है कि ये भूत उतने पावरफुल न हों...
यह सम्भवतः सुरेन्द्राचार्य का प्रथम मानसिक-शक्ति-प्रयोग था...सुरेन्द्राचार्य की मानसिक शक्ति अबतक बहुत विकसित और प्रबल हो चुकी थी...
सिद्ध ने तुरत सुरेन्द्राचार्य को जाननेवाले उस सहकर्मी से सुरेन्द्राचार्य के आवास का फोन नम्बर ज्ञात किया और डायल किया...फोन सुरेन्द्राचार्य की पुत्री वर्तिका ने रिसीव किया...-"आप कल आ उनका इण्टरव्यू ले सकते हैं, अपराह्ण दो से चार के मध्य...." सिद्ध अगले दिन समय से अपने बाइक से सुरेन्द्राचार्य के आवास की ओर चल पडा...जिस रोड पर सुरेन्द्राचार्य का आवास था उस ओर मुडते ही एक कार से उसकी टक्कर होते-होते रह गयी....कार रुकी, ड्राइवर ने सर बाहर निकाला....-"कहां जा रहे....?" सिद्ध ने उससे सुरेन्द्राचार्य के आवास के सम्बन्ध में पूछा....ड्राइवर- "हूं....सीधे जाते हुए यहां से ठीक पन्द्रहवां आवास है उनका...पर एक बात और भी बता दूं...जिस काम के लिये तुम वहां जा रहे वह काम तुम्हारा वहां बनेगा नहीं..." बडी-बडी आंखें उसने फाडी और कार आगे बढा दी...
सिद्ध ने बाइक आगे बढायी....ठीक पन्द्रहवां आवास सुरेन्द्राचार्य का था...उसने कौलबेल बजाया....द्वार सुरेन्द्राचार्य की पुत्री वर्तिका ने खोला...
"हां, कल मैंने जो समय बताया था वह उनके सामान्य दिनों में आवास में अपराह्ण समय रहने का है...पर अभी उनकी साधना चल रही है, जिस कारण वह कभी भी यहां से चले जाते हैं...वो अभी कोई दो मिनट पूर्व ही निकले हैं... वैसे, आप आइये...बैठिये...हमारे यहां आपका ’समाचारपत्र’ आता है....मैं आपके लेखों और समाचारों से बहुत प्रभावित हूं..."
"हूं....तो उनसे अब कब मिलना सम्भव हो पायेगा....?"
"अभी कुछ भी कहना सम्भव नहीं है...जबतक उनकी साधना चल रही है....और कबतक चलती रहेगी यह वह स्वयम् भी निश्चित नहीं कर पाये हैं..."
वर्तिका उसे सम्मान से हौल में बैठा कौफी पिलाती है...वह उसके जर्नलिज्म के संग-संग उसके व्यक्तित्व से भी बहुत प्रभावित हुई, अतः उसने बडे उत्साह से उससे बातें करने में रुचि ली...जाते समय दोनों ने एक-दूसरे के मोबाइल नम्बर्स लिये जिससे कि सुरेन्द्राचार्य के संग इण्टरव्यू के सम्बन्ध में बात की जा सके....
कई दिन बीत गये....एक दिन सिद्ध ने वर्तिका को फोन किया कि यदि अब सुरेन्द्राचार्य के संग इण्टरव्यू सम्भव हो सके...
"अभी भी पापा की साधना चल रही है....और....समाप्ति की कोई जानकारी अभी भी नहीं है...."
"हूं...पर यह इतना शोर क्यों हो रहा है...कहां हैं आप अभी....?"
"अभी मैं यूनिवर्सिटी में हूं....यहां अभी यूनिवर्सिटी के स्थापना दिवस का कार्यक्रम चल रहा है..."
"अच्छा....प्रेस से रिपोर्टर्स भी वहां आये हुए होंगे...?"
"उसकी मुझे जानकारी नहीं...पर, यदि आप आना चाहें तो आ सकते हैं...."
"श्योर...कहां मिलेंगी आप मुझे...?"
"अभी मैं सेमिनार हौल में हूं, कोई एक घण्टे तक...आकर मुझे डायल कर लें..."
"मैं अभी बस आधे घण्टे में पहुंच रहा हूं...."
सिद्ध वहां पहुंच वर्तिका से मिलता है...सभी कार्यक्रमों की जानकारी लेता है....कुछ फोटोग्राफ्स और सूचनायें एकत्र करता है....वर्तिका उसे यूनिवर्सिटी के कुछ आकर्षक स्थानों का परिचय कराती है....दोनों कोई घण्टे-दो घण्टे इधर-उधर यूनिवर्सिटी में भ्रमण करते हैं....
"ये मैंने आपको यूनिवर्सिटी के प्रायः सभी मुख्य स्थानों परिचय करा दिया है...अब आप यह सब कब प्रकाशित कर रहे हैं...?"
"मैं अभी जा रहा हूं प्रेस....उसके पश्चात् तैयार करूंगा एक विस्तृत रिपोर्ट....और आप....? आप अभी क्या आवास जायेंगी...”
"हां....पर अभी नहीं...कोई एक घण्टे पश्चात्....यूनिवर्सिटी बस आयेगी, तब..."
"तबतक...?"
"तबतक टाइम पास करना होगा...कार्यक्रम चल ही रहे हैं..."
"यदि ऐसा है तो आपको मैं अपने प्रेस से परिचय करवा सकता हूं...यदि आप चलना पसंद करें तो...बहुत आनन्द आयेगा सबकुछ देख-समझकर..."
वर्तिका सिद्ध के व्यक्तित्व से तो प्रभावित थी ही, संग ही उसका मन प्रेस की जानकारी लेने को भी आकर्षित हो रहा था, अतः वह सिद्ध के संग प्रेस चलना स्वीकार कर लेती है...वहां सिद्ध वर्तिका को प्रेस का मुद्रणालय और औफिस दोनों ही दिखलाता है, संग ही सभी महत्त्वपूर्ण जानकारियां उसे देता है...अपने सहकर्मियों से मिलाता व अपने जौब की कार्यशैली भी बताता है...वर्तिका को सिद्ध का व्यक्तित्व तो आकर्षक लगा ही था, संग ही उसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति भी उसे बहुत मन भायी...सिद्ध उसे सारा प्रेस घुमाते हुए दिखला रहा है और वर्तिका कल्पना में ही गीत गा रही है- ’साथी...मिले तो मिले....ऐसा....जीवनसाथी....जीवनसाथी....’
"अब मुझे चलना चाहिये....बहुत समय हो गया मेरे बाहर रहते..."
"पुनः कब मिलेंगी....?"
"वो मैं स्वयम् फोन कर बताउंगी...और, आप मुझसे नहीं पूछेंगे, मैं ही आपको बताउंगी..."
तत्पश्चात् वर्तिका सिद्ध को बाय-बाय कर एक टैक्सी ले अपने आवास लौट जाती है....
देखते ही देखते एक मास बीत गया, पर वर्तिका का कोई कौल नहीं मिला सिद्ध को...हारकर सिद्ध ने वर्तिका को कौल किया -"एक मास बीत चुका पर आपके कौल का कहीं कोई चिह्न भी नहीं...?"
"वो तो है....तब भी, मैंने आपको कहा था कि मैं ही आपको कौल करुंगी, आप नहीं..."
"हां, तो मैंने पर्सनली कहां आपको फोन किया है...एक जर्नलिष्ट के रूप में ही आपको फोन किया है कि यदि मि. सुरेन्द्राचार्य के संग इण्टरव्यू निश्चित की जा सके....?"
"वो अभी भी तन्त्रसाधना में व्यस्त हैं..." वर्तिका ने इतने साधारण स्वर में कहा कि सिद्ध ने और कुछ बोलना पसंद नहीं किया और फोन रख दिया...सहसा सिद्ध का मन वर्तिका से कुछ पूछने को हुआ और उसने वर्तिका को डायल किया, पर घण्टी बजते में उसने बात करने का विचार छोड दिया और कौल डिस्कनेक्ट कर दिया...वर्तिका उसका कौल डिस्कनेक्ट हो गया देख उसे कौल करती है...
"अन्ततः आपने मुझे कौल कर ही दिया...इतने विलम्ब से किया, पर किया तो..."
"पर मैंने तो आपका मिस्ड कौल देख आपको कौल किया है...."
"चाहे जिस भी कारण से किया हो, पर किया तो....नाउ नो लौंगर देयर एग्जिष्ट्स एनी कण्डीशन...."
"इट्स ओके...मान लिया...पर...मैंने मित्रता बढाने में इतना विलम्ब इसलिये किया क्योंकि मेरा मानना है कि जो काम स्वाभाविक गति और रूप से होता है उससे जीवन को लाभ मिलता है, विकास होता है..."
"आप कब मिल रही हैं मुझसे...?"
"यदि आप यहां आयें, तो दोनों मिल विचार करते हैं..."
"ओके...मैं अभी पहुंच रहा हूं...." सिद्ध बाइक से वर्तिका के आवास पहुंचता है....
"पापा अभी भी अपनी तान्त्रिक साधनाओं में वैसे ही व्यस्त हैं....सो आज भी आप उनका इण्टरव्यू तो नहीं ले सकते...पर मैं ऐवेलेवल हूं....यदि आप मेरा इण्टरव्यू लेना चाहें तो....."
"श्योर...आप ये बतायें कि आपने मुझमें जो अरुचि दिखायी उसका क्या कारण हो सकता है...?"
"ऐक्चुअलि, बात ऐसी है कि, मैं आपके न्यूज और इनवेष्टीगेशन्स बडी रुचि से पढती हूं...बहुत ही डिफरेण्ट लाइफ-ष्टाइल पाया मैंने आपका...पर, अब...अभी आपसे बातें करती हुई मैं स्वयम् को हल्का अनुभव कर रही हूं....(कुछ रुककर) अच्छा, आज भी क्या कुछ ज्ञानवर्धन का प्रोग्राम बनेगा...आइ मीन, कहीं घूमने-दिखाने का...?"
"आज मैं एक अन्य, और भी बडा प्रेस दिखला-घुमा सकता हूं...."
"ऐज यू डिसाइड...."
वर्तिका सिद्ध के बाइक पर बैठी है....सिद्ध की बाइक एक मल्टीप्लेक्स के आगे से गुजरती है....
"क्यों न एक फिल्म देखी जाये....?" वर्तिका बोली... दोनों फिल्म देखते हैं....तत्पश्चात्..."अब आगे...वहां कितना समय लगेगा....?"
"वहां भी कोई तीन घण्टे लग जायेंगे...."
"पर इतना समय कहां बचा है आज....हां...आधा-एक घण्टा कहीं और बीताया जा सकता है..."
"कहां...?"
"जैसे किसी रेष्टोरेण्ट में, या किसी पार्क में..."
दोनों निकट ही स्थित एक रेष्टोरेण्ट में जाते हैं....दोनों वहां कुछ खा रहे हैं और कौफी पी रहे हैं....कुछ छलक जाता है वर्तिका के हाथ पर...सिद्ध बडे प्यार से उसके हाथ पर से कौफी हटाता हुआ सहलाता है...दोनों में निकटता बढती जाती है....कभी उद्यानों में संग घूम रहे हैं तो कभी लोकल ट्रेन में, बस में संग भ्रमण कर रहे हैं...ये कितने प्यार से हंस-हंसकर बातें कर रहे हैं...और ये लो गले भी लग गये....दोनों को प्रेम हो गया एक-दूजे के संग...प्रेमगीत गा रहे हैं...
सुरेन्द्राचार्य ने पर्याप्त तान्त्रिक साधनायें कीं...उसकी मानसिक शक्ति बहुत प्रबल हो चुकी थी....उसने कई आत्माओं से बातें कीं...एक आत्मा को तो उसने अपना दास बना लिया था...पर वह आत्मा सुरेन्द्राचार्य को उतना ही लाभ पहुंचा सकता था जितनी उसकी शक्ति थी...वह आत्मा तुरत ही किसी भी व्यक्ति के मन-आत्मा से सम्पर्क कर उसके भूतकाल और वर्तमान के सम्बन्ध में सारी बातें जान लेता था....पर किसी के भविष्य की बातें जान लेना उसके लिये प्रायः असम्भव ही था...पर अब सुरेन्द्राचार्य भी मानसिक रूप से इतना अधिक बली हो गया था कि वह किसी भी व्यक्ति के मन-आत्मा से सम्पर्क कर न केवल उसके मन की सारी बातें जान ले अपितु उसके मन को प्रभावित कर उससे कुछ भी बोलवा ले या उसका कुछ भी अच्छा-बुरा करने का मन बना उससे कुछ भी करवा ले...ऐसा अनुभव करने के पश्चात् उसका मन उस मन्त्रीपत्नी सीता देवी पर गया जिससे अपमानित हो ही वह इतने अधिक लगन से वह इन तन्त्र-मन्त्र की क्रियाओं में संलग्न हुआ था...सर्वप्रथम तो वह उसे धन्यवाद देना चाहा, पर दूसरे क्षण वह उसकी धमकी आदि की घटनाओं का स्मरण करते हुए उसका मन क्रुद्ध हुआ...पर सावधानी से उसने सीता देवी को मन से देखा....वह किचेन में कोई डिश बना रही थी...उसके हाथ में चाकु था...चाकु उसकी अंगुली पर रगड खा गया सुरेन्द्राचार्य के मानसिक प्रभाव से...वह चिल्लायी, रक्त निकलने लगा था...यद्यपि सुरेन्द्राचार्य समर्थ था सीता देवी को बहुत ही संकट में डाल देने में, पर मन्त्री से भय खाते हुए उसने और अधिक कुछ नहीं किया कि यदि मन्त्री जान गया उसके इस मानसिक प्रभाव को तो वह उसे मरवा भी दे सकता है...
अब सुरेन्द्राचार्य औफिस में पूर्ववत् (like before) बैठने लगा....एक व्यक्ति उसके पास जन्मकुण्डली बनवाने आया...साधारण जन्मकुण्डली साधारण फलविवरण के संग बनवाने की फीस मात्र ५०१ रुपये....उसने रुपये दिये...
"वैसे तो मैं ५००१ से न्यून में कोई जन्मकुण्डली आदि कुछ भी बनाने का इच्छुक नहीं हूं...पर उतने रुपये देनेवाले भी तो हों...विदेश चला जाउं तो यह हो सकता है...पर धनव्यय भी तो बढ जायेगा...कोई बात नहीं..." वह व्यक्ति समक्ष (सामने) बैठा था....सुरेन्द्राचार्य ने उसका मन टटोलना आरम्भ किया...सुरेन्द्राचार्य ने उससे कोई प्रश्न नहीं पूछा, पर जो १५-२० मिनट् पर्यन्त उस व्यक्ति के मन में प्रश्न स्वयम् ही उठने लगे और वह उनके उत्तर सोचते रहा....इस प्रकार वह प्रायः सभी प्रमुख बातों पर विचार करते रहा, जैसे- उस व्यक्ति का लक्ष्य क्या है, उसका स्वभाव कैसा है...उसका सेक्सुअल रिलेशन कैसा है...वह क्या जौब करता है....और ऐसे ही प्रश्न उसके परिवार के लोगों के सम्बन्ध में भी...इन बातों पर उसका मन घूमता रहा...जब वह बाहर निकला तो ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका माइण्ड मसाज कर दिया हो...जब उसे वह जन्मकुण्डली मिली तो उसके फलविवरणों को पढ उसके परिवार आदि के लोग बहुत प्रसन्न हुए...सुरेन्द्राचार्य का नाम और भी प्रसरा (फैला)...यद्यपि सुरेन्द्राचार्य कुछ वर्ष पूर्व पर्यन्त सन्तोषजनक भविष्यवाणी करने में समर्थ था, पर तत्पश्चात् सांसारिकता में अत्यधिक फंस उसकी वह भविष्य जान पाने की शक्ति बहुत न्यून हो गयी थी...अब भी उसकी वैसी ही स्थिति थी पर अन्तर इस बात का था कि अब वह तान्त्रिक व मानसिक शक्तियों को कुछ सीमा में पा गया था...ऐसे ही उसने जब कुछ और लोगों के संग किया तो लोगों को सन्देह होने लगा कि सुरेन्द्राचार्य ऐसे उनके मन की बातें जान ले रहा है...इसके पूर्व कि उसकी कुख्याति हो वह सावधान हो गया और यह काम वह अपने दास आत्मा से करवाने लगा...दास आत्मा कब किसके मन से कैसे क्या-क्या जानकारी ले ले इसका किसीको आभास भी नहीं हो पाता था...यह आत्मा की मायाविनी शक्ति थी...इस प्रकार सुरेन्द्राचार्य ने बहुत धन अर्जित किया...उसका सपना था एक करोडों रुपये का आवास ले उसमें अपना भव्य निवास और व्यवसाय दोनों चलाये...इसके लिये उसे अभी भी बहुत धन अर्जित करना था...वह इतना अधिक कृपण (कंजूस) स्वभाव का व्यक्ति था कि किसी से सौ या पचास रुपये भी कम फीस लेना उसे अच्छा नहीं लगता था...मन्त्रसिद्धि से प्राप्त दास आत्मा का उसने इतना मनमाना उपयोग किया कि एक दिन उसे वह दास कहीं भी अनुभव में नहीं आ रहा था...वह उसे कहीं भी नहीं पा पा रहा था....तन्त्र-मन्त्रसाधना से प्राप्त दास आत्मा पर्याप्त फल दे सदा के लिये चला गया था...मन्त्रसिद्धियों से प्राप्त फल भी एक निश्चित समय पर्यन्त ही मिलता रहता है, तत्पश्चात् पुण्य या फलप्राप्ति की क्षमता का अन्त हो जाता है...तब, साहस न खो सुरेन्द्राचार्य स्वयम् ही मन एकाग्र कर शरीर से बाहर आत्मा के रूप में निकलता है और जिस भी व्यक्ति को पहुंचना चाहे वहां पहुंच जाता है और सभी अभीष्ट जानकारी प्राप्त कर लेता है....पुनः निज शरीर में प्रत्यागत हो (वापस लौट) जाता है...इस प्रकार उसका काम पूर्ववत् बनने लगा...परन्तु वह स्वामी के स्वभाव का व्यक्ति था, जबकि यह काम सेवक का था, अतः उसे यह रुचा नहीं....एक दिन वह आत्मा के रूप में बाहर भ्रमण कर रहा था तो उसने देखा कि एक व्यक्ति भोलानाथ जौब न मिलने से दुःखी हो कह रहा था- ’हे भगवान्, मौत आ जाये तो सभी समस्यायों से छुटकारा मिल जाये...’ सुरेन्द्राचार्य ने उससे सहानुभूति दिखायी....वह उससे कहता है- "क्यों मरना चाहते हो..."
"यह जीवन एक समस्या बन गया है....इससे छुटकारा पाने के लिये...."
"मरकर जब तुम आत्मा के रूप में भटकोगे, समस्या तब उत्पन्न हो जायेगी..."
"प्रतिदिन की रोटी-रुपयों की आवश्यकता तो नहीं रह जायेगी..."
"तो चलो मेरे संग...मैं तुम्हारी यह समस्या दूर कर देता हूं..." सुरेन्द्राचार्य भोलानाथ को मार्ग दिखाता हुआ अपने आवास ले आता है...वह उसे प्रशिक्षित कर आत्मा के रूप में अन्यों की जानकारी लेने भेजने लगता है...भोलानाथ उस दास आत्मा जैसा ही सुरेन्द्राचार्य की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में समर्थ सिद्ध होता है...भोलानाथ उस शिष्य के संग ही औफिस में रहने लगा...अब पुनः सुरेन्द्राचार्य आराम से दोनों हाथों से रुपये बटोरने में लग गया...पर कितना भी रुपया अर्जित करे (कमाये) उसकी प्यास बुझती नहीं थी, क्योंकि उसे करोडों रुपये एकत्र (इकट्ठा) करने थे...वह सौ - दो सौ रुपये भी आता देख बहुत उत्साहित हो जाता था...
दैव पथ पर चलता जा रहा है...वह मोटे शरीर का एक हसमुख व्यक्ति है जिसका व्यक्तित्व हिन्दी फिल्मों के देवेन वर्मा से बहुत मिलता-जुलता है... एक स्थान पर एक बोर्ड पर उसकी दृष्टि पडती है -’ज्योतिषाचार्य तन्त्र मन्त्र सम्राट् श्री श्री सुरेन्द्राचार्य स्वामी.... जिनकी सैंकडों ही नहीं सहस्रों भविष्यवाणियां अभी तक सच्ची निकल चुकी हैं...तन्त्र और मन्त्र के अनुष्ठान से स्वामी जी सभी की मनःकामनायें पूरी करते हैं...पता-.......’
"अरे वाह!....मुझे एक ब्रैण्ड न्यू कार चाहिये....क्या तन्त्र मन्त्र के अनुष्ठान से मेरी यह कामना पूरी हो जायेगी...!"
वह सुरेन्द्राचार्य के औफिस का पता पूछते वहां पहुंच जाता है और उन शिष्यों से कहता है- "मुझे चाहिये बहुत ही आकर्षक आधुनिक आरामदायक कुछ...क्या मिल जा सकता है स्वामी जी के तन्त्र और मन्त्र के अनुष्ठान से...?"
"आइये आइये...अवश्य...यहां लोग रिक्त (खाली) हाथ आते हैं और झोली भर ही लौटते हैं...हमारे गुरुजी तन्त्र मन्त्र सम्राट् हैं...अनगिनत लोगों ने यहां से सुख-समृद्धि पायी है...आपको श्रीमान् क्या काम करवाना है...?"
"करवाना नहीं, कुछ पाना है...यदि यहां से मिल जाये तो..."
"क्या...?"
"वह मैं तन्त्र मन्त्र सम्राट् ज्योतिषाचार्य जी से ही बताउंगा..."
"तो आप अपना प्रश्न इस कागज पर लिखकर दे दें...."
दैव कागज पर लिखता है -"मुझे चाहिये कुछ बहुत ही आकर्षक आधुनिक आरामदायक, पूर्णतया नवीन...." शिष्य प्रश्न को सुरेन्द्राचार्य पर्यन्त (तक) पहुंचाता है....पुनः शिष्य दैव से -"देखिये, जितना ही बडा काम होता है उतने ही अधिक रुपयों की फीस देनी पडती है हमारे गुरुजी को...तभी आपके मनोरथ पूरे होंगे..."
"रुपये...?तो रुपये देने पडेंगे...? कोई बात नहीं...पर मुझे चाहिये पूर्णतया ब्रैण्ड न्यू और आरामप्रद...कितने रुपये देने पडेंगे...?
"आप कितना देना चाहेंगे...?"
"देखो, तीस-चालीस हजार रुपये तो मैं सेकेण्ड हैण्ड के लिये देने को तैयार हूं....पर ब्रैण्ड न्यू भी मुझे इतने ही रुपयों में मिल जाये यह मेरा मनोरथ है..."
"तो आप अपना मनोरथ पूर्ण करने के लिये तीस-चालीस हजार रुपये देने को तैयार हैं..."
"हां..."
"ठीक है...आपका काम हो जायेगा...रुपये दे दें, या लेते आयें...."
दैव प्रसन्नमन से आवास जाता है और सबको बताता है कि मात्र तीस-चालीस हजार रुपयों में ही उसे एक ब्रैण्ड न्यू कार मिलने वाला है...सभी आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता व्यक्त करते हैं...दैव को वह शिष्य फोन करता है कि वह कल सायंकाल पांच बजे कुल चालीस सहस्र रुपये ले आ जाये, तब वह और गुरुजी दोनों श्मशान जायेंगे जहां गुरुजी का तन्त्र-मन्त्र-अनुष्ठान चला करता है.... दैव समय से रुपये ले वहां उपस्थित हो जाता है...सुरेन्द्राचार्य उसे अपने कार में बैठा श्मशान ले जाता है....दोनों श्मशान में उसी खण्डहर के उस भाग में बैठे हैं....सुरेन्द्राचार्य -"संकल्प लें...कामना बोलें...."
"मुझे चाहिये पूर्णतया ब्रैण्ड न्यू आकर्षक आधुनिक आरामदायक, वह मुझे यथाशीघ्र(as soon as possible), नहीं, अतिशीघ्र(very soon) मिल जाये..."
सुरेन्द्राचार्य मन्त्रजाप और हवन कर रहा है...कुछ रात हो गयी है....-"आपकी कामना अवश्य पूर्ण होगी..."
"कब..?"
"यथाशीघ्र..."
"मुझे यहां और कितना समय रुकना पडेगा...?"
"अर्धरात्रि, अर्थात् रात के १२ बजे पर्यन्त...वैसे आप चाहें तो अभी भी जा सकते हैं..."
"हां...पर यहां से आवास मैं जाउं कैसे...?"
"बाहर मेन रोड से यदि कोई औटो आदि कुछ मिल जाये....मैं भी आपको कार से आपके आवास छोड दे सकता हूं, पर उसके लिये आपको मेरे रुकने तक रुकना पडेगा..."
"नहीं, नहीं, मैं चलता हूं...प्रणाम..." दैव बाहर मैदान में निकला....श्मशान से मेन रोड पर्यन्त जानेवाली मिट्टी वाली कच्ची सडक पर उसने देखा कि एक मारुति वैन टेंढी अवस्था में खडी है...वह उसके किनारे से निकल आगे बढा, पर पुनः पीछे मुड देखा कि यह वैन इस अवस्था में बीच सडक पर क्यों लगी है...! वह वैन के ड्राइविंग सीट की ओर आ देखा तो पाया ड्राइवर श्टेयरिंग पर सर रखा जैसे सो रहा हो...यह यदि उसे कुछ भी दूर छोड दे, ऐसा सोच उसने उसे स्वर दिया, पर कोई उत्तर न मिला...तब दैव ने उसके कन्धे पर हाथ रखा, कोई प्रतिक्रिया नहीं, तब उसने उसके कन्धे को हिलाया, और उस व्यक्ति का शरीर सीट पर गिर पडा....दैव ने उसके सर को उठाया तो उसकी आंखें आधी खुलीं, पर वह कुछ बोल नहीं पाया...सामने उसे पानी भरा बौटल रखा दिखा...उसने उससे पानी के छींटे उसकी आंखों पर मारे...उसके मुंह में भी बोटल घुसा कुछ पानी पिलाने का प्रयास किया, तो उस व्यक्ति कमलेश ने नींद भरी आंखें खोलीं...कमलेश -"कृपया मुझे हौस्पीटल ले चलो...ये चाभी है...मुझे किसी ने विष मिला ड्रिंक पिला दिया है... दैव किसी प्रकार वैन चलाता एक हौस्पीटल पहुंचता है...वहां कमलेश को ऐड्मिट करवाता है...कमलेश का उपचार कर विष उसके शरीर से निकाल दिया जाता है और बेडरेष्ट करने को कहा जाता है...दैव भी रात वहीं बीताता है...प्रातःकाल कमलेश को उसके आवास पहुंचाता है...वहां कमलेश के पत्नी-बच्चे उसका बहुत आभार व्यक्त करते हैं...तत्पश्चात् वह अपने आवास लौट आता है...
दिन में वह उत्साहपूर्वक औफिस पहुंचता है...शिष्य उसे देख मुस्कुराते हैं- "श्रीमान्, कैसा रहा रात का अनुभव...?"
"बहुत अच्छा रहा...ये तो बतायें, जो चाहिये वह मुझे कबतक मिल जायेगा...?"
"काम आपका हो जायेगा...जो आपको चाहिये वह आपको मिल जायेगा...मन्त्रानुष्ठान चालु है..."
"तब भी, कुछ अनुमान बतायें...कितना समय लग जायेगा...फल मिलने में...?"
"फल हो सकता है एक वर्ष में मिले...या दो वर्ष भी लग जा सकता है....सच पूछिये तो श्रीमान् कुछ निश्चित समय नहीं बताया जा सकता है...यह कार्य ही धैर्य का है..."
पर दैव ने धैर्य खोते हुए पूछा -"मुझे तो तुरत चाहिये था...क्या मेरे रुपये मुझे वापस मिल जायेंगे...?"
"सारी प्रक्रिया चल रही है और रुपये वापसी की बात...! दुबारा मुंह से निकालना भी मत, नहीं तो न केवल तुम्हारी कामनासिद्धि के लिये किये जा रहे मन्त्रानुष्ठान रुक जायेंगे अपितु(moreover) तुम्हारे रुपये भी डूब जायेंगे...."
लुटा-सा दैव उस औफिस से बाहर निकला और मरे हुए मन जैसी स्थिति में सोचा अब कहां जाये और क्या करे...कुछ मिनटों पर्यन्त इधर-उधर भटकता उसे कमलेश का स्मरण आया...वह उसे देखने उसके आवास पहुंचा...वहां उसका स्वागत हुआ...कमलेश आराम से विस्तर पर लेटा आराम कर रहा था...उसे नींबु+चीनी+नमक+पानी का पेय पीने दिया गया था...वह दैव को देख बहुत प्रसन्न हुआ - "मैं आपका बडा उपकार मानता हूं जो आपने मेरे प्राण बचाये...नहीं तो यदि कुछ घण्टे और वहां यदि मैं उस स्थिति में रहता तो निश्चय ही मेरी मृत्यु हो गयी रहती..."
कुछ मुस्कुराने का प्रयास करते दैव ने कहा-"हा हा हा...मैं कौन होता हूं आपको बचानेवाला...यह आपका भाग्य ही था जो आप बच गये...मैं तो उधर जाता भी नहीं...यह तो संयोग ही था कि मैं...."
कमलेश ने जिज्ञासापूर्वक पूछा -"हां हां...आप उधर कैसे गये थे...?
"अरे क्या बताउं...आपने इस ज्योतिषी और तान्त्रिक सुरेन्द्राचार्य का नाम तो सुना होगा...उसने मेरी कामना पूरी करने के नाम पर मुझसे चालीस हजार रुपये लिये, और अब कहता है कि मेरी कामना एक वर्ष में पूरी हो सकती है, दो वर्ष भी लग जा सकते हैं, कुछ भी निश्चित समय बताया नहीं जा सकता..."
"क्या कामना है आपकी...?"
"एक ब्रैण्ड न्यू कार..."
"हा हा हा...ऐसा कोई वस्तु क्रय करना हो तो शौप जायेंगे या मन्त्रानुष्ठान कर कामनासिद्धि करेंगे...! आजकल इंष्टौल्मेण्ट पर ब्रैण्ड न्यू कार सरलता से मिल जाया करती है...जैसे, नैनो सस्ती और अच्छी कार है...क्या जौब करते हैं आप...?"
"मेरी एक ष्टेशनरी और बुक्स की शौप है....हां...इतनी अच्छी आय तो हो जाया करती है कि मैं इंष्टाल्मेण्ट पर कार ले सकुं...पर उस समय मेरे मन में यह बात तो आयी नहीं..."
"कोई बात नहीं...मैं आपको दिलवा देता हूं..."
"पर मेरे चालीस हजार रुपये, डूब जो गये...?"
"डूब कैसे गये...?मैं बात करता हूं सुरेन्द्राचार्य से...रुपये तो उसे लौटाने ही होंगे...अरे, कार क्रय करना हो तो मार्केट चलो, रुपये दो और कार लो...यदि तन्त्र-मन्त्र के बल पर लेना हो तो विना रुपये लगाये लो...नाममात्र के रुपये लगाओ -सौ, दो-चार सौ रुपये...तब भी क्या कार क्या प्रकट होगी...? कल चलते हैं उससे मिलने..."
अगले दिन कमलेश दैव को उसके आवास से ले सुरेन्द्राचार्य के औफिस पहुंचा...वहां सुरेन्द्राचार्य के शिष्यों ने उन्हें सुरेन्द्राचार्य से मिलने में बाधा डाली....पर कमलेश चिल्लाने लगा...’कैसे रुपये नहीं लौटाओगे...तुम्हारी ठगी नहीं चलेगी...’ घबडाकर सुरेन्द्राचार्य निकला- "क्या बात हो गयी....आइये आइये, शान्ति से बैठ बात करें... हां, कहिये, क्या कहना चाहते हैं आप...?"
"यदि कार क्रय करना हो तो मार्केट गया और रुपये दे कार संग ले आया...कोई उसके लिये वर्ष-दो वर्ष प्रतीक्षा करेगा...? अतः विना विलम्ब किये सारे रुपये लौटा दें..."
"रुपये श्रीमान् मन्त्रानुष्ठान में इन्वेष्ट कर दिये गये हैं...फलप्राप्ति में चाहे जितना भी समय लगे...धैर्य रखें..."
"आजतक नहीं सुना कि कार क्रय करने के स्थान पर मन्त्रानुष्ठान किये जाने से कार प्रकट होगी..."
"हमें यह नहीं बताया गया था कि कार का क्रय करना है, केवल कामनासिद्धि की बात कही गयी थी..."
"तब भी, हमें नयी कार या तो सप्ताह भर में दिला दो या वापस कर दो हमारे चालीस हजार रुपये..."
"ऐसे नहीं... रुपये वापस नहीं होते ...”
"सीधे से रुपये दे रहे या नहीं...? मेरे पास दूसरे उपाय भी हैं सच्चाइ के रुपये वापस लेने के..."
"क्या हैं...?"
"तुम्हें...अभी तुम्हारी गर्दन पकड मैं यहीं तुम्हारी धुलाई करने लग जाउंगा...उठुं क्या...?" कमलेश ने मुक्का मारा टेबल पर कि कुछ वस्तुयें उछलीं..."
उसके आक्रामक मुख को देखते हुए सुरेन्द्राचार्य ने चालीस हजार का लोभ छोड देने में ही अपनी भलाई समझी...- "ठीक है...आप चलें, निकट के एटीएम को...वहां मैं रुपये निकाल आपको देता हूं..."
तीनों एटीएम पहुंचे...दैव और कमलेश रुपये ले वैन की ओर बढे, और सुरेन्द्राचार्य औफिस की ओर...दैव की प्रसन्नता की सीमा नहीं थी...दोनों कुछ मिनट वैन में बैठे प्रसन्नतापूर्वक बातें करते रहे, तत्पश्चात् कमलेश ने वैन चालु करना चाहा पर वैन ष्टार्ट हुआ नहीं...सुरेन्द्राचार्य क्रुद्ध मन से औफिस में बैठा था और मन से कमलेश और दैव को देख-सुन रहा था...उसने अपनी मानसिक शक्ति से वैन को चालु होने नहीं दिया...तब परेशान हो दोनों ने वैन को धक्का दे आगे बढाने का प्रयास किया...पर यह क्या...! वैन जैसे जाम पड गया हो, और हिला तक भी नहीं...तब कमलेश ने दैव को कहा वह वैन में बैठे तबतक वह किसी मेकैनिक को बुला लाता है... कमलेश एक मेकैनिक के समीप पहुंचता है...सुरेन्द्राचार्य ने अपनी मानसिक शक्ति से वैन को तो जाम कर ही रखा है, अब वह मेकैनिक के मन को भी कमलेश के विरुद्ध कर देता है...इससे मेकैनिक उसके संग चलना अस्वीकार कर देता है...अधिक रुपये देने का लोभ देनेपर भी जब मेकैनिक चलने को नहीं माना तो कमलेश को आश्चर्य हुआ और वहां से वह चलने को पीछे मुडा और आगे बढा...परन्तु सहसा वह एक समीप खडी बाइक से टकरा गया...बाइक पलट गयी...इसपर मेकैनिक ने क्रोध में कुछ कहा...कमलेश ने भी क्रोध में ही उसको उत्तर दिया...देखते ही देखते दोनों में बाताबाती बढने लगी...तब अन्य मेकैनिक आदि भी वहां आ कमलेश को धमकाते हैं कि चुपचाप चले जाओ नहीं तो मार खाओगे...अपमानित अनुभव करता कमलेश वहां से बाहर रोड पर आ सोचता है कि अब क्या करे....एक मेकैनिक उसका परिचित है, कमलेश उसे मोबाइल से फोन कर बुलाना चाहता है, पर सुरेन्द्राचार्य की दृष्टि उसके मोबाइल पर जाती है और मोबाइल से उसका उस मेकैनिक से सम्पर्क नहीं बन पाता है...कमलेश को लगता है कि उसका दिन आज अच्छा नहीं है....ऐसा विचार करते ही वह स्वयम् को बहुत दुर्बल अनुभव करने लगता है...उसे लगता है जैसे उसपर दीनता (miserability) छा गयी है....सुरेन्द्राचार्य उसकी दीनता को अपने मन की आंखों से देख रहा है...यह देख कि उसका दुश्मन अब बहुत ही दुर्बल स्थिति में पहुंच गया है उसे अपनी मानसिक शक्ति से मारने लगता है...कमलेश को लगता है कि कोई उसे घूंसे और कोडे से मार रहा है...उसे तीव्र पीडा हो रही है पर उससे बचने का कोई उपाय उसे नहीं सूझ पा रहा है...वह कुछ ही मिनटों में ’आह आह’ चिल्लाता पथ पर गिर पडता है और अचेत हो जाता है....कुछ मिनट और प्रतीक्षा कर जब दैव कमलेश को नहीं लौटता पाता है तो उसी दिशा में आगे बढता है जिस दिशा में कमलेश गया था...कुछ दूर जाने पर वह कमलेश को पथ पर अचेत गिरा पाता है...वह उसे उठा एक औटो में बिठा हौस्पीटल ले जाता है...वहां कमलेश को ऐड्मिट करा दैव एक मेकैनिक को संग लाता है वैन को रिपेयर करवाने...परन्तु मेकैनिक के श्टार्ट करते ही वैन चालु हो जाता है, क्योंकि तब सुरेन्द्राचार्य ने उसपर अपना मानसिक प्रभाव नहीं डाल रखा था...सुरेन्द्राचार्य ने कमलेश की मानसिक पिटायी कर सन्तुष्ट मन से अपने अन्य कार्यों में स्वयम् को व्यस्त कर लिया था...दैव तत्पश्चात् वैन से बैंक जा चालीस सहस्र रुपये जमा कर देता है, आवास जा आराम से खाता-पीता है, तत्पश्चात् हौस्पीटल जाता है कमलेश को देखने...कमलेश को चेत (होश) आ गया था...डौक्टर्स ने इसे मेण्टल एण्ड हेल्थ वीकनेस बता हेल्थ टौनिक और पौष्टिक आहार आदि लेने का परामर्श दे कमलेश को छुट्टी दे दी...दैव कमलेश को ले उसके आवास चला जाता है...कुछ ही घण्टों में कमलेश खा-पी स्वस्थ अनुभव करने लगता है...वह निज संग घटी बात दैव एवम् परिवार के लोगों को बताता है पर सभी इस पर ध्यान न दे इसे स्वास्थ्य की दुर्बलता ही मानते हैं..
सिद्ध और वर्तिका का प्रेम प्रसंग दिन प्रतिदिन और भी अधिक बली होता चला जा रहा है....दोनों प्रेमगीत गा रहे हैं...दृश्य विविध स्थानों के...एक उद्यान में वर्तिका सिद्ध के कन्धे पर सर रखी धीमे-धीमे बोल रही है....-"हमलोग विवाह कर लें तो कैसा रहेगा...?"
"और भी अच्छा होगा...."...
"जैसे...?"
"जैसे, हमारे पास होंगे पूरे २४ घण्टे होंगे आनन्द के संग बीताने को...."
"तो....?"
"तो क्या...?"
"तो क्या करें अब, इसके लिये...?"
"विवाह के लिये तो विवाह ही किया जा सकता है...चलो, बात करते हैं तुम्हारे पिता से..."
"चलो..."
इस समय सुरेन्द्राचार्य औफिस में था, अतः दोनों वहीं पहुंचते हैं....वर्तिका और सिद्ध सीधे जाकर सुरेन्द्राचार्य से मिलते हैं....सिद्ध सुरेन्द्राचार्य को प्रणाम करता है....वर्तिका सिद्ध का परिचय कराती है और कहती है कि दोनों विवाह करना चाहते हैं, और इसके लिये उनकी अनुमति चाहिये...
"मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम दोनों में से कौन किसको अधिक चाहता है...?"
"हमदोनों एक-दूसरे को समान ही रूप से चाहते हैं...."
"ऐसा नहीं हो सकता है....एक में कुछ न्यूनता और दूसरे में कुछ प्रेम अवश्य होगा....किसमें है,,,?"
"पापा, आप भी कैसी बात कर रहे हैं...जितना सिद्ध मुझे चाहता है उतना ही मैं इसे चाहती हूं..."
"अच्छा...ये तो बताओ...तुम दोनों में से कौन दूसरे से मिलने को अधिक उत्सुक रहा करता था जिससे तुमदोनों का प्रेम आज इस स्थिति में आ पहुंचा है कि विवाह करने जा रहे हो....?"
"हूं..." दोनों चुप रह गये...तत्पश्चात् चुप्पी तोडते हुए सिद्ध ने कहा - "यह मैं था जो आरम्भ में अधिक उत्सुक था वर्तिका संग मित्रता बढाने को..."
"अर्थात् तुम चाहते हो वर्तिका से विवाह करना...और जिसे जो चाहिये होता है उसे उसके लिये मूल्य देना पडता है...बताओ, तुम कितने लाख रुपये देने को तैयार हो वर्तिका से विवाह करने के लिये...?"
"पापा, आप यह कैसी बात कर रहे हैं...रुपये यदि कोई देगा तो आप देंगे, न कि ये....!"
"देखो, संसार का यह साधारण सा नियम है कि जिसे किसी वस्तु की कामना होती है वह उसे उसका मूल्य चुका पाता है...अतः सिद्ध को भी मूल्य देना होगा यदि तुम्हें यह अपने संग सदा के लिये ले जाना चाहता है...कितने लाख रुपये देने में यह समर्थ हो सकता है यह यह स्वयम् ही बताये...तबतक तुम इससे नहीं मिलोगी...अब आप श्रीमान् सिद्ध, जा सकते हैं..."
सिद्ध उठा, वर्तिका की आंखों में देखा, और चला गया...
कमलेश की मानसिक पिटायी की घटना के पश्चात् सुरेन्द्राचार्य को मानसिक आक्रमण और पिटायी का जैसे स्वाद लग गया था....नगर में एक राष्ट्रीय स्तर का ’ज्योतिष और तन्त्र विज्ञान सम्मेलन’ आयोजित किया गया था जिसमें सुरेन्द्राचार्य सहित देश के कई ज्योतिषी और तान्त्रिक आमन्त्रित किये गये थे...प्रत्येक को भाषण देने के संग-संग अभी तक की निज उपलब्धियां दिखलानी थी...सुरेन्द्राचार्य ने बढ-चढकर अभी तक की अपनी उपलब्धियां दिखायीं तथा भाषण एवम् प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में भाग लिया...परन्तु पुरस्कार मिलते समय उसी नगर का एक अन्य ज्योतिषी और तान्त्रिक प्रथम आया, जबकि सुरेन्द्राचार्य का स्थान छ्ठा था...यह देख सुरेन्द्राचार्य का हृदय जलने लगा...उसका अहंकार स्वयम् को किसी भी से न्यून मानने को तैयार नहीं था...सुरेन्द्राचार्य ने विजेता ज्योतिषी से बातें कीं, पर उससे वह कोई विद्वत्तापूर्ण उत्तर नहीं पा पाया, जबकि विजेता की प्रशंसायें और प्रसिद्धि प्रसरती ही जा रही थी...सुरेन्द्राचार्य इसे सह नहीं पा रहा था...एक दिन विजेता कहीं आमन्त्रित हुआ भाषण दे रहा था तो इसकी जानकारी सुरेन्द्राचार्य को मिली और उसने अपनी मानसिक शक्ति से विजेता की मानसिक शक्ति को अवरुद्ध कर दिया जिससे वह अच्छे से बोल नहीं पाया....उसे अपना सारा ज्ञान भूला जान पडा...इससे उसकी लोगों में छवि बिगडी....सुरेन्द्राचार्य का मन कुछ सन्तुष्ट हुआ...उसने विजेता के निजी जीवन में भी बाधा डालना आरम्भ किया...उसने भोलानाथ को आत्मा के रूप में विजेता के सर पर रहने को भेज दिया...अब सुरेन्द्राचार्य जैसा चाहता था वैसा भोलानाथ विजेता के लिये समस्यायें उत्पन्न करता था...विजेता जिससे भी बातें करता, भोलानाथ उसे विजेता के विरुद्ध प्रेरणा देता...विजेता जो भी सोचता विचारता वह सब भोलानाथ जानता रहता...और तो और भोलानाथ ने विजेता के मल-मूत्र त्यागने में भी अपनी आत्मिक-मानसिक शक्ति से बाधायें डालनी आरम्भ कर दीं...सुरेन्द्राचार्य ने विजेता के जीवन को परेशान करने में अपना अधिक से अधिक समय लगाना आरम्भ कर दिया...यह उसके मनोरंजन का विषय हो गया था...विजेता को सोने में भी बहुत बाधा डलवाता रहा...इस प्रकार सुरेन्द्राचार्य का जीवन अब शैतानी खेल खेलने लगा था...उसे भोलानाथ के माध्यम से विजेता को परेशान करना इतना मन भाया कि उसने सपना देखना आरम्भ किया कि उसके अधिकार में भोलानाथ जैसे सैंकडों आत्मायें हैं, वह उन सबको आदेश दे रहा है....कई आत्मायें उसके समक्ष नृत्य कर रहे हैं...वह उन आत्माओं को पूरे संसार में कहीं भी भेज अपनी इच्छानुसार कोई भी काम करवा ले रहा है...जो भी उसके विरुद्ध जाता है, उसके आत्मायें उस व्यक्ति को मार-मारकर धराशायी कर देते हैं...इस प्रकार पूरे संसार का राजा बन बैठा है...एक गीत चल रहा है...’सारे संसार का राजा...हां हां मैं राजा...बन मैं गया हूं...है किसी में यदि बल...तो सामने मेरे आजा...’
सिद्ध के प्रेस का एक सहकर्मी वर्धन अपनी एक व्यक्तिगत समस्या को लेकर सुरेन्द्राचार्य के समीप गया हाथ दिखाने...उससे भोलानाथ ने ५०१/- रुपये की फीस ली...तत्पश्चात् सुरेन्द्राचार्य ने जो भी उसे भूत भविष्य और वर्तमान के फल बताये उन्हें सुनकर वर्धन की भौंहें तन गयीं...- "ये आप क्या बता रहे हैं...?आप मेरा हाथ देख रहे हैं या किसी और का...? आपके सम्बन्ध में इतना नाम सुना था, पर सब पर आपने पानी फेर दिया...ऐसी आशा नहीं थी आपसे....अच्छा ये रहेगा कि आप मुझे रुपये लौटा दें..."
"रुपये नहीं लौटाये जाते...यदि ऐसे लौटाये जाने लगे तो मेरा औफिस बन्द हो जायेगा..."
"ये मेरे गाढे परिश्रम से अर्जित धन है...व्यर्थ लुटाने को नहीं..."
"यदि किसी भी ज्योतिषी को दिया धन कभी किसी ने लौटाया हो तो मैं भी लौटा दूं..."
"आपको लौटाना होगा...पूरे पांच सौ एक रुपये...एक भी रुपया नहीं छोडुंगा..."
"अब आप जा सकते हैं..."
"मैं केवल जा ही नहीं सकता हूं, लौट आ भी सकता हूं, वह भी पुलिस के साथ...."
"पुलिस...! पुलिस का इसमें क्या काम?...रुपये देते हैं लोग और अपना भविष्यफल सुन चले जाते हैं लोग यहां से..."
"पर यहां पुलिस में मेरे परिचय के लोग हैं...वे मेरी बात सुनेंगे और समझेंगे, न कि वह जो तुम समझा रहे हो...वे मुझे जानते हैं और तुम्हारा फलकथन कितना सच्चा है यह जान जायेंगे..."
"हूं...मैं आपका हाथ पुनः देखता हूं...." सुरेन्द्राचार्य तुरत भोलानाथ की सहायता से वर्धन की जानकारी प्राप्त करता है और उसके भूत और वर्तमान के सम्बन्ध में जानी हुई बातें दुहरा देता है, और भविष्य के सम्बन्ध में गोलमटोल बातें बता देता है...
"भूत और वर्तमान की बातों को जानने में मेरी कोई रुचि नहीं है...और, आप जो यह कह रहे कि अगले मास मेरे पैर की पीडा ठीक हो जायेगी तो यह वर्षों से ठीक नहीं हुई है तथा डौक्टर्स भी इस सम्बन्ध में निश्चित नहीं हैं कि कैसे ठीक होगी यह पीडा...अगले दो-तीन मासों में चार चक्कों की गाडी मिलनेवाली है इसमें कोई बल नहीं...मैं स्वयम् क्रय करने नहीं जा रहा, और कहीं और से मिले इसकी कोई कोई आशा नहीं...आयु...कौन जाने अभी बीस वर्ष और जीयुंगा या बीस मास और...इस वर्ष मेरा प्रोमोशन होगा, यह कदापि सम्भव नहीं...मुझे जीवन में बहुत प्रसिद्धि मिले ऐसा कोई काम मैं न तो करता हूं और न करनेवाला हूं...सामान्य ही जीवन रहेगा...इसलिये रुपये लौटा दो...."
"अब तो तुम पुलिस बुला भी लो, इतने सच्चे फलकथन किये हैं..."
"तो तु चल पुलिस ष्टेशन...:" ऐसा कहते-कहते वर्धन ने अपने छाते से सुरेन्द्राचार्य की गर्दन पकड खींचा...सुरेन्द्राचार्य कुछ क्षणों के लिये स्तब्ध रह गया...उसे ऐसी आशा न थी...कुछ सम्भलकर उसने भोलानाथ को बुलाया और कहा वह वर्धन को रुपये लौटा दे...वर्धन रुपये ले चला गया... सुरेन्द्राचार्य की आंखें लाल थीं...उसे अपनी ही जन्मकुण्डली और दशा-अन्तर्दशा के अध्ययन की आवश्यकता जान पड रही थी...
वर्धन वहां से निकला तो सीधा एल आई सी औफिस पहुंचा...वहां वह कक्ष में आराम से बैठा वह अपनी ली पौलिसी के सम्बन्ध में और अधिक जानकारी ले रहा था...वह इसकी चौथे प्रीमियम को जमा करने आया था...उसने अपने बांयें पैर के टखने के ऊपर पुनः पीडा होता अनुभव किया...वहां उसकी हड्डी और नसों में रह-रहकर ऐसी पीडा होने लगती थी कि वह उसे बडी कठिनाई से ही सह पाता था...वह मुख्य रूप से इसी समस्या के सम्बन्ध में भविष्य जानने सुरेन्द्राचार्य के समीप गया था, पर उसे कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया...वह कभी इधर कभी उधर विचार कर ही रहा था कि सहसा उसके टखने के समीप पुनः पीडा उभरी...एक मैसर महेन्द्र था जो वहां तुरत मालिश कर उसे पर्याप्त आराम पहुंचाता था...पर वह यहां कहां...! ओह्...यह पीडा तो अति तीव्र हो गयी...इतनी तीव्र हुई कि वह चेत खोने लगा और वह लडखडाकर कुर्सी से नीचे गिर गया...लोगों ने सुशीघ्र (फटाफट) उसे उठाया और बैठाने का प्रयास किया, पर यह क्या...ये तो सांसें नहीं ले रहे हैं....वर्धन के प्राण निकल चुके थे...लोग इतना तो समझ गये थे कि टखने के समीप हुई अतितीव्र पीडा से ही उनकी मृत्यु हुई...वहीं कुछ लोगों ने अनुमान किया कि सम्भवतः हार्ट-अटैक से उसकी म्रृत्यु हुई...यद्यपि वर्धन की आयु अभी मात्र ४५ वर्ष हुई थी...कक्ष के अन्दर सीसीटीवी लगा हुआ था जिसमें वह सारी घटना रिकौर्ड हो रही थी....वर्धन ने जो जीवन बीमा करवा रखा था उसका पूरी धनराशि अब उसके परिवार वालों को मिलनी निश्चित थी...यह स्वाभाविक मृत्यु थी जिसका साक्षी (गवाह) स्वयम् एल आई सी औफिस था....जब बहुत समय बीता और सिद्ध के निकट बैठनेवाला उसका मित्र और सहकर्मी वर्धन जब लौट नहीं आया तो सिद्ध को चिन्ता हुई...उसने उसे फोन किया...वर्धन के मोबाइल की घण्टी बजी..."हलो..."
किसी ने सिद्ध से बोला जो वर्धन का स्वर नहीं था..."कौन....? मि. वर्धन कहां हैं...? मुझे उनसे बात करनी है..."
"आप कौन बोल रहे हैं...?"
"मैं उनका कौलीग बोल रहा हूं..."
"अच्छा...अच्छा रहेगा यदि आप एल आई सी औफिस आ जायें...उनकी सहसा मृत्यु हो गयी है..." सिद्ध यह सुन जैसे सन्न रह गया...अभी-अभी वर्धन उससे यह कह निकला था कि वह कोई दो-ढाई घण्टों में लौट आयेगा, उसे प्रीमियम जमा करनी है, पर उससे पूर्व कुछ और भी काम है...सिद्ध विना विलम्ब किये निकल पडा...वहां पहुंच वह देखता है बहुत भीड लगी है अभी भी...सबसे बडी चर्चा की यह बात थी कि मरनेवाले ने एक करोड का जीवन बीमा करवा रखा था जिसके अभी चौथे ही प्रीमियम को भरने का समय आया था...मरनेवाला मरा पर अपने परिवार को एक करोड का लाभ करवा गया, ऐसी चर्चा भी सुनने को मिल रही थी...सिद्ध का मन इसे स्वाभाविक मृत्यु मानने को तैयार नहीं था....कैसे आराम से प्रसन्नतापूर्वक वर्धन उससे बातें कर रहा था अभी कुछ ही घण्टे पूर्व...उसे ऐसी कोई भी बडी समस्या या रोग नहीं था जो उसे अभी मौत ला दे....कोई शत्रु...उसकी भी आशंका नहीं थी....सिद्ध ने विना विलम्ब किये वहां फोटोग्राफ्स आदि लिये और लोगों के वक्तव्य भी रिकार्ड किये...सभी सहमत थे इस बात पर कि यह एक स्वाभाविक मौत थी, अतिरिक्त सिद्ध के, जो यह मानने को तैयार नहीं था...उसने सिद्ध की पत्नी से सम्पर्क किया...वहां पहुंच बातें कीं...
भाभी - "देवर नन्दन ने बहुत आग्रह कर वर्धन से एक करोड की पौलिसी लेने पर उन्हें विवश कर दिया...वैसे, वर्धन स्वयम् ही नन्दन को बहुत चाहते थे...उनने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् नन्दन का सारा उत्तरदायित्व अपने हाथों में लिया और भलीभांति निभाया...पिता ने मृत्यु से पूर्व सारी सम्पत्ति इनके ही नाम कर दी थी कि वह सबका उत्तरदायित्व ले और समय पर नन्दन को उसका भाग दे दे...अतः वर्धन ने अपनी वसीयत तैयार करवा उसमें अपनी आधी चल-अचल सम्पत्ति अपने अनुज भ्राता नन्दन के नाम कर दी थी...अभी जो जीवन बीमा करवाया था उसका भी आधा भाग नन्दन को मिलेगा...पर, एक बात है...मैं सदा ही देवर नन्दन के विरुद्ध रही वसीयत करवाने के पश्चात्...मुझे उसे आधा भाग मिलना पसन्द नहीं आया, और मैं इसका सदा विरोध करती रही...मैंने यह भी कहा कि वे वसीयत पुनः बनवा नन्दन को कुछ ही भाग दें, आधा नहीं...नन्दन को इस बात की जानकारी थी और वह मुझसे इस बात का भय करता भी था कि कहीं वर्धन मेरे बहकावे में यदि आ गये तो...! तब भी, उसकी नन्दन के संग औपचारिक बातें, और वह भी प्यार दिखाते हुए हुआ करती थी...छः कक्षों का यह फ्लैट था जिसके एक कोने में एक कक्ष बाथरूम-टाय्लेट और किचेन के संग था जिसमें नन्दन रहा करता है...शेष पांच कक्षों में वर्धन का परिवार रहता है....नन्दन का कक्ष अन्दर अन्य कक्षों में तो खुलता ही था, उसका निकास द्वार बाहर की ओर भी था...जिससे चाहे तो नन्दन अन्दर सम्पर्क करनेवाले द्वारों को बन्द कर बाहर के द्वार पर ताला लगा एक सेपरेट सिंगल रूम फ्लैट जैसा भी रहता है....खाना हमलोगों के संग ही खाता है, पर चाहे तो स्वयम् भी अपने किचेन में बना सकता है या बाहर भी खा सकता है...’"
"क्या अभी ष्टडी कर रहा है या जौब...?"
"उसे फोटोग्रैफी-वीडियोग्रैफी में बहुत रुचि रही है, और जो उसे बहुत रुचता रहा उसे ही उसने प्रोफेशन के रूप में भी चुना...कुछ ऐसा ही काम किया करता है..."
"तो, वर्धन की मृत्यु से यदि किसी को सबसे अधिक लाभ हुआ, अर्थात् होगा, तो वह है नन्दन...."
"हां, ये तो है ही..."
"तो...कहीं उसका कोई हाथ तो नहीं वर्धन की मृत्यु में...?"
"मुझे तो पूरी आशंका है कि नन्दन का इसमें हाथ है...क्योंकि इस बात का बडा भय था कि कहीं वर्धन मेरे बहकावे में आ वसीयत में परिवर्तन करवा दें...इसलिये, यह हो सकता है कि उसने बडी चतुराई से उनकी ऐसी हत्या करवा दी जो स्वाभाविक मौत लगे...और वह भी एल आई सी औफिस में ही, जिससे बीमा की राशि विना किसी झंझट के मिल जाये....सबसे बडी बात तो यह है कि यह बीमा वर्धन ने मात्र नन्दन के बहुत आग्रह करने पर ही लिया था...नन्दन ने वर्धन की जमापूंजी कोई दस-बारह लाख रुपयों के बल पर इस एक करोड की पौलिसी को लिये जाने की बात कही थी....यह आश्वासन दिया था कि यदि चाहें तो समय से पूर्व भी, कभी भी वे जमा किये गये सारे रुपये वापस ले ले सकते हैं, इसलिये भय करने की कोई आवश्यकता नहीं है...तब भी जब वर्धन का मन तैयार नहीं हो रहा था तो वह उन्हें बहुत अनुरोध कर संग अपने एल आई सी औफिस ले गया और फर्ष्ट प्रीमियम भी उसी ने भरा था..."
"हूं...." सिद्ध का माइण्ड बहुत तीव्रगति से सभी बातों पर सभी कोणों से विचार कर रहा था...सिद्ध एक प्रेस रिपोर्टर ही नहीं, एक केस-इन्वेष्टीगेटर भी था...पर ऐसी स्थिति में ऐसे स्थान पर मृत्यु हुई थी कि एल आई सी को किसी भी प्रकार से मर्डर की आशंका नहीं हुई, और न ही कोई ऐसा कोई रोग जानने में आ पाया जो उसकी मौत का कारण जान पडे.....अतः मौत के कारण की स्पष्ट जानकारी न मिल पाने के कारण यह एक स्वाभाविक ही मृत्यु मानी गयी और जीवन बीमा के सारे रुपये विना किसी विशेष बाधा के मिल गये जो वसीयत के अनुसार आधा नन्दन को तथा आधा भाभी को मिला...इसके लिये नन्दन ने ही विशेष भागदौड की कि एल आई सी रुपये दे दे...अब नन्दन का खाना-पीना प्रायः अपने कक्ष में ही या बाहर कहीं होता था...उसके कक्ष के अन्दर के द्वार अब प्रायः बन्द ही रहते थे...अभी अन्य चल-अचल सम्पत्तियों बंटवारा होना शेष था....इधर जब भी सिद्ध ने भाभी से बातें कीं, भाभी यही आशंका व्यक्त करती रही कि बडी चतुराई से नन्दन ने ही वर्धन की हत्या करवा दी है क्योंकि उसे ही भय था वसीयत से बाहर कर दिये जाने का...तो, सिद्ध ने भाभी के इस विश्वास पर ध्यान देते हुा ए इस सम्बन्ध में छानबीन करने का निर्णय लिया....भाभी ने वर्धन की कार सिद्ध को इन्वेष्टीगेशन करने तक के लिये दे दी और संग ही यह भी कहा कि वह पेट्रोल की भी चिन्ता ने करे, पेट्रोल भरवाने का काम उसी का रहेगा...केवल वह मन लगाकर प्रूफ के संग हत्यारे को पकडवा दे...तब सिद्ध ने गम्भीरता से इस केस के इन्वेष्टीगेशन का दायित्व अपने हाथों में लिया...सिद्ध ने स्मरण किया कि उस दिन वर्धन यह कह बाहर निकले थे कि उन्हें एल आइ सी आदि में कुछ काम है...दो-ढाई घण्टे में वापस लौट आयेंगे...अपनी कार न ले जा वह टैक्सी से ही जा-आ रहे हैं...पर एल आई सी औफिस के सीसीटीवी के अनुसार प्रेस से निकलने के कोई डेढ घण्टे पश्चात् ही वह वहां पहुंचे थे...तो इस मध्य वह कहां-कहां गये....? कैसे जानकारी मिलेगी...? उसने उनके मोबाइल सिम कम्पनी के औफिस से जानकारी लेनी चाही तो वहां से यह ज्ञात हुआ कि उस दिन उस डेढ घण्टे में केवल एक ही कौल किया गया था - प्रेस से निकलते समय उनने सुरेन्द्राचार्य के औफिस को फोन किया था और कोई ढाई मिनट बात की थी...’तो वर्धन अवश्य वहीं गये होंगे....’ ऐसी सम्भावना रखते हुए सिद्ध ने सुरेन्द्राचार्य के औफिस में फोन कर पूछा कि उस दिन वर्धन वहां आये थे या नहीं...? शिष्य ने रजिष्टर खोल कर देखा और बताया - "हां...वर्धन उस दिन वहां आये थे, पर..."
"पर क्या...? कोई विशेष बात हुई थी...?"
"नहीं....उनने हाथ दिखलाया था अपना भविष्य जानने के लिये, ऐसा लिखा है..."
"अच्छा...कितने मिनट वहां रुके होंगे...?"
"जी, जहां तक मुझे स्मरण आ रहा है...कोई बीस-पच्चीस मिनट रुके होंगे..."
"वहां से आगे कहां गये...? कुछ ऐसी कोई बात हुई होगी...?"
"जी नहीं...हमलोगों से इस सम्बन्ध में कोई बात नहीं हुई..."
"ठीक है..." ऐसा कह सिद्ध मोबाइल रख लेता है पौकेट में...’प्रेस से ज्योतिष कार्यालय, और वहां से एल आई सी....इतने में डेढ घण्टे का समय पूरा सेट बैठता है...पर यह भी तो हो सकता है कि मार्ग में किसी से एक-दो मिनट के लिये भी कोई झंझट हो गया हो...सम्भवतः वहां से कुछ विशेष जानकारी मिल पाये, चलो चलें ?’ सिद्ध ने कार निकाली, आराम से ड्राइविंग सीट पर बैठा, और पहुंच गया एल आई सी औफिस...जब सिद्ध ने पूछताछ की तो उस दिन उपस्थित कर्मचारी आदि लोगों से यह जानकारी मिली कि उस कक्ष में जब वर्धन चीख मार गिर पडे तो लोगों ने उन्हें घेर लिया...उस समय भीड में एक नया व्यक्ति दिखा था...जो मध्यम मुटाई और लम्बाई का था, तथा टाइट वस्त्र पहने था...वह व्यक्ति न तो उससे पूर्व कभी वहां दिखा था और न ही उसके पश्चात् कभी वहां दिखा...कब आया था...तो जब वर्धन चीख मार गिर पडे थे उसके पश्चात् ही वह वहां आया था...अर्थात् वर्धन की मृत्यु में उसपर सन्देह करने की आवश्यकता नहीं है...तब भी, सिद्ध ने सीसीटीवी फुटेज ध्यान से देखा, और उसकी एक कौपी इन्वेष्टीगेशन के लिये आवश्यक बता रख ली...संग ही, उपस्थित सभी व्यक्तियों के नाम, पता, फोन नं. आदि विवरण सिद्ध ने नोट कर रख लिये...
अब कहां पूछताछ की जाये....भाभी से और जानकारियां प्राप्त की जायें...उसने कार की गति भाभी के आवास की दिशा में बढायी...
भाभी से पूछने पर यह ज्ञात हुआ कि यद्यपि वर्धन स्वस्थ थे पर बांयें पैर के टखने के ऊपर की नसों को छूने पर या वहां हल्की सी भी चोट लगने पर उन्हें बहुत तीव्र पीडा हो जाया करती थी...अन्यथा उन्हें किसी भी प्रकार का कोई रोग आदि कोई समस्या नहीं थी....वे रोगरहित घोषित थे डौक्टर्स द्वारा...क्योंकि टखने के ऊपर नसों की समस्या डौक्टर्स के जानने में नहीं आ पायी कि वहां वैसा कुछ है, और यदि है तो क्यों है...! इस कारण से एक मैसर उन्हें मसाज करने नियमित रूप से प्रत्येक दिन आया करता था...
"उनसे अन्तिम बार कब मिला था वह मैसर...?"
"उस दिन के ठीक पिछले दिन...वैसे मैसर को जब भी बुलाया जाये तभी वह आ जाया करता था...सम्भव है, उस दिन वह औफिस से आने के पश्चात् बुलाते..."
"अच्छा, उनलोगों के विवरण जिनसे उनकी हल्की भी तानातानी हुई हो...या जो उनके प्रति हल्की भी शत्रुता, द्वेष, जलन, ईर्ष्या, आदि कुछ भी विरोध का भाव रखते हों....?"
"अर्थात् जिनपर मुझे सन्देह हो...तो वह है नन्दन....अन्य कौन उन्हें मौत की नीन्द सुला प्रसन्न होना चाहेगा...." तब भी, वह कुछ वैसे व्यक्तियों के नाम, पता आदि बताती है...तत्पश्चात् वह उन लोगों के भी विवरण देती है जो वर्धन के प्रति अच्छा भाव रखते हैं... सिद्ध के इतने विवरण नोट करते-करते एक लम्बी लिष्ट बन गयी थी...उसने सोचा वह अब किन किन से क्या क्या पूछताछ करे...
"इस मैसर से सम्पर्क क्या आपने समाचारपत्रों में विज्ञापन देख किया था...?"
"न..."
"तो...?"
"यह नन्दन के द्वारा लाया गया है...हुआ यूं कि एक दिन सहसा (अचानक) वर्धन अचेत हो गये थे आवास में....उन्हें यूं अस्त-व्यस्त स्थिति में देख जब मैंने उन्हें झकझोडकर उठाया, तो उन्हें चेत (होश) आ गया...और उनने बताया कि चलते हुए में बांयें टखने के ऊपर टकराने से चक्कर खा वे गिर गये और अचेत हो गये....तब नन्दन ने एक मैसर महेन्द्र को बुलाया जो नियमित रूप से वर्धन की मालिश करते रहा है...."
"अच्छा, नन्दन ने...? नन्दन को यह मैसर कहां मिला...?"
"नन्दन कभी अपने मित्रों संग बातें कर रहा था, तो संयोगवश किसी ने मैसर का परिचय उनलोगों से कराया कि यदि आवश्यकता पडे तो इसे आप बुला सकते हैं- लेस चार्ज गुड रिजल्ट...नन्दन को तो कभी आवश्यकता नहीं पडी, पर उसे वह स्मरण था, इस कारण वर्धन के लिये ही बुलाया...और तो और, ये करोड रुपये का जो लाभ मिला, यह भी नन्दन के ही मस्तिष्क की उपज थी...उसने ही इस पौलिसी की बात बतायी...पर इसके इतने बडे प्रीमियम को देखते हुए वर्धन ने कहा कि प्रश्न ही नहीं उठता इस पौलिसी के लिये जाने का, क्योंकि इतना बडा प्रीमियम प्रत्येक मास हमलोग कैसे भर सकते हैं...? कोई उद्योगपति तो हैं नहीं....! तब नन्दन ने विश्वास दिलाया कि ’अभी आप अपनी दस-बारह लाख की जमापूंजी से प्रीमियम भरें...तबतक और रुपये भी अर्जित किये जा रहे हैं....मुझे तो अपना भविष्य पूर्णतया निखरा दिखता है.. और तो और, जब चाहें तब आप तबतक भरे गये प्रीमियमों की कुल धनराशि वापस ले ले सकते हैं...केवल ब्याज नहीं मिलेगा...’ यह सुन वर्धन मान गये कि यह पौलिसी ली जा सकती है, पर तब भी जब वे तैयार नहीं हुए जाने को तब नन्दन स्वयम् ही प्रथम प्रीमियम की धनराशि हाथ में ले कहा कि आरम्भ का प्रीमियम वह भरेगा, ऐसा कह वर्धन को कार में बैठा लेता गया एल आई सी औफिस कि ’आप केवल वैसा करते जायें जैसा मैं कह रहा हूं...’
"हूं....लगता है, नन्दन ने पूरा प्लान बना रखा था....तभी मात्र चौथे प्रीमियम तक पहुंच ही मृत्यु हो गयी...वह भी एल आई सी औफिस में...और वह भी वीडियो-रिकार्डेड नेचुरल डेथ...किसी बहुत ही चतुर मस्तिष्क का काम है यह...एनिवे, आपको मैं दिखाता हूं...ये वर्धन के डेथ के समय की वीडियो रिकार्डिंग...."
भाभी, उसके पुत्र और पुत्री, तथा सिद्ध सभी वह वीडियो-रिकार्डिंग भाभी के लैप्टौप पर देख रहे हैं....
"अरे...यह तो मैसर है..." पुत्री ने महेन्द्र की ओर संकेत करते हुए कहा...उसके भाई और मां ने भी आश्चर्य व्यक्त किया...
"कहां...कौन है मैसर..?" सिद्ध भी चौंका...
"ये जो टाइट वस्त्र पहने मध्यम शरीर का व्यक्ति है..." तीनों ने एकस्वर में उस व्यक्ति की ओर संकेत किया...
"हूं...पर यह आया तब है जब वर्धन चीख मारकर भूमि पर गिर चुके हैं...." सिद्ध ने गम्भीर मुद्रा में सोचते हुए कहा..
"तब भी कोई सम्बन्ध हो सकता है इसका उनकी मृत्यु से...यह वहां गया ही क्यों था...?" भाभी क्रुद्ध हुई...
पूरी रिकौर्डिंग देखने के पश्चात् सिद्ध यह कहते हुए चला जाता है कि वह शीघ्र आपलोगों को सूचित करेगा इस सम्बन्ध में...परन्तु तबतक मेरे या इस वीडियो के सम्बन्ध में नन्दन या महेन्द्र से कुछ भी न कहें...
सिद्ध ने मोबाइल फोन निकाला और वर्तिका से बात की...वर्तिका -"इतने दिनों से तुमने मुझसे बात क्यों नहीं की...?"
"यही प्रश्न मैं तुमसे भी कर सकता हूं कि तुमने मुझसे बात क्यों नहीं की....?"
"मैं सोची क्या तुमने रुपये देने के भय से मुझसे विवाह करने का विचार छोड दिया क्या जो मुझसे बात नहीं कर रहे...!"
"बहुत अच्छा...मैंने भी कुछ ऐसा ही सोचा...मैंने सोचा....मैंने सोचा...मैंने क्या सोचा...? हां...मैंने सोचा, तुम मुझे फोन करोगी और बोलोगी कि यदि तु्म्हारे पापा रुपये लेने की मांग नहीं छोडते तो तुम अपने पापा को छोड मुझसे विवाह कर लोगी...इसी आशा में मैं था कि तुम कब मुझे ऐसा फोन करती हो..."
"न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि तुमने अभी-अभी ऐसा कहना सोचा...वास्तविक कारण मुझे बताओ..."
"पहले तुम बताओ, तुमने मुझे फोन क्यों नहीं किया...?"
"क्योंकि....क्योंकि...मैं चाहती थी कि तुम मुझे फोन करो....तत्पश्चात् हमदोनों मिल बैठ समस्या का समाधान ढूंढें..."
"तो ठीक है...फोन मैंने तुम्हें कर दिया...अब आओ, हम दोनों मिल बैठ समस्या का समाधान ढूंढें..."
"कहां मिलें...?"
"अपने आवास से बाहर निकल उत्तर की ओर के मोड पर मिलो..."
"ठीक है...मैं पन्द्रह मिनट पश्चात् वहां मिलुंगी...."
"मैं भी पहुंच रहा हूं..."
कोई सात-आठ मिनट से वर्तिका वहां खडी थी कि एक कार उसके समीप आ खडी हुई, अगला द्वार खुला, और अन्दर से स्वर (आवाज) आया -"आ जाओ..."
’हूं...ये स्वर तो जाना-सा है...जैसे सिद्ध ने पुकारा हो...’ वह चुप रही तो सिद्ध ने सिर बाहर निकाल दुहराया -"अब आ भी जाओ..."
तुरत वर्तिका अन्दर आ उसके बगल बैठ गयी...कार चल दी....सिद्ध उसे बताता है कि वास्तव में वह इन दिनों वर्धन की मृत्यु के केस के इन्वेष्टीगेशन में व्यस्त है...इस कारण वह उसे प्रायः भूला हुआ था...पर अब उसे वर्तिका का स्मरण हुआ क्योंकि उसे उसकी सहायता की आवश्यकता है इस कार्य में...
"मैं तुम्हारी इस कार्य में क्या सहायता कर सकती हूं...?"
"मेरी असिष्टेण्ट बनकर...मैं जैसा-जैसा कहुं तुम केवल वैसा-वैसा करती जाओ..."
सिद्ध ने कार भाभी के आवास के समीप स्थित झनकु पानवाले की शौप के समक्ष (सामने) रोका...
"भई पानवाले...क्या कुछ है...?"
"कई आइटम हैं...आप क्या लेंगे...?"
"जो स्वादिष्ट हो...और हानिकारक न हो...जैसे जर्दा आदि कुछ न हो..."
"तो मीठा पान लें..."
"नहीं नहीं...पान नहीं लेना है....कुछ और..." वर्तिका बोली..."न मैं खाउंगी पान, न तुम्हें यह खाते देखना मुझे रुचेगा..."
"तो कोई बात नहीं...आप गुलकन्द लें...इलायची लें...या अब बिस्किट या चौकलेट लें...ये ही सब वस्तुयें उपलब्ध हैं मेरे पास..."
"हां...गुलकन्द...और इलायची..." ऐसा कहते हुए सिद्ध उसकी ओर दस रुपये का नोट बढाता है...झनकु एक-एक पत्ते पर कुछ गुलकन्द और इलायची दोनों को देता है..."वाह...आपने तो मेरा मन प्रसन्न कर दिया...." झनकु मुस्कुराता है...
"एक बात और...यदि आप जानते हों....ये सामने जो मि. वर्धन का आवास है...उनकी मृत्यु के सम्बन्ध में कुछ आपको विशेष जानकारी, यदि हो, तो..."
"देखिये....कहां किसी को अन्दर की बातें जानी हुई होती हैं...जितना सुनने में आ जाये...पर सुनी-सुनायी बातों पर कितना विश्वास किया जा सकता है...!"
"तब भी...मैं उनकी मृत्यु के सम्बन्ध में इन्वेष्टीगेशन कर रहा हूं...ये मेरा आई-कार्ड..."
"अरे साहब...अवश्य बताउंगा...जो मेरी जानकारी में है...वर्धन साहब पान को पान बहुत पसन्द था, और प्रायः मेरे शौप से खाते और मंगवाते रहे...कई बार तो मैंने पान भिजवाने के स्थान पर स्वयम् ही जाकर दिया..."
"उनकी किसी से कोई दुश्मनी थी...? या, कोई उनके विरुद्ध बोलता हो....?"
"दुश्मनी तो मेरी जानकारी में किसी भी से नहीं थी...कोई उनके विरुद्ध भी नहीं बोलता था...पर...एक बात है...उनके यहां मालिश करनेवाला महेन्द्र आया करता था...कई बार वह भी उनके लिये पान लेने आया था...एक बार उसने बोला था कि यद्यपि वर्धन की आयु अभी मात्र ४५ वर्ष की है पर उसे लगता नहीं कि वे बहुत दिन जी पायेंगे...मैंने पूछा -’भैया ऐसा क्यों कहते हो...अभी तो उनके आनन्द लेने के दिन हैं....तो उसने बताया कि वर्धन साहब के बांयें टखने के पास ऐसा कुछ रोग है जो शायद उन्हें बहुत दिनों पर्यन्त जीने न दे..."
"हूं...और कुछ महेन्द्र के सम्बन्ध में कोई विशेष बात...? नन्दन के सम्बन्ध में...?"
"ये महेन्द्र मुझे कुछ सन्देहास्पद व्यक्ति लगा...उसे नन्दन ने ही वहां लाया था...दोनों पर ही सन्देह जाता है...क्योंकि, आप भी जानते होंगे, कि वर्धन साहब की मौत से यदि किसी को सबसे अधिक लाभ हुआ तो वह हुआ है नन्दन को...इस कारण से भी..."
"और कुछ...नन्दन का स्वभाव कैसा था...?"
"स्वभाव...तो बुरा नहीं था...पर, आये दिन उनसे स्त्रियां मिलने आया करती रहती थीं...अब भी...उनका रूम किनारे में अलग-सा है...रोड से लगा गेट...गेट के सामने ही उनके रूम का द्वार...रोड से दस-बारह पग चल उसके रूंम में पहुंच जाये कोई भी...अब वे स्त्रियां अन्दर क्या करती हैं ये तो मैंने देखा नहीं...द्वार केवल यहांसे दिखता रहता है..."
"और कुछ..."
"नहीं साहब...मैं इतना ही कुछ बता सकता हूं..."
सिद्ध वर्तिका के संग भाभी से मिलता है...सिद्ध -"आवश्यकता इस बात की है कि नन्दन के ऊपर दृष्टि रखी जाये....इसके लिये, उसके रूम में मिनी कैमरे ऐसे लगा दिये जायें कि उसे इस बात का सन्देह भी न होने पाये.."
इसके पश्चात् भाभी से अनुमति पा सिद्ध एक कीमेकर को ले आता है और नन्दन की अनुपस्थिति में उसके बाहरी द्वार के लौक की डुप्लीकेट चाभी बनवा द्वार अनलौक करता है और अन्दर जा तीन वायरलेस मिनी कैमरे इंष्टाल कर देता है....इस अवधि में वर्तिका बाहर से द्वार लौक कर बाहर रोड किनारे लगी कार में बैठी सावधान चारों ओर दृष्टि घुमा रही है कि यदि वर्तिका या कोई अन्य उस रूम की ओर बढे तो वह तुरत सिद्ध के मोबाइल की घण्टी बजा दे....सिद्ध सफलतापूर्वक कैमरे इंष्टाल कर वर्तिका के मोबाइल की घण्टी बजाता है, तो वर्तिका तुरत आ बाहर से लौक्ड द्वार अन्लौक्ड करती है...द्वार को पुनः लौक्ड कर दोनों भाभी के समीप जाते हैं...भाभी के शेष पांच कक्षों के फ्लैट के एक कक्ष के कोने में भाभी का लैप्टौप इन्वर्टर से जुडा २४ घण्टे नन्दन के कक्ष के अन्दर के दृ्श्यों की रिकार्डिंग कर रहा है...इसके १००० जीबी के हार्डडिस्क में पर्याप्त स्थान है कई दिनों की रिकार्डिंग के लिये...पर सिद्ध ने जब कैमरों से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास किया तो केवल एक कैमरा ही सफलतापूर्वक काम कर रहा था...अन्य दोनों कैमरों के सुधार के लिये अब पुनः नन्दन के कक्ष में प्रवेश करना होगा...भाभी ने बताया कि परसों नन्दन दिल्ली जाने वाला है, उसके जाते ही वह सूचित करेगी...दोनों प्रत्येक घण्टे भाभी से नन्दन के जाने की जानकारी ले रहे थे...नन्दन के निकलते ही सिद्ध और वर्तिका कार से वहां पहुंच जाते हैं....पूर्ववत् (as before) वर्तिका द्वार बाहर से लौक्ड कर कार में बैठी सावधान दृष्टि से चारों ओर निरीक्षण कर रही है कि सहसा बाहर
गेट पर एक टैक्सी रुकती है...टैक्सी से नन्दन बाहर निकलता है...यह देख वर्तिका घबडा तुरत सिद्ध के मोबाइल की घण्टी बजाती है...सिद्ध के पूछने पर वर्तिका बताती है कि नन्दन बाहर गेट पर खडा टैक्सी वाले को रुपये दे रहा है...सिद्ध ने तुरत भाभी को फोन किया और कहा कि किसी भी स्थिति में नन्दन को उसके रूम में जाने न दें और अपने पांच मिनट भी अपने आवास के अन्दर बैठाये रखें...भाभी तुरत बाहर निकली और गेट से अन्दर आते देवर नन्दन को बडे प्यार से अपने आवास के अन्दर ले गयी....पूछने पर ज्ञात हुआ कि कुछ आवश्यक प्रपत्र (डौक्युमेण्ट्स) लेने उसे वापस आना पडा...तब भी भाभी ने उसे तबतक बाहर जाने नहीं दिया जबतक कि सिद्ध ने पुनः भाभी को कौल किया कि वह सुरक्षित बाहर आ चुका है और कार में बैठा है...भाभी ने देखा तबतक चार मिनट बीत चुके थे...उधर जैसे ही वर्तिका ने नन्दन को भाभी के आवास में अन्दर जाते देखा, उसने विना विलम्ब किये सिद्ध की ओर दौड लगायी और द्वार अन्लौक्ड किया...सिद्ध बाहर निकला, पुनः द्वार लौक्ड कर दोनों कार में जा समाये...
नन्दन के अपने कक्ष (रूम) में जाते ही सिद्ध और वर्तिका उस कक्ष में गये जहां लैप्टौप का सम्बन्ध उन कैमरों से था...अब तीनों ही कैमरे सफलतापूर्वक काम कर रहे थे...नन्दन के लौट आनेपर सिद्ध प्रत्येक दिन की रिकार्डिंग भाभी के आवास जा ले आने लगा...केवल एक दिन वह किसी स्त्री के संग सम्भोग करता पाया गया, अन्य दिनों वह सामान्य कर्मों को करता दिखता पाया गया...एक दिन की रिकौर्डिंग में वह किसी से मोबाइल से बात कर रहा था...उससे किसी ने कहा -"सेठ...कोई और काम बताओ...जितने रुपये तुमने दिये थे वे सब व्यय (खर्च) हो गये...(कुछ रुककर)...वैसे भी...इतने बडे काम के लिये इतने कम रुपये...या, कुछ रुपये ही और दे दो...."
"और रुपये...?"
"हां...इतने बडे काम के लिये केवल बीस हजार रुपये...! बहुत सस्ता रहा....ये भी तो सोचो सेठ तुम्हें कितना लाभ हुआ....इसलिये, कुछ और रुपये मांगने का मेरा अधिकार बनता है..."
"देखो...मेरे पास इस समय तुम्हारे लिये कोई काम नहीं है...और, जो डील एक बार हो चुका है -काम हो गया और पेमेण्ट भी कर दिया गया, उसे तुम अब क्या दुबारा तय करना चाहते हो...? मैं इस सम्बन्ध में विचार भी नहीं करना चाहता..." ऐसा कह नन्दन ने कौल डिस्कनेक्ट कर दिया...
सिद्ध ने तुरत नन्दन के मोबाइल सिम कम्पनी से सम्पर्क पूछा अभी नन्दन ने किससे बात की थी...जानकारी मिली कि यह था महेन्द्र...उसका मोबाइल नं. सिद्ध ने नोट किया...तुरत उसने महेन्द्र को फोन किया -"क्या मैं महेन्द्र जी से बात कर सकता हूं...?"
"हां मैं बोल रहा हूं..."
"आप क्या काम करते हैं...?"
"जी...मैं एक मैसर हूं..."
’मैसर....! यह वही मैसर महेन्द्र है...अर्थात् इसी ने वर्धन की हत्या की है जिसके लिये नन्दन ने बीस हजार रुपये दिये हैं...ओ नो...केस सौल्व्ड...!’ सिद्ध ने तुरत मैसर से कौल डिस्कनेक्ट कर वर्तिका से बात की, तत्पश्चात् दोनों भाभी के आवास पहुंचे और वह वीडियो रिकार्डिंग उन्हें दिखायी जिसमें नन्दन महेन्द्र से बात कर रहा है...सभी गम्भीर थे...यह जान जाने के पश्चात् भी विना प्रमाणों के कैसे उन दोनों को अपराधी ठहराया जा सकता था...? भाभी ने महेन्द्र को फोन किया -’अभी आ सकते क्या...? मसाज कराना है..."
महेन्द्र पन्द्रह-बीस मिनटों में ही आ गया...सिद्ध -"बहुत भागदौड कर थक जाता हूं...मेरा तन मालिश चाहता है...करोगे...?"
"जी सर...यही तो मेरा काम है..." वह वहीं सिद्ध की मालिश करता है...सिद्ध उसे दो सौ रुपये देता है जिसे महेन्द्र चुपचाप रख लेता है...
"ये केवल दो सौ रुपये हैं...इसका सौ गुणा कितना होगा...?"
"जी...बीस हजार रुपये..."
"यदि इतने रुपये तुम्हें दिये जायें तो तुम कितना बडा काम कर सकते हो...?
"मैं समझा नहीं सर....वैसे, दो सौ रुपये की रेट से सौ व्यक्तियों की मालिश करनी होगी...पर, आपसे मैंने कम रुपये लिये, नहीं तो मेरा रेट अधिक है..."
"अच्छा...सौ व्यक्ति नहीं, केवल एक ही व्यक्ति का काम करना हो...बीस हजार ले...तो...वह भी केवल एक बार के लिये....?"
"सर, आप तो हंसी कर रहे हैं...इतने रुपये कौन देगा....इस छोटे-से काम के लिये...!"
"छोटा-सा काम...? तुम्हें मालिश करनी है किसी के गर्दन की...इतनी मालिश कि पुनः उस गर्दन की मालिश न हो सके...वह टें बोल दे, सदा के लिये..."
"क्या मर्डर...?"
"अरे...तुम इसे मर्डर बोलते हो, मैं इसे मालिश बोलता हूं....यदि हां तो तुम्हें यह काम अभी मिल जा सकता है...बोलो..."
"नहीं नहीं सर...मैं कोई ऐसा-वैसा काम नहीं करना चाहता...अच्छा मैं जाउं...?" वह तुरत वहां से चला गया...
वर्तिका -"यह मनुष्य बहुत काम का जान पडता है....हमारे बहुत काम आ सकता है..."
"तुम्हारे काम....नो नो...मैं नहीं चाहता तुम्हारे यह काम आये....मैं जो हुं तुम्हारा काम करने के लिये..."
"काम...?कैसा काम...?"
"मालिश...और क्या...?"
"ओ नो....."
सिद्ध ने महेन्द्र के आवास जाने का विचार किया जिससे वह उसकी वास्तविक स्थिति का अनुमान लगा सके...उसे महेन्द्र के आवास का पता पूर्व (पहले) से ही ज्ञात था, अतः यह जान कि वह अभी आवास में है वहां पहुंच गया...- "जरा अपना बैंक पास-बुक दिखाना..." उसके पास बुक में डिपोजिट की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी...कभी एक हजार...पांच सौ रुपये...तो कभी दो हजार रुपये जमा किये गये थे प्रत्येक मास...केवल एक एण्ट्री थी दस हजार रुपये की बडी धनराशि की...और वह भी जमा की गयी थी वर्धन की मृत्यु के दो दिन पश्चात्..."कहां से आये ये दस हजार रुपये...?"
"जी, किसी से उधार लिया था..."
"हूं..." कोई और विशेष बात न पा वह उसे पास बुक लौटा देता है...पर महेन्द्र के पासबुक सूटकेस में रखते समय उसे पासबुक के आसपास कुछ और कागज दिखते हैं जिनकी ओर उसका मन आकर्षित हो जाता है...- "ये कागज कैसे है...?जरा दिखाना..."
सिद्ध पाता है कि वे अधिकतर कैश-मेमोज थे...ये ये ये...फ्रिज...वाशिंग मशीन...बडी धनराशि के क्रय (खरीद) हैं...इन दोनों के क्रय में लगी धनराशि प्रायः दस हजार रुपये...क्रय तिथि...वाह...दोनों की एक ही है...ओ नो...वर्धन की मृत्यु के अगले ही दिन..."केवल दस हजार ही नहीं, कुल बीस हजार रुपये इस दिनांक में तुम्हारे संग थे...किसने दिये तुम्हें इतने रुपये...?"
"जी...वर्धन के अनुज भ्राता नन्दन ने दिये थे...मैंने उधार मांगा था..."
"क्यों मांगा था उधार..? ऐसी क्या आवश्यकता आ पडी थी...? कहां है वह कागज जो तुम्हारे नन्दन से उधार लेने का प्रमाण है...?"
"जी, लिखा-पढी तो कुछ भी नहीं हुई थी...बस मुझे आवश्यकता थी और उनने मुझे हाथ में दे दिये.."
"कब लौटाओगे रुपये...? कोई काम तो नहीं करवाया था इन रुपयों को दे...?"
"जी, लौटाना तो कभी नहीं है...क्योंकि जो मैं वर्धन साहब की मालिश करता था, उसका पारिश्रमिक इन्हीं रुपयों से कटना था...:"
"अब लौटाओगे कैसे..?"
"जब वर्धन साहब नहीं रहे तो अब नन्दन साहब ही कभी-कभी मुझसे काम ले लिया करेंगे...ऐसे ही जितने भी समय में अब उधार चुके..."
सिद्ध तुरत भाभी को फोन कर महेन्द्र को दिये बीस हजार रुपयों के सम्बन्ध में पूछता है, पर भाभी ऐसे किसी उधार की जानकारी न होने की बात बताती है...महेन्द्र को प्रत्येक मास वह स्वयम् ही रुपये देती रही है...अर्थात् महेन्द्र झूठ बोल रहा है...
"भाभी कह रही है कि तुम प्रतिमास समय से पारिश्रमिक उन्हीं से लेते रहो हो, और नन्दन के संग ऐसी कोई बात नहीं हुई थी कि अब नन्दन तुम्हें पारिश्रमिक दिया करेगा...अतः स्पष्ट बताओ, बात क्या है...?"
महेन्द्र कुछ उत्तर नहीं दे पा रहा है...
"तो तुम मानते हो कि तुमने ये रुपये नन्दन से फ्री में लिये थे...? या कोई विशेष काम करने के लिये नन्दन ने तुम्हें ये रुपये दिये थे...?"
"हो सकता है वह भूल गयी हों...मुझे पारिश्रमिक देने के समय उन्हें स्मरण आता कि औलरेडी मुझे दिया जा चुका है..."
सिद्ध नन्दन को फोन करता है और पूछता है, पर वह महेन्द्र को कुछ सौ रुपये मात्र देने की बात स्वीकार करता है जो उसके पारिश्रमिक से कट जायेंगे...तब सिद्ध उस स्थान से सम्बद्ध पुलिस श्टेशन पहुंचता है और इंस्पेक्टर को सारी बात बताता है...इंस्पेक्टर फोन कर महेन्द्र को पास बुक और कैशमेमोज के संग बुलाता है...और उनका निरीक्षण करता है...-"वैसे तो यह केस हमारे अधिकार क्षेत्र का है, पर जब आप देख रहे हैं तो, यू प्रोसीड औन...मुझसे जो सहायता चाहिये वह आपको मिलता रहेगा...और हां महेन्द्र, तुम दिन भर इस नगर क्षेत्र के अन्दर ही जितना भी काम कर सकते हो, पर रात ८ से प्रातः ५ पर्यन्त तुम्हारा अपने आवास में रहना अनिवार्य है..."
सिद्ध और महेन्द्र दोनों पुलिस श्टेशन से चले जाते हैं...सिद्ध फोन कर वर्तिका को बुलाता है...दोनों एक कैफे में बैठ कौफी पी रहे हैं...तत्पश्चात् कार से आगे बढते हैं..."यूं तो मेरे पास कई सन्देहास्पद व्यक्तियों की सूची है, पर इस समय केवल नन्दन और महेन्द्र सन्देह की सूची में सबसे आगे हैं...
"However, we both now should enjoy the moments..."
सहसा चार बाइकर्स उसकी कार को चारों ओर से घेर रोक लेते हैं और धमकाते हैं -"ऐ छोकरे...तू जीना चाहता है तो रुपये कमा और आराम से खा...इधर-उधर झांकता न चल...कुछ समझा क्या...?"
इसके पूर्व कि वे कुछ और बोलें, सिद्ध अपना लाइसेन्सी रिवाल्वर ले बाहर निकलता है और कहता है -"मेरा काम ही है वह जिसे करने से तू रोकना चाहता है...तब मैं जीकर करुंगा भी क्या...? उसके बोल्डली बाहर आ साहस के संग ऐसे रिवाल्वर के संग बोलने से वे चारों घबडा गये और विना विलम्ब किये वहां से भाग गये...सिद्ध ने कार आगे बढायी और एक रेष्टोरेण्ट के आगे रोका....वे दोनों कुछ खा-पी रहे हैं....
"क्या महेन्द्र के भेजे गुण्डे थे वे....?"
"महेन्द्र इतना धनी तो लगता नहीं..."
"यदि नन्दन या महेन्द्र किसी एक से भी कडायी से पूछताछ की जाये तो रहस्य खुल जा सकता है कि किसने वर्धन की हत्या की और करवायी..."
एक व्यक्ति बगल वाले टेबल पर बैठा उन दोनों की बातें बडे ध्यान से पर सर झुकाये सुन रहा था...वह कहता है -"मैं आरम्भ से ही आप दोनों की बातें सुन रहा हूं...आपका कहना है कि मरनेवाले व्यक्ति को न तो कोई रोग था न किसी ने चोट पहुंचायी थी या किसी ने विष दिया था...पर वह सहसा चीख मार कुर्सी से गिर गया और देखते ही देखते मर गया...?"
"हां...पर एक कष्ट या रोग था कि उनके बांयें टखने के ऊपर हल्का भी चोट लगने पर उन्हें असहनीय पीडा होती थी...तब भी एल आई सी ने पूरा क्लेम दे दिया क्योंकि वह कोई रोग सिद्ध नहीं हो पाया था..."
"पर उस समय उन्हें चोट आदि कुछ भी नहीं लगा था...?"
"हां ऐसा ही है..."
"तब एक कारण मृत्यु का जो हो सकता है, जो मेरी जानकारी में है...सम्भवतः आप इससे सहमत न हों...वह है....वह अभी जाने दीजिये....वह मैं बाद में बताउंगा...तब जब मैं इस साधारण समझ की बात से सच न पा पाउं...मैं स्वयम् ही मिलता हूं महेन्द्र से...मेरा कुछ अलग ही ष्टाइल है सच उगलवाने का...पर उसका चार्ज आपको देना पडेगा..."
"कितना...?"
"अभी तो TA+DA+other expenses, but later the reward, only after success,that brings the real culprit behind bars..."
"दोनों में से एक से भी सच उगलवा देने में कितने रुपये लगेंगे...?"
"लगने को तो बहुत लगेंगे, पर अभी आप केवल एक हजार रुपये दे दें,...क्योंकि कुछ कर दिखाने के पश्चात् ही अपना मूल्य बताया जा सकता है, जो कहीं अधिक होगा..."
सिद्ध से नन्दन और महेन्द्र के ऐड्रेसेज और फोन नम्बर्स तथा एक हजार रुपये ले शीघ्र वहां से चला जाता है वह व्यक्ति....दोनों उसे जाता हुआ देख रहे हैं....
"मैंने एक हजार रुपये का रिस्क लिया है, परन्तु तभी जब वह व्यक्ति विश्वसनीय लगा..."
"अब आगे का क्या प्लान है...?"
"हमलोग प्रत्येक बीतते क्षण का आनन्द लें...कोई मूवी देखें..." दोनों एक मूवी देख रहे हैं...एक गाना चल रहा है...सिद्ध और वर्तिका स्वयम् की कल्पना हीरो-हीरोइन के स्थान पर कर रहे हैं जैसे वे दोनों ही वह गाना गा रहे हैं...गाना का अन्त होते-होते उस व्यक्ति औजस का फोन आता है कि उसने महेन्द्र से यह स्वीकार करवा लिया है कि उसने नन्दन से बीस हजार रुपये वर्धन की हत्या करने के लिये लिया था...स्वीकारोक्ति रिकार्डिड है...पर कैसे मारा यह बडा ही अलग ष्टाइल है उसका...क्योंकि उसका कहना है कि उसके मारे विना ही वह मर गया...उसका कहना है कि उसने केवल मारने को सोचा और वह मर गया...
औजस उस मूवी हौल को पहुंचता है और महेन्द्र के रिकार्डिड कथन उन्हें सुनाता है...
सिद्ध नन्दन को फोन करता है -"मिष्टर...महेन्द्र ने यह स्वीकार कर लिया है कि तुमने उसे बीस हजार रुपये दिये थे वर्धन की हत्या करने के लिये..."
"तो क्या हुआ...अभी कई ऐसे व्यक्ति मिल जायेंगे जो यह स्वीकार कर लेंगे कि तुमने उन्हें रुपये दिये थे वर्धन की हत्या करने के लिये..."
सिद्ध औजस से - "कोई प्रमाण भी तो होना चाहिये कि नन्दन ने महेन्द्र को दिये थे रुपये वर्धन की हत्या करने के लिये...? केवल आरोप लगा देने से वास्तविक अपराधी की जानकारी पायी नहीं जा सकती..."
औजस महेन्द्र से -"परन्तु इसका क्या प्रूफ है कि नन्दन ने ही तुमसे यह हत्या करवायी थी...?
"मैंने कोई हत्या नहीं की...मैं जब पहुंचा तो वर्धन वहां मरा पडा था...पर मैंने नन्दन से बीस हजार रुपये लेने के लिये यह कह दिया कि मैंने वर्धन की हत्या कर दी है..."
"पर नन्दन ने तुम्हें कौण्ट्रैक्ट किलर के रूप में वहां भेजा यह तुम्हें सिद्ध करना होगा..."
"ठीक है...मैं नन्दन से बात करता हूं जिसे रिकार्ड कर प्रूफ बनेगा..." वह नन्दन को फोन करता है -"साहब साहब मुझे बचा लीजिये...कुछ लोगों ने मुझे पकड लिया है और एक गोडाउन में बन्द कर दिया है...वे कहते हैं कि मैंने ही वर्धन साहब का मर्डर किया है...मुझे बचा लीजिये...."
"अरे साले कमीने...एक तो तूने उन्हें यह कहा कि मैंने तुझे बीस हजार रुपये दिये थे वर्धन के मर्डर के लिये, और अब तू चाहता है मैं तुझे बचाउं...?"
"जो सच था उन्होंने मेरे मुंह से निकलवा लिया, इतना विवश किया..."
"तो अब मर..."
"साहब मुझे मरने से बचा लीजिये...यदि मैं जीवित रहा तो आपके बहुत काम आउंगा..."
"ठीक है...कहां से बोल रहा है तू अभी...? मैं अभी अपने आदमियों को भेजता हूं..."
परन्तु तभी ’ऊह् आह् ..’ स्वर और ध्वनियां गूंजी और कौल डिस्कनेक्ट हो गया...
महेन्द्र -"ये रिकार्डिंग हो गयी, जो प्रूफ बन सकती है..."
सिद्ध, वर्तिका, औजस, महेन्द्र पुलिस ष्टेशन पहुंचते हैं और इंस्पेक्टर से मिल सारी बात बताते हैं और रिकार्डिंग की एक कौपी उसे सौंपते हैं...इंस्पेक्टर तुरत नन्दन को फोन कर थाना बुलाता है और अकेले उसे उस रिकार्डिंग को सुनाता है....नन्दन -"महेन्द्र ने मुझसे फोन कर कहा कि वह टायलेट से बोल रहा है...कुछ लोग उसे पकड यह कहने पर विवश कर रहे हैं कि आप ने ही मुझे बीस हजार रुपये दे वर्धन की हत्या का कौण्ट्रैक्ट दिया था...आप स्वीकार कर लें कि आप ही ने वर्धन को मार डालने की सुपारी मुझे दी थी, नहीं तो ये मुझे मार डाल सकते हैं...साहब मुझे बचा लीजिये...तब मैंने महेन्द्र की बात मान ली और उसका कौल दुबारा आनेपर मैंने उसकी इच्छानुसार उसे उत्तर दे दिया..." इंस्पेक्टर ने उससे कुछ और बातें कीं और उसे जाने दे दिया...पुनः सिद्ध आदि से बात की....
महेन्द्र-"पर मेरी तो नन्दन से ऐसी कोई बात नहीं हुई..."
तब सिद्ध ने नन्दन के मोबाइल सिम कम्पनी से इस सम्बन्ध में बात की तो जानकारी मिली कि नन्दन ने न तो महेन्द्र के मोबाइल से और न ही कहीं और से दिन के १० बजे से ३ बजे तक कोई कौल रिसीव किया है...महेन्द्र ने आज १० बजे से पूर्व ही एक बार नन्दन को कौल किया था जिसके पश्चात् नन्दन ने वे चार बाईकर्स सिद्ध के पीछे भेजे थे...तब इंस्पेक्टर ने पुनः नन्दन को वापस बुलाया और प्राप्त रिकार्डिंग के आधार पर उसे अरेष्ट कर लिया...जब नन्दन से पर्याप्त कडायी से पूछताछ की गयी तो उसने स्वीकार कर लिया कि उसने महेन्द्र को २० हजार रुपये दिये थे वर्धन की हत्या करवाने को, क्योंकि उसे भय था कि कहीं वर्धन उसे आधी सम्पत्ति पाने के अधिकार से वंचित कर दे सकता है पत्नी के बहकावे में आकर...
नन्दन और महेन्द्र को कोर्ट में प्रस्तुत किया गया जहां महेन्द्र ने यह स्वीकार करने से मना कर दिया कि उसने वर्धन की हत्या की है, क्योंकि जब वह वहां पहुंचा तो वर्धन गिरकर मर चुका था, पर २० हजार रुपये पाने के लोभ से उसने नन्दन को यह कहा कि उसने वर्धन की हत्या कर दी है...सीसीटीवी फुटेज भी यही बताता है...
तब कोर्ट ने नन्दन और महेन्द्र को हत्या के षड्यन्त्र का दोषी ठहराया, पर प्रश्न यह उठा कि वास्तविक अपराधी कौन है...क्योंकि विना कारण कोई गिरकर मर जाये यह बात स्वीकार करने योग्य नहीं है...
सिद्ध ने मस्तिष्क दौडाना आरम्भ किया...-"वर्तिका, तुम्हारे पिता तो तान्त्रिक मान्त्रिक और दिव्य शक्तियों वाले हैं...वे यदि यह बता पायें कि किसने की है यह हत्या...वर्तिका ने सुरेन्द्राचार्य से बात की और दोनों पहुंच गये सुरेन्द्राचार्य के औफिस...वहां प्रश्न पूछने की फीस पांच सौ एक रुपये सिद्ध को भोलानाथ को देने पडे....
"जिस दिन वर्धन आपसे हाथ दिखाने आये थे उसी दिन एक घण्टे के अन्दर उनकी मृत्यु हो गयी...क्या कारण हो सकता है उनकी मौत का...?"
सुरेन्द्राचार्य ने कुछ घबडाते हुए कहा -"ओ हो...यह तो बहुत बुरा हुआ...पर प्रश्नकुण्डली यह बताती है कि उनकी स्वाभाविक मौत हुई थी, किसीने उनकी हत्या नहीं की..." सिद्ध ने यह ध्यान दिया कि सुरेन्द्राचार्य ऐसे घबडा रहा है जैसे उसी पर वर्धन की हत्या का आरोप लगाया जा रहा हो...वह सुरेन्द्राचार्य के कक्ष से बाहर निकल भोलानाथ से वर्धन के सम्बन्ध में पूछता है...रजिष्टर में वर्धन का विवरण देखता है तो पाया कि वह
काटा हुआ था...कारण पूछने पर भोलानाथ ने बताया..-"हमने उनके विवरण को काट दिया है, क्योंकि...क्योंकि उनकी फीस उनको लौटा दी गयी थी..."
"लौटा दी गयी थी...? ऐसी क्या बात हुई थी...स्पष्ट बताओ...?" जब शिष्य ने टालमटोल करना चाहा तो सिद्ध ने गम्भीरता से कहा- "यह मर्डर का केस है...कुछ भी छिपाने का प्रयास करोगे तो तुम भी सन्देह की सीमा में आ जाओगे..."
"जी...वे गुरुजी की भविष्यवाणी से सन्तुष्ट नहीं थे, और उनने अपने छाते की मूंठ से सुरेन्द्राचार्य पर प्रहार करने का प्रयास भी किया था...तब जाकर ही गुरुजी ने उनके रुपये लौटाने को कहा, यद्यपि गुरुजी बहुत क्रुद्ध हो गये थे..."
"तो क्या वर्धन की हत्या में सुरेन्द्राचार्य का हाथ हो सकता है क्या....?"
"ये कैसे हो सकता है..,?"
"अपनी तान्त्रिक मान्त्रिक शक्तियों से...या किसी आत्मा या भूत को भेज दिया हो...?"
"ऐसा हो सकता है...पर इसकी मुझे जानकारी नहीं..."
"कहीं तुमदोनों में से किसी एक को भेजा हो...?"
"परन्तु आप विश्वास करें, हमलोगों को इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है..."
सिद्ध ने जब कडायेी से भोलानाथ से पूछा तो घबडाकर उसने स्वीकार कर लिया कि आत्मा के रूप में वह कहीं भी जाकर किसी भी को कोई भी हानि पहुंचा दे सकता है, हत्या भी कर दे सकता है....पर वर्धन के सम्बन्ध में उसे कोई जानकारी नहीं है...न ही गुरुजी उसे इस सम्बन्ध में बतायेंगे...
दिन में संयोग से सिद्ध और वर्तिका से औजस मिलता है...औजस-"अब मैं एक अन्य कारण बताना चाहता हूं जो वर्धन की मृत्यु का कारण हो सकता है..."
"वह क्या...?"
"वह है मानसिक प्रहार..." दोनों चौंके...
"हां...मैं कुछ वर्ष एक योगी के सम्पर्क में रहा, तो उसने मुझे यह बताया था..."
"यदि यह मान भी लें, तो हमें इसे सिद्ध करना होगा...!"
औजस ने मन ही मन सिद्ध के गाल पर थप्पड मारा और पूछा-"कुछ अनुभव हुआ आपको...?"
"हां, ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे गाल पर थप्पड मारा हो..."
"इसे कहते हैं मेण्टल हिट....यदि लगातार तीव्र गति से मारा जाये तो यह मेण्टल बीटिंग कहलाता है...यह सम्भव है कि उस समय वर्धन के टखने के ऊपर किसी ने ऐसा तीव्र मानसिक प्रहार किया कि वर्धन सह न सका और मर गया..."
"यह थ्योरी की बात है...यदि प्रैक्टली ऐसा कर किसी को यदि अचेत भी यदि कर दिया जाये तो मेण्टल अटैक से मर्डर की बात मान ली जा सकती है..."
"Earning mental energy is a difficult work whereas to lose it is a simple work to hit somebody mentally...मेरी जानकारी में एक आध्यात्मिक योगी व्यक्ति हैं- राघवेन्द्र कश्यप....आइये, इस सम्बन्ध में उनसे मिल बात करते हैं..."
तीनों राघवेन्द्र कश्यप के आवास पहुंचते हैं...
"मनुष्य वास्तव में आत्मा है, यह जीवशरीर नहीं...आत्मा अनुभूति का वस्तु है...मन आत्मा का अस्त्र-शस्त्र (हथियार) है...मन के द्वारा ही मनुष्य अच्छा या अशुभ सभी कर्म करता है....मन की शक्ति का दुरुपयोग करना अपनी आत्मशक्ति को ही हानि पहुंचाना है..."
"क्या मानसिक प्रहार से किसी व्यक्ति की हत्या कर दी जा सकती है...?"
"हां...पर उसके लिये किसी बली आत्मा की आवश्यकता होगी...उसका मन सावधान और बली होना चाहिये..."
"यदि आत्मा बहुत बली न हो तो...?"
"तो भी मन को एकाग्र कर मन के माध्यम से कई कर्मों को करने की शक्ति पायी जा सकती है...इसका सदुपयोग किया जा सकता है...इसका दुरुपयोग किया जा सकता है..."
तीनों वर्धन की मृत्यु की घटना बता अपराधी जान पाने की आशा करते हैं...
"जैसी घटना घटी, और उसके ठीक पूर्व वर्धन की सुरेन्द्राचार्य के संग विवाद...मुझे सुरेन्द्राचार्य का कुछ अनुमान है...वह बहुत ही दुष्ट है...अवश्य उस अपमान से आहत हो उसने मन की आंखों से वर्धन को देखते हुए वर्धन के सबसे दुर्बल अंग पर उसने इतना तीव्र मानसिक प्रहार करना आरम्भ किया कि वर्धन सह न पाये और मर गये...वर्धन ने सुरेन्द्राचार्य को अपना सबसे दुर्बल अंग स्वयम् ही बता दिया था..."
"क्या आप श्योर हैं...?अर्थात् योग-साधना की शक्ति से आप यह सच जान गये हों....?"
"नहीं, मैं तो केवल अनुमान से बता रहा हूं कि ऐसा हुआ सम्भव लगता है..."
तीनों राघवेन्द्र कश्यप को नमस्कार कर चले जाते हैं,,,,
"यह तो स्पष्ट हो गया कि अपराधी कौन है...अर्थात् सुरेन्द्राचार्य..."
"अरे, उनने केवल अनुमान से बताया है...कोई ध्यानसाधना में योग की शक्ति से जान तो बताया नहीं..."
"पर\, इतना तो लाभ हुआ, कि हम सुरेन्द्राचार्य पर सन्देह कर सकते हैं...."
"ये लो समाचारपत्र पढो, क्या छपा है, देखो..." तीनों एक समाचार-लेख पर ध्यान जमाये हैं -’एक संस्कृत छात्र सुनील उपाध्याय का शरीर कोमा जैसी स्थिति में दिली विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में पडा है....जबकि कुछ व्यक्तियों ने यह बताया है कि
सुनील आत्मा के रूप में शरीर से बाहर जा रह रहा है, और उसका शरीर जीवित बना हुआ अचेत-सा पडा है....आत्मा के रूप में सुनील विश्व का आतंक है, क्योंकि उसमें इतनी प्रबल मानसिक शक्ति है कि वह किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार से हानि पहुंचा दे सकता है...अतिक्रोध उत्पन्न कर देना, अतिशय कामुकता, सन्देह, अति भय, झूठी समझ, अतिलोभ, आदि उत्पन्न कर देना उसके बायें हाथ का खेल है...वह मन के कोडे ऐसे मारता है कि व्यक्ति को तीव्र पीडा होती है....अभी तकर उसने कितने ही स्त्री और पुरुषों में कामवासना इतनी अधिक उत्पन्न कर दी उन्हें लगा वे स्वयम् ही सेक्सुअली करप्ट हो गये हैं जबकि वहां सुनील का अतिमलिन और कामभ्रष्ट मस्तिष्क काम कर रहा होता है...कितने ही लोगों को उसने अपराध, पाप, भ्रष्टाचार, आदि करने की बली प्रेरणा वह देता रहा और करवाता रहा है और करवा रहा है...जहां सुनील मानवसमाज के लिये इतना अधिक घातक बना है वहीं कुछ व्यक्ति उसके शरीर को सुरक्षित बनाये रख सुनील के अपराधों में स्पष्ट रूप से भागीदार हैं...कई व्यक्तियों से सुनील
ने बातें की हैं, और वे सभी इस बात के साक्षी (गवाह) हैं....’
सिद्ध- "यदि यह सच है, तो निश्चय ही आत्मा जैसी कोई वस्तु होती है, और सुरेन्द्राचार्य अपराधी हो सकता है...मेरा मन अब इस सम्बन्ध में मानसिक प्रहार की बात स्वीकार कर सकता है...इससे पूर्व मैं यह सोच रहा था कि सुरेन्द्राचार्य ने ही हत्या करवायी है, परन्तु किसी ऐसे ट्रिक से जिसे हमारी बुद्धि अभी तक पकड नहीं पायी..."
एक दिन सिद्ध अपनी कार की दिशा वर्तिका के आवास की ओर करता है...वहां पहुंच बेल बजाता है...वर्तिका द्वार खोलती है तो ’हाय’ कह सीधा अन्दर प्रवेश कर सोफे पर बैठ जाता है...वर्तिका अवाक् रह गयी -"ये क्या कर रहे हो...? तुम जानते हो, पापा तुम्हें पसन्द नहीं करते...वो अभी अन्दर ही हैं...!"
"कोई बात नहीं, प्यार किया तो भय करना क्या...एक दिन तुम्हें मेरे संग रहने संग मेरे चल देना है....कल न सही आज ही..."
वर्तिका उसके इतने बोल्ड और निर्भय प्रस्ताव को देख चिन्तित हो उठी कि यदि दोनों में कोई तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई तो वह क्या निर्णय लेगी...! पर सिद्ध की प्रसन्न मनःस्थिति को देख वह चिन्ता छिपा आराम से बातें करने लगी....धीरे-धीरे दोनों खुलकर बातें करने लगे...उनका स्वर अन्य कक्षों में भी पहुंचने लगा...तब सुरेन्द्राचार्य वहां आ पहुचा...सिद्ध ने बैठी स्थिति में नमस्कार कहा...सुरेन्द्राचार्य ने तीव्र दृष्टि से उसे देखा पर कुछ कहा नहीं और बरामदे में जाकर चुप उन दोनों के सम्बन्ध में विचार करने लगा...सिद्ध और वर्तिका यह अनुभव कर रहे थे कि सुरेन्द्राचार्य उन्हीं दोनों के सम्बन्ध में ध्यान जमाये है, तब भी दोनों पुनः खुलकर बातें करने लगे....चार-पांच मिनट पश्चात् सिद्ध और वर्तिका बाहर निकलते हैं. सिद्ध कार की ओर बढता है...वर्तिका -"पापा, मैं अभी आ रही हूं...सिद्ध के संग कहीं जाना है..."
सुरेन्द्राचार्य सिद्ध से-"तुम्हारा इण्टेशन क्या है...? इसके पीछे पडे हो..."
"विवाह का..."
"तुम्हें स्मरण होगा, मैंने कुछ कण्डीशन रखा था इसके लिये...कहां है वो...? लाओ, और ले जाओ, चाहे जितने भी समय के लिये..."
’रुपये यदि इसमें बाधा बन रहे हों तो मैं देने को तैयार हूं..."
"तो लाओ तुरत और लेते जाओ....कुछ घण्टों के लिये नहीं, पूरे जीवन भर के लिये लेते जाना....पर तबतक यह तुम्हारे संग कहीं नहीं जायेगी...वर्तिका,,,चलो अन्दर..."
सिद्ध दुविधा में खडा रहा...वर्तिका उसकी वैसी स्थिति देख चुपचाप अन्दर चली गयी...सिद्ध - "आप तो मुझे जानते ही हैं...मैं आपका एक इण्टरव्यू अपने ’समाचारपत्र’ में प्रकाशित करना चाहता हूं...बडा-सा, और आकर्षक हो..."
"तो, उसके लिये तुम्हें मेरे कार्यालय आना चाहिये था..."
"अभी मेरे पास समय है...आगे समय मिले या न मिले..."
"अच्छा, पूछो..."
"पहले एक फोटो आपका...(एक क्लोज अप क्लिक करता है)....अब बैठकर यदि बातें की जायें तो अच्छा रहेगा..."
"हूं..." कह सुरेन्द्राचार्य पीछे द्वार की ओर मुडता है...सिद्ध भी उसके पीछे जा उसके पश्चात् सोफे पर बैठ जाता है...
"हूं..." सुरेन्द्राचार्य संकेत करता है...
"आप पूरे नगर ही नहीं, पूरे राज्य के जाने-माने ज्योतिषियों में एक हैं...आपकी इतनी अधिक सफलता का रहस्य..?"
"रहस्य वह होता है जो अन्यों से छुपाकर रखने योग्य होता है, तब मैं यह रहस्य कैसे खोल दूं....!"
"तन्त्र साधना और मन्त्र साधना में क्या अन्तर है....?"
"मन्त्र साधना प्रायः शुभ रूप में ही होता है...जबकि तन्त्रसाधना के शुभ और अशुभ दोनों ही रूप होते हैं...इसमें पूज्य केवल देव ही नहीं, अपितु राक्षस आदि अशुभ आत्मायें भी हो सकती हैं....वैसे, यह भी मन्त्रसाधना का ही एक रूप है..."
"आपने तन्त्रसाधना ही क्यों चुना,,,?"
"भविष्यवाणी करने, और प्राप्त शक्तियों से धन अर्जित करने के लिये तन्त्र साधना ही चुना..."
"और क्या-क्या लाभ हैं इससे....?"
"मानसिक बलवृद्धि होती है..."
"मानसिक बलवृद्धि से क्या-क्या लाभ हो सकते हैं...?"
"ऐसा बली मन पूरे संसार में कहीं से भी भूत, वर्तमान, और भविष्य का ज्ञान एकत्र कर लाता है...दूसरा लाभ, ऐसा मन अन्य मनों को प्रभावित कर दे सकता है...तीसरा, ऐसा मन अपने बल से किसी भी वस्तु या व्यक्ति की स्थिति में विचारणीय अन्तर ला दे सकता है..."
"यह तीसरी स्थिति स्पष्ट करेंगे...?"
"बली और एकाग्र मन दूर भी स्थित किसी वस्तु को उठा या सरका दे सकता है...किसी व्यक्ति के मन को कोई भी काम करने को प्रवृत्त कर दे सकता है...किसी व्यक्ति पर प्रहार कर पीडा भी पहुंचा सकता है..."
"यदि यह पीडा कण्ठ, या श्वासनली जैसे मर्म अंग पर पहुंचायी जाये तो क्या व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है...?"
"अं...हां...पर...व्यक्ति का अपना भाग्य भी तो काम करता है..."
इसी समय वर्तिका वहां का दृश्य देख आश्चर्य चकित रह गयी...सिद्ध के संकेत करने पर वह तुरत कौफी बना ले आयी दोनों के लिये...
"तो...दूर बैठे या निकट बैठे भी किसी व्यक्ति को कोई व्यक्ति क्या विना छूये या प्रहार किये केवल अपने मन के बल से मार दे सकता है...?"
"देखो, बात इतनी सी है कि यदि मन बली हो तो अपनी कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हो जाता है...जैसे किसी ने कामना कि कुछ ऐसा घटे, तो घटनायें उस अनुसार रूप ले उभर सकती हैं...बली मन लाभ पहुंचा सकता है और हानि भी..."
और भी बातें हुईं...अगले दिन चित्र के साथ सुरेन्द्राचार्य का इण्टरव्यू छपा...सिद्ध ने फोन कर वर्तिका से सुरेन्द्राचार्य की प्रतिक्रिया पूछी -"पापा यह इण्टरव्यु देख प्रसन्न हुए, बोले यह काम का मनुष्य जान पडता है..."
"क्या अब मैं तुम्हारे आवास आ सकता हूं...?"
"मैं पूछती हूं...अं......हं.....हां, कह रहे हैं कि आ सकता है, पर इतने से काम नहीं चलेगा, कुछ ऐसा करो जिससे उनका नाम बहुत फैले...और....पापा अभी औफिस जाने ही वाले हैं, तुम आ जा सकते हो..."
सिद्ध वहां पहुंच वर्तिका संग गप्पे मार रहा है...वर्तिका सिद्ध को सारा आवास दिखला रही है...एक स्थान पर एक टूटी मूर्ति रखी थी...सिद्ध के पूछने पर वह बतायी - "यह पापा के इष्ट देव की मूर्ति है...टूटी कैसे यह तुम जानकर हंसोगे....हुआ यह कि एक दिन पापा तन्त्रसाधना कर रहे थे तो उसी समय उनका प्रतिद्वन्द्वी तान्त्रिक भी तन्त्रसाधना में लगा था...पापा का कहना है कि विना साधना-सिद्धि के केवल पुस्तकें पढकर कोई भूत-भविष्य नहीं जान ले सकता है...पर यह पापा के मन की बुरायी थी कि उनने मन से देखा-जाना उस तान्त्रिक को, और अपनी मानसिक शक्ति से उसपर आक्रमण कर उस तान्त्रिक को उसके साधना स्थल पर ही गिरा अचेत कर दिया..."
"क्या मानसिक प्रहार या आक्रमण कर किसी को अचेत कर दिया जा सकता है...?"
"पापा तो कहते हैं कि मानसिक आक्रमण से किसी को मार भी डाला जा सक्ता है..."
"यदि तुम यह जानती थी तो मेरे इन्वेष्टीगेशन के समय कभी यह बात तुमने मुझे बतायी क्यों नहीं...?"
"कोई प्रमाण तो उनके विरुद्ध हो....उनमें ऐसा सामर्थ्य है...पर इसका अर्थ यह नहीं कि उनने ही हत्या की है....यदि उनके विरुद्ध प्रमाण मिले तो मैं भी तुम्हारा साथ दूंगी..."
सिद्ध वहां से लौट अपने प्रेस-औफिस पहुंचा, कुर्सी पर बैठा, चिन्तनमग्न हो गया कि यदि ऐसा सम्भव है तो...तो...तो....
एक बली व स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति सुरेन्द्राचार्य के ज्योतिष कार्यालय में प्रवेश करता है...."भैया, मुझे अपना भविष्य जानना है..."
"जन्मकुण्डली लाये हैं क्या श्रीमान्..." भोलानाथ ने पूछा..,
"अपना हाथ...जगन्नाथ..." पंजा दिखलाता है....
"सामान्य भविष्य फलकथन का शुल्क केवल पांच सौ एक रुपये...अभी दें..."
वह बली रुपये निकाल देता है...बुलाये जानेपर बली अन्दर सुरेन्द्राचार्य के कक्ष में प्रवेश कर बैठता है...सुरेन्द्राचार्य उसका हाथ देख उसका फल
बताता है...बली सुन तो रहा है पर इसपर विचार नहीं कर रहा है कि फल सत्य है या असत्य...अधिकतर वह उसके कथन को काट रहा या उसकी हंसी बना दे रहा है...-"अच्छा, ये तो बतायें, मेरा आज का दिन कैसा बीतेगा...?"
"आपकी प्रश्नकुण्डली तो बता रही है कि दिन कुल मिलाकर अच्छा बीतेगा...सफलता मिलेगी...जो समस्या होगी उसका समाधान करने में आप सफल हो जा सकेंगे..."
"ठीक है...ऐसा है...आप अपने शिष्य से कहें कि वह मेरे ५०१/- रुपये मुझे वापस कर दे..."
"क्यों..? भविष्यफल आपको बताया जा चुका है...!”
"देखो...यदि आज मुझे कार्यों में सफलता मिल जायेगी, तो समस्या का समाधान होते ही तुम्हारी समस्या का भी समाधान कर दूंगा...५०१ रुपये तुम्हें मिल जायेंगे..."
"ऐसा कहां होता है...?"
"सभी स्थानों पर ऐसा ही होता है...काम होने जाने पर पेमेण्ट कर दिया जाता है...यदि पहले भी पेमेण्ट किया तो काम न हो पाने की स्थिति में रुपये वापस कर दिये जाते हैं..."
"परन्तु, किसी भी ज्योतिषी के साथ ऐसा होता सुनने में नहीं आया है...और यहां भी नहीं होगा...अब आप जा सकते हैं..."
"पर, सुनो....यह तो गुण्डागर्दी होगी कि काम भी नहीं हुआ और शुल्क भी ले ली...अगर ऐसा करना हो तो करो, पर देखो, तुममें और मुझमें कौन अधिक बलवान् है..." ऐसा कह उसने टेबल पर एक भारी घूंसा मारा...कुछ वस्तुयें उछल गयीं...दोनों शिष्य दौडे-दौडे अन्दर आये...
’’हं’ मेरे ऊपर आक्रमण....!" ऐसा कह बली दोनों शिष्यों के गले पकड उठाने लगता है...तब सुरेन्द्राचार्य उठकर उन्हें छुडाना चाहता है कि बली एक हाथ से सुरेन्द्राचार्य का गला पकड लेता है...तब सुरेन्द्राचार्य किसी प्रकार अपना गला छुडा भोलानाथ को कहता है कि वह बली को रुपये लौटा दे...बली को ५०१ रुपये लौटा दिये जाते हैं...बली मुस्कुराकर रुपये लेते हुए सुरेन्द्राचार्य से कहता है- "रुपये यदि लूटने हों जनता के पौकेट्स से तो न केवल तुम अपने शरीर को और अधिक बली बनाओ, कुछ बली गुण्डों को भी पाल लो...समझे..." ऐसा कह वह बाहर निकल सीढियों से नीचे उतरने लगा...बली को कुछ अस्वस्थता अनुभूत होने लगी....सीढियों से नीचे उतर अभी वह चार-पांच पग और अधिक चला था कि उसे चक्कर आने लगा...सहसा उसे तीव्र पीडा होने लगी और एक-दो मिनट के अन्दर ही ’आह् आह्’ चिल्लाता भूमि पर गिर अचेत (बेहोश) हो जाता है...यहां सीढियों के समीप तो कोई-कोई ही आता-जाता दिखता है, पर कुछ दूरी पर लिफ्ट के समीप लोगों की कुछ संख्या दिखती रहती है...
ऊपर औफिस में बैठा सुरेन्द्राचार्य सहसा चौंकता है, और जैसे किसी को ढूंढने लगती है उसकी दृष्टि...वह चिन्तित-सा चेयर से उठता और सीढियों से नीचे उतरता है...आगे बढने पर वह बली को भूमि पर अचेत गिरा पाता है...अन्य किसी को समीप न पा जैसे वह बली को झकझोडकर जगाने का प्रयास करता है...उसके नहीं जागने पर सुरेन्द्राचार्य कहता है -"केवल अचेत होने से काम नहीं चलेगा...जिसका हाथ मेरी ओर बढता है, उसके जीवन को मैं मौत की ओर बढा देता हूं...केवल बढा ही नहीं देता हूं, अपितु मौत दे भी देता हूं...मैं भविष्यवक्ता हूं....क्या समझा...? तू अभी उठेगा...पर उसके पश्चात् तू सांसें नहीं ले पायेगा...और मरेगा..." शैतानी मुस्कान के साथ ऐसा कह वह औफिस में लौटता है और अपने शिष्यों को कुछ कहता है...दोनों शिष्य शीघ्र सीढियों से नीचे बली के समीप आते हैं और उसके मुख पर पानी के छींटें मारते हैं...बली को चेत पाता देख उसकी आंखों से बचते हुए दोनों औफिस में लौट जाते हैं...बली तीन-चार मिनटों में ही उठ चलने की स्थिति में आ जाता है....जैसे ही वह उठ खडा हो चलना चाहता है कि चिल्लाता है -"आह्...मैं सांसें क्यों नहीं ले पा रहा हूं...बचाओ...आह्..." वह लडखडाता है और गिरने की स्थिति में आता है कि कोई तुरत उसकी बांहों को थाम उसे अपने आलिंगन में ले लेता है...यह सिद्ध है...-"कुछ सेकेण्ड्स के लिये ऐसा मानो कि तुम स्वयम् ही सांसें नहीं ले पा रहे हो...ऐसा कण्ट्रोल करो..." और पन्द्रह-बीस सेकेण्ड्स में ही बली को सांसें लेने में आ रही बाधा हट गयी जान पडने लगी...उसने मुंह खोल आराम से सांसें लीं...-"आह्...अब मैं कितना आराम अनुभव कर रहा हूं..."
"अभी कुछ मिनट और रुको, और देखो, एक दृश्य उभरने वाला है यहां...बहुत प्रसन्नता मिलेगी तुम्हें उससे..."
आठ-दस मिनट पश्चात् इंस्पेक्टर सीढियों से उतर समीप आया बली और सिद्ध के, और साथ में था सुरेन्द्राचार्य, हथकडी लगे हाथों के संग...
सुरेन्द्राचार्य को कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है जहां वह स्वीकार कर लेता है कि उसी ने वर्धन की हत्या की थी मानसिक प्रहारों से...और बली की भी हत्या का प्रयास उसने किया...
वर्तिका- "यह सब कैसे हुआ...? अर्थात् कब कैसे योजना बनायी, और इसमें सफल भी हो गये...?"
सिद्ध -"बली को हमलोगों ने ही तुम्हारे पापा के समीप भेजा था...बली लौटते समय सीढियों से उतर वहां खडा हुआ जहां एक सीसीटीवी लगा था और स्पष्ट वीडियो-रिकौर्डिंग कर रहा था...वहां आकर सुरेन्द्राचार्य जो जो बोला और जो जो घटना घटी वह सब रिकौर्ड हो रहा था....जब सुरेन्द्राचार्य धमकी दे ऊपर औफिस गया तभी हमलोग जान गये कि बली के चेत पाते ही सुरेन्द्राचार्य उसे सफोकेट (श्वास-अवरुद्ध) करेगा....अतः सामान्य वस्त्रों में इंस्पेक्टर ऊपर जा उसके औफिस के बाहर मुझसे सूचना मिलते ही उसे तुरत अरेष्ट करने की मुद्रा में खडा हो गया...जैसे ही बली ने कहा वह सांसें नहीं ले पा रहा है मैंने तुरत इंस्पेक्टर के मोबाइल की घण्टी बजा दी, और इंस्पेक्टर ने तुरत औफिस में प्रवेश कर सुरेन्द्राचार्य को अरेष्ट कर लिया...तत्पश्चात् वह उसे ले नीचे सीसीटीवी के सामने हमदोनों के समीप लाया...तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है इस सफल योजना पर...?"
"इस सफल योजना ने तुम्हें एक और बडा लाभ तुम्हें दिलाया है...पूछो क्या...?"
"मुझे पुरस्कार मिल सकते हैं...."
"वो तो है...पर मेर मन में वह कौन-सा लाभ है जरा अपनी मानसिक शक्ति से पढ बताओ...?"
"तुम\...तुम मिल गयी हो..."
"हां....और तुम्हें अब रुपये देने की चिन्ता नहीं करनी है..."
"राइट...पर यह मैं क्यों नहीं सोच पाया...?"
"तुम्हारा मस्तिष्क अभी काम कहां कर पा रहा है...वह तो मुझमें डूबा है..."
"अच्छा है...कुछ आराम भी मिलना चाहिये मेरे मस्तिष्क को...." दोनों एक दूसरे को आलिंगन में लिये हुए हैं, और इसके संग ही
THE END
एक मनोरंजक फिल्म् बनाने के उद्देश्य से लिखा गया यह कथा-प्लौट् काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है....
समाप्त
" मित्र-शत्रु "
लेखक - राघवेन्द्र कश्यप
फिल्म् बनाने के उद्देश्य से लिखा गया यह कथा-प्लौट् अधिकतर काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है....
सीमा और किशोर तथा अन्य मित्रगण मनोरंजन कर रहे हैं यूनिवर्सिटी कैम्पस् में....सभी मिलकर प्लान् बनाते हैं गोवा घूमने जाने का, किन्तु फीमेल् ष्टूडेण्ट्स् जाने से मना करने लग जाती हैं....पर अन्ततः सीमा और किशोर कुछ फीमेल् ष्टूडेण्ट्स् को संग चलना स्वीकार करवा ही लेते हैं....
गाते-गुनगुनाते सभी ट्रेन् से जा रहे हैं....
गोवा में सभी एक होटल् में ठहरते हैं....दो-दो मेल् और दो-दो फीमेल् ष्टूडेण्ट्स् एक-एक कक्ष में ठहरे हैं....
गोवा में विभिन्न रमणीय स्थानों पर घूमने जाते हैं....विभिन्न दृश्य मनोरंजन के....
रात में डिनर् के पश्चात् किशोर सीमा के कक्ष मे आता है....उस समय सीमा की रूम्मेट् वहां उपस्थित नहीं थी....उसे पूर्व ही किशोर ने किसी और कक्ष में बुला वहां बातों में फंसा रखा था....किशोर शनैःशनैः सीमा संग सेक्सुअल् मैटर्स् पर बातें करने लग जाता है....सीमा को यह अच्छा नहीं लगता पर वह शान्त है....सम्भवतः किशोर ने पी रखा है, उसके हाथ धीरे-धीरे सीमा की ओर बढने लगते हैं....सीमा क्रुद्ध हो डांटती है....पर किशोर के आगे बढते हाथों ने सीमा की बांहों को पकड लिया....सीमा चिल्लाने लगी....
किशोर - "इसमें घबडाने की क्या बात है!!! मैं तुमसे विवाह भी तो करूंगा.....???"
"पर मैं तुम जैसे विलासी से विवाह करना नहीं इच्छती....फ्रेण्ड्शिप् यूनिवर्सिटी पर्यन्त ही सीमित रखो...."
जब वह किसी भी प्रकार नहीं मानती तो किशोर -"यह मेरा तेरहवां आखेट है....बारह को मैं इसी प्रकार यौन सुख प्रदान कर चुका हूं.... अब तुम्हारा नम्बर् तो लग कर ही रहेगा...."
उस रूम् के बाहर से गुजरते समृद्ध को अन्दर चीखने-जैसा कुछ गडबड हो रहे होने की आशंका जान पडी....वह द्वार खटखटाता है....पुनः चीख सुनायी पडती है....वह द्वार और भी तीव्रता से खटखटाता है....सहसा सीमा किशोर के बन्धन से छूट तुरत द्वार की ओर दौड खोलना चाहती है....समृद्ध अन्दर की स्थिति का अनुमान लगा रहा है....तभी किशोर पिस्तौल निकाल लेता है....परन्तु सीमा हाथ पीछे कर किशोर के ध्यान में आये विना द्वार का हैण्डल् घुमा देती है और समृद्ध झटके-से अन्दर घुसता है....किशोर निर्भयता से दोनों को हाथ ऊपर उठा द्वार बन्द करने को कहता है....सहसा समृद्ध निज हाथ में लिये पुस्तक को किशोर के पिस्तौल पर दे मारता है....पिस्तौल नीचे गिर जाता है और किशोर और समृद्ध दोनों एक दूसरे से मारामारी करने लगते हैं....सीमा अन्य मित्रों को सूचित करती है....सभी लोग वहां आ दोनों को अलग करते हैं....सभी किशोर को धिक्कारते हैं और कहते हैं कि वे इच्छें तो अभी उसे पुलिस् को सौंप दे सकते हैं....किशोर क्षमा मांगता है....सभी उसे तुरत वहां से चले जाने को कहते हैं....किशोर लौट जाता है....सभी पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मनोरंजन करते हैं....जब सीमा समृद्ध से उसका पता पूछती है तो ज्ञात होता है कि समृद्ध सीमा के निकट के ही एक अपार्ट्मेण्ट् में रहता है....समृद्ध के पिता एक अधिवक्ता हैं वहीं सीमा के पिता की प्लाष्टिक् व कांच के विभिन्न वस्तुओं को बनानेवाली एक फैक्ट्री है....जब सभी वापस लौट आते हैं तब एक दिन सीमा के माता-पिता समृद्ध के आवास पहुंचते हैं और समृद्ध की समय पर की गयी सहायता के लिये उसकी बहुत प्रशंसा करते हैं, संग ही निज आवास सीमा के जन्मदिवस के अवसर पर आने का निमन्त्रण भी देते हैं....
सीमा और समृद्ध दोनों एक-दूसरे के प्रति अधिक और अधिक आकर्षित होते चले जा रहे हैं....सीमा के जन्मदिवस पर सीमा के पिता समृद्ध के माता-पिता को बहुत आग्रह कर बुलवाते हैं और उनका खाने-पिलाने-घूमाने आदि के रूप में बहुत सत्कार करते हैं....इससे सीमा के पिता और समृद्ध के पिता की मित्रता जड पकडने लगती है....
यूनिवर्सिटी में परीक्षा के लिये सभी फार्म् भर रहे हैं....सीमा और समृद्ध भी फार्म् भरते हैं....सीमा जब फार्म् भरती है तो उसे उसकी रसीद नहीं दी जाती है यह कहकर कि अभी नेट्वर्क् सिष्टम् में कुछ फौल्ट् आ गया है, पश्चात् ले लेना....पश्चात् कहा जाता है कि एग्जाम् हौल् में ही सबकुछ मिल जायेगा....परन्तु परीक्षा-हौल् में सीमा का नाम नहीं है और उसे परीक्षा नहीं देने दिया जाता है....रघुराज को जब यह जानकारी मिलती है तो वह तुरत एक रिट् कोर्ट् में प्रस्तुत कर देते हैं....तर्क यह देते हैं कि सीमा एक मेधाविनी विद्यार्थिनी है जो एक भी दिन क्लास् मिस्स् नही करती तो वह परीक्षा फार्म् भरना कैसे भूल जा सकती है...!.. रघुराज के तर्कों से सहमत हो सीमा को परीक्षा देने की अनुमति मिल जाती है....विशेष इसके लिये भी रघुराज को बहुत धन्यवाद देते हैं....
सीमा और समृद्ध में मित्रता शनैःशनैः प्रेम में परिवर्तित होने लग जाती है....दोनों कल्पनाओं में प्रेमगीत गा रहे हैं....
सीमा के पिता की फैक्ट्री में प्लाष्टिक् और कांच की विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुयें भी बनती हैं....विशेष एक कांच का एक सुन्दर टेबल् और ऐक्वेरियम् रघुराज को उपहार देते हैं....इसपर रघुराज बहुत प्रसन्नता अनुभव करते हैं....
विशेष की फैक्ट्री में वेतन-वृद्धि को लेकर ष्ट्राइक् हो जाती है....रघुराज इस बात पर विशेष से बातें करते हैं....रघुराज का परामर्श है कि जितने दिन ष्ट्राइक् पर कर्मचारी रहेंगे उतने दिन का वेतन नहीं मिलेगा, पर बढती महंगायी को देखते हुए उचित वेतन-वृद्धि अवश्य की जाये....विशेष ऐसी ही घोषणा करते हैं....पर कर्मचारी संघ का नेता वेतन-कटौती को मानने से अस्वीकार कर देता है....ऐसे में रघुराज इस बात को कोर्ट् में ले जाते हैं और कहते हैं कि मांग मनवाने के इच्छे जितने भी हथकण्डे अपनाये जायें पर काम रोककर फैक्ट्री को हानि पहुंचाना स्वीकार नहीं....दैनिक कार्य अवधि के पूर्व दिन में अथवा पश्चात् शाम-रात में नारे लगाये जा सकते हैं....टोकन्-ष्ट्राइक् या सांकेतिक ष्ट्राइक् की जा सकती है....न्यायालय इस बात से सहमत होता है और वेतन-कटौती के संग-संग उचित वेतन-वृद्धि का अनुमोदन भी करता है....विशेष एसपर रघुराज को बहुत ही धन्यवाद देते हैं और फीस् देना इच्छते पर रघुराज लेने से अस्वीकार कर देते हैं....
अब सीमा और समृद्ध के परिवार वाले एक-दूसरे के आवास प्रायः ऐसे आने-जाने लगे मानो दोनों निकट के सम्बन्धी हों....सीमा और समृद्ध दोनों में प्रेम हो जाता है और दोनों प्रेमगीत गा रहे हैं....
ष्ट्राइक् के पश्चात् फैक्ट्री के उत्पादन और गुणवत्ता में गिरावट आयी जान पड रही है....फैक्ट्री से आय में बहुत न्यूनता आ गयी है.... विश्व के उद्योगपतियों का सम्मेलन यूएसए में हो रहा है जिसमें सम्मिलित होने का निमन्त्रण विशेष को भी मिला है....वे अमेरिका जाते हैं....वहां सम्मेलन के समय एक अमेरिकी उद्योगपति से कुछ विशेष लगाव हो जाता है....वह रघुराज के व्यक्तित्व से विशेष प्रभावित हो अपने उद्योग में उन्हें उच्च पद पर कर्म करने का औफर् देता है जिसका वेतन इतना अधिक है जितना विशेष को फैक्ट्री से अपनी व्यक्तिगत मासिक आय भी नही हो रही थी....विशेष इस औफर् को स्वीकार कर लेना इच्छते हैं पर भारत में उनकी फैक्ट्री कौन चलायेगा यह प्रश्न उनके मन में गूंजने लगा....क्या फैक्ट्री को बेच दिया जाये!.... उनने रघुराज से इस सम्बन्ध में परामर्श किया.... रघुराज ने स्वयम् फैक्ट्री चलाने का भार उठाने की बात कही....यदि फैक्ट्री अच्छा लाभ न दे पायी तो फैक्ट्री को बेच दिया जायेगा ऐसा निर्णय लिया गया....
विशेष भारत लौटकर पत्नी और पुत्री को संग अमेरिका ले चलने की बात कहते हैं, पर वे दोनों भारत में ही रहना प्रियतर कहते हैं....रघुराज को अपना परम मित्र कह उसपर विश्वास कर विशेष अमेरिका चले जाते हैं.... रघुराज फैक्ट्री के मैनेजिंग् डाय्रेक्टर् के पद पर आसीन हो गये....व्यवहार में वे फैक्ट्री के स्वामी समान हो फैक्ट्री के विकास में संलग्न हो गये....फैक्ट्री में विभिन्न समस्यायें ऐसी थीं कि फैक्ट्री का अन्त कर दिया जाये, पर रघुराज ने प्रत्येक कर्मचारी को टार्गेट् दे दिया और वे स्वयम् सभी बातों का निरीक्षण मृदु व्यवहार और तत्परता के संग करने लगे....अधिवक्तृत्व का कर्म भी संग-संग कभी-कभी देख लिया करते थे....फैक्ट्री के उत्पादन और गुणवत्ता में शनैःशनैः सुधार आने लगा....
रघुराज न केवल फैक्ट्री अपितु सीमा के परिवार की भी देखभाल कर रहा था....कोई समस्या हो या विशेष शौपिंग् करनी हो तो रघुराज भी सीमा, सीमा की मां के संग हो लिया करता था....सीमा के आवास में उसकी मां के अतिरिक्त एक सेविका भी रहती थी....
समृद्ध विशेष रूप से सीमा की देखभाल कर रहा था....दोनों का यूनिवर्सिटी में ही नहीं बाहर भी संग-संग घूमना चल रहा था....
फैक्ट्री को निज उत्पादों के विक्रय के लिये निज विक्रय प्रतिनिधियों के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों, बिल्डिंग्स्, औफिसेज्, कम्पनियों आदि से सम्पर्क बनाना पडता था....ऐसे में फैक्ट्री का सम्पर्क एक फिल्म्-प्रोडक्शन् कम्पनी के संग बना....कम्पनी ने प्लाष्टिक् और कांच की कुछ कलात्मक वस्तुओं का क्रय किया....संग ही निज फिल्मों को दर्शानेवाले होर्डिंग्स् (बोर्ड्स्) फैक्ट्री के बाहर लगवाने का प्रस्ताव रघुराज के समक्ष रखा....रघुराज ने स्वीकार कर लिया, और संग ही फिल्म्-प्रोड्यूसर् से सम्पर्क किया - "मैं एक अधिवक्ता और इस फैक्ट्री का मैनेजिंग्-डाय्रेक्टर् तो हूं ही, संग एक और विशेषता मुझमें है....और वह है फिल्म् बनाने के उद्देश्य से मैंने कुछ कथायें लिखी हैं, और उनके अनुरूप गीत भी....मैं यह इच्छता हूं कि मेरे किसी एक कथा-प्लौट् व गीतों पर आधारित एक फिल्म् बनायी जाये..." फिल्म्-निर्माता ने इ्सपर विचार करने का आश्वासन दिया....पुनः सम्पर्क करने पर निर्माता ने कहा -"आपकी कथायें अच्छी हैं....पर मेरा इस सम्बन्ध में विचार यह है कि पार्ट्नर्शिप् में फिल्म् बनायी जाये....कुछ रुपये आप लगायें कुछ हम....लाभ-हानि भी उसी अनुपात में शेयर् की जायेंगी...." रघुराज ने इस सम्बन्ध में सीमा, सीमा की मां और पिता से बातें कीं.... सभी ने सहमति व्यक्त की और सभी प्रसन्न हुए कि रघुराज की लिखी कथा और गीतों पर आधारित फिल्म् बनेगी....इस सम्बन्ध में गतिविधियां चल रही थीं....विशेष ने फैक्ट्री की बढती आय और प्रगति से सन्तुष्ट हो अमेरिका छोड भारत में ही रहने का विचार किया....वे भारत लौट आये....उनके परिवार के सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए....अब विशेष फैक्ट्री के स्वामी के रूप में कार्यरत हो गये....
जबकि रघुराज ने पुनः अधिवक्ता के कर्म को विशेष महत्त्व देते हुए उसमें ही लगे रहने का निर्णय लिया परन्तु फिल्म् बन जाने के पश्चात् ही....अभी उनका सारा तन-मन अपनी फिल्मी कथा को एक हिट् फिल्म् बनते हुए देखने में रमा हुआ था....फिल्म्-निर्माण के लिये कलाकारों व शूटिंग्-स्थलों के चयन की तैयारियां चल रही थीं....
इसी समय उस फिल्म्-निर्माता के समक्ष एक कथा व गीत लेखक राघवेन्द्र कश्यप के फिल्मी कथा-प्लौट्स् व गीतों का संग्रह प्रस्तुत हुआ....उसके औफिस् के लोगों ने उन कथाओं व गीतों को बहुत प्रिय माना था....प्रोड्यूसर् ने भी माना कि इन कथाओं से किसी एक पर यदि फिल्म् बनायी जाये तो बडी ही मनोरंजक व कुछ अलग ही बात वाली फिल्म् बन सकती है....संग ही कई गाने ऐसे हैं जिनको अच्छा म्यूजिक् दिया जाये तो ये बहुत प्रसिद्ध हो जायेंगे....जबकि रघुराज की कहानियां साधारण स्तर की थीं जिनमें हीरो-हीरोइन्-विलेन् मार-धाड आदि थे....प्रोड्यूसर् ने विचार किया कि यदि वास्तव में कोई हिट् फिल्म् बनाने का प्रयास करना है तो राघवेन्द्र कश्यप की किसी एक कथा पर ही फिल्म् बनायी जाये....उसने तुरत विशेष से सम्पर्क किया....यह बात बतायी पर विशेष ने कहा कि वह रघुराज के उपकारों के इतने अधिक ऋणी हैं कि वह सोच भी नहीं सकते कि रघुराज की कथाओं को छोड किसी और की कथा पर फिल्म् बनायें....प्रोड्यूसर् ने इसपर बहुत विचार किया और निज औफिस् के लोगों से परामर्श लिया तो यही निष्कर्ष निकला कि यदि हिट् फिल्म् बनानी है तो राघवेन्द्र कश्यप की किसी एक कथा पर ही फिल्म् बनायी जाये....अन्ततः प्रोड्यूसर् ने राघवेन्द्र कश्यप की कथाओं व गीतों की एक कौपी विशेष को भिजवा दी तथा कहा एकबार वे इन कथाओं को देख लें तभी निर्णय लें, क्योंकि वह रघुराज की लिखी कथा पर फिल्म् बना धन गंवाना नही इच्छता.... इस प्रकार जब प्रोड्यूसर् ने रघुराज की कथा पर फिल्म् बनाने से मना कर दिया तो हारकर विशेष ने राघवेन्द्र कश्यप की कथाओं व गीतों को स्वयम् देखा तथा सीमा और उसकी मां को भी पढने दिया....पढकर सीमा और उसकी मां दोनों ने ही उन कथा-प्लौट्स् की बहुत प्रशंसा की... पर समस्या की बात जान दोनों के मुखों पर उदासी छा गयी कि फिल्म्-निर्माण तो रघुराज निज कथाओं को पर्दे पर लाने के लिये कर रहे थे....तब भी, राघवेन्द्र कश्यप की कथाओं से जहां हिट् फिल्म् बनने की अच्छी सम्भावना बनती जान पडी, वहीं रघुराज की कथाओं से फिल्म् के फ्लौप् होने की ही अधिक सम्भावना दिख रही थी....काश यह कडवी सच्चाई रघुराज समझ पाते....!
राघवेन्द्र कश्यप की कथायें व गीत इण्टर्नेट् पर भी उपलब्ध थे.... सीमा की मां राघवेन्द्र कश्यप की लेखनकला से बहुत प्रभावित हो उन्हें निज आवास आने का अनुरोध करती है....राघवेन्द्र वहां जाते हैं....सीमा और उसकी मां दोनों ही उनकी लेखन-क्षमता और आध्यात्मिकता पर बहुत प्रसन्नता व्यक्त करते हैं....उसी समय रघुराज वहां आ जाते हैं....सीमा और उसकी मां दोनों राघवेन्द्र और रघुराज को एक-दूसरे का परिचय देते हैं, तथा रघुराज को यह बोध कराते हैं कि राघवेन्द्र कश्यप के लिखे कथा-प्लौट्स् के आधार पर जहां एक हिट् फिल्म् बनने की पूरी सम्भावना दिखती है वहीं उनकी लिखी कथाओं के आधार पर एक साधारण फिल्म् ही बन पायेगी....रघुराज स्वयम् राघवेन्द्र कश्यप के लिखे कथा-प्लौट्स् व गीतों का अवलोकन कर उनकी प्रशंसा करते हैं - "यदि ऐसी बात है तो इनके लिखे कथा-प्लौट्स् के आधार पर ही फिल्म् बनाओ....मैं क्या निज कथाओं को पर्दे पर लाने के प्रयास में तुम्हारी कम्पनी को एक - दो करोड की हानि पहुंचाने की सोचूंगा....!"
"अंकल....यू आर् ग्रेट्....!" कह सीमा बहुत प्रसन्न होती है....
जब रघुराज ने सहमति दे दी तो झट सीमा ने ’विनय ठाकुर का भूत’ कथा पर फिल्म् बनाने का प्रस्ताव रखा....तत्पश्चात् शूटिंग् आदि की व्यस्तता हो गयी पर इन्हीं दिनों रघुराज कुछ अस्वस्थ हो गये....उनका अधिकतर समय आराम करने में बीतने लगा....
एक दिन एक सेल्स्-रीप्रेजेण्टेटिव् कांच के कुछ बहुत ही आकर्षक सैम्पल्स् ले सीमा के फ्लैट् वाली बिल्डिंग् में भी गया....जब विशेष को यह ज्ञात हुआ तो उनने उन सैम्पल्स् को देखा और कुछ को निज प्रोडक्ट्स् की तुलना में कुछ अच्छतर भी पाया....विशेष को तब बहुत ईर्ष्या अनुभूत हुई....उनने दो-तीन पडोसियों को एकत्र किया और उस रीप्रेजेण्टेटिव् को धक्के मार अपमानित कर वहां से भगा दिया कि किसी भी सेल्स्मैन् का इधर अन्दर आना मना है....वह रीप्रेजेण्टेटिव् कुछ आंसू बहाता वहां से चला जा रहा था....उसके एक-दो सैम्प्ल्स् टूट भी गये थे....
"पुत्तर....क्यों रो रहा है...?" किसी ने उससे बहुत सहानुभूति से पूछा....उसने उसका कारण बताया....
"कोई बात नहीं....आओ....मैं तुम्हारी इन अनुपम कलाकृतियों का क्रय करूंगा....आभूषण का मूल्य स्वर्णकार ही जान सकता है...."
वह रीप्रेजेण्टेटिव् उस व्यक्ति की कार् में बैठ चला गया....
वह फैक्ट्री भी उस फिल्म् की शूटिंग् में दर्शायी जा रही थी....सीमा का परिवार एवम् समृद्ध ये चारों बहुत ही मन लगा इस शूटिंग् में संलग्न थे....इन चारों ने भी उस फिल्म् में कहीं-कहीं अभिनय किया था....सहसा तम्बु में आग लग गयी और फैक्ट्री में फैलने लगी....यद्यपि समय रहते आग पर नियन्त्रण कर लिया गया पर यह आग कुछ हानि तो पहुंचा ही गयी....अब आगे की शूटिंग् फैक्ट्री से कहीं दूर ही करने का निर्णय लिया गया....दो मासों में फिल्म् का निर्माण पूरा हो गया....रिलीज् होने पर फिल्म् मध्यम से अच्छतर स्थिति में रही, अर्थात् फिल्म् से कुल मिलाकर लाभ ही मिला....राघवेन्द्र कश्यप का नाम धीरे-धीरे प्रसरने लगा....उन्हें प्रशंसायें मिलनी लगीं....सीमा के परिवार ने विशेष रूप से फोन् कर रघुराज को सारी सूचना दी....रघुराज ने प्रसन्नता व्यक्त की....
एक दिन सीमा की मां जब आवास में एकाकिनी थी तब सहसा किसी ने द्वार का लौक् खोल अन्तः प्रवेश कर उनका बलात्कार किया और आराम से चला गया....एमां ने तुरत विशेष को सूचित किया....वे तुरत दौडे आये पर अब क्या किया जा सकता था...!...कब किसके आवास में ऐसी घटना घट जाये कौन सुरक्षित है इस संसार में..!...कहीं सीमा के संग भी ऐसा हो गया तो..!...यह चिन्ता दोनों के मन में समाने लगी....उन्होंने तुरत रघुराज से सीमा और समृद्ध के विवाह की बात की....रघुराज ने स्वीकार किया पर कहा कि समृद्ध एल्.एल्.एम्. पूरी कर अधिवक्ता बन निज पैरों पर खडा हो जाये तभी वे उसके विवाह की बात सोंचेंगे....निराश सीमा के माता-पिता ने सीमा का विवाह कहीं और करने को सोंचा....
एक दिन प्रातःकाल जब एमां बाथ्रूम् में जब हाथ धो रही थी तब उसे हाथ कुछ जलता-सा लगा....उसने तुरत विशेष को सूचित किया....विशेष ने भी पानी को हानिकारक माना....उसने तुरत मेकैनिक् को बुला वाटर्-टेष्टिंग् करवायी.....वाटर में एसिड् मिक्स्ड् मिला....पर क्या पूरी वाटर्-सप्लाई में दोष था!....उस बिल्डिंग् के अन्य फ्लैट्स् में वाटर्-सप्लाई दोषरहित पायी गयी....यह कैसे हुआ....मेकैनिक् ने सीमा के फ्लैट् के पाइप्स् की चेकिंग् आरम्भ की....ज्ञात हुआ कि छत पर रखे विशाल वाटर्-टैंक् से सीमा के फ्लैट् को जानेवाले पाइप् की कुंजी खोल किसी ने एसिड् डाल पुनः कुंजी कस दिया था जिससे एसिड् सीमा के फ्लैट् में स्थापित वाटर्-टैंक् में आ मिला था....ऐसा कौन दुश्मन प्रकट हो गया जिसकी पहुंच यहां पर्यन्त है!....विशेष ने रघुराज को सूचित किया....रघुराज ने दुःख व्यक्त किया और कहा कि वे ऐसा वाटर्-फिल्टर् का उपयोग करें जो एसिड् आदि सभी प्रकार के दोषों को पानी से निकाल दे....विशेष ने ऐसा ही किया....अब वे सभी फिल्टर्ड् वाटर् का ही उपयोग सभी कार्यों में करने लगे थे....
सीमा और समृद्ध दोनों के मस्तिष्क तीव्र गति से कार्य कर रहे थे कि ऐसी विपत्तियां आ कैसे रही हैं.....कौन हो सकता है इन सभी षड्यन्त्रों के पीछे..!....
समृद्ध और सीमा दोनों नगर में घूम रहे हैं और मनोरंजन कर रहे हैं....एक गाना भी चल रहा है.....दोनों एक शौपिंग् मौल् के ऊपरी फ्लोर् पर हैं....तभी समृद्ध की मोबाइल् पर एक कौल् आती है कि ’अभी तुरत एकाकी मुझसे नीचे मिलो, तो सम्भवतः तुम्हें वह रहस्य की बात ज्ञात हो सके कि कौन है तुम्हारे पीछे पडा....!’ यद्यपि वे दोनों वहां एकाकी हैं तथापि समृद्ध सीमा को कुछ मिनट् वहीं रुकने कह स्वयम् नीचे जाता है.... जैसे ही समृद्ध नीचे जाता है वैसे ही एक नकाब पहना व्यक्ति वहां आ पीछे से सीमा का मुंह बन्द कर बगल के कक्ष में ले जा अन्दर ले जाता है और बलात्कार की चेष्टा करने लगती है....सीमा को सन्देह होता है कि कहीं समृद्ध ही तो नहीं ऐसा कर रहा है....! सीमा उस व्यक्ति की पकड से छूटने का प्रयास करती है....वह चिल्लाती है पर वहां कोई है ही नही जो उसकी सुने....पर इसके पूर्व कि सीमा का बलात्कार हो जाये, समृद्ध नीचे किसी को न पा पुनः ऊपर आता है और सीमा को चारों ओर ढूढता है....सहसा सीमा की चिल्लाहट उसके कानों पर्यन्त पहुंच ही जाती है और वह तीव्र गति से उस कक्ष के द्वार को पहुंच नौक् करता है....द्वार नहीं खुलने पर समृद्ध द्वार पर धक्का मारता है....द्वार अन्ततः टूट जाता है और अन्दर से नकाबधारी उछलकर बाहर भागता है.... समृद्ध उसे पकड लेता है और दोनों में मारामारी होने लगती है....संघर्ष में नकाबधारी रेलिंग् से नीचे लटक जाता है और गिर मरने की स्थिति में आ जाता है....ऐसे में समृद्ध उसका नकाब उतारने का प्रयास करता है....वह व्यक्ति एक हाथ से नकाब उखडने से रोकने का प्रयास करता है पर ऐसे में केवल एक हाथ पर टिके रहने का सन्तुलन खो नीचे गिर जाता है....वह मर गया होगा ऐसा भय कर समृद्ध और सीमा दोनों वहां से भाग निकलते हैं....
समृद्ध और सीमा निज-निज आवासों को पहुंचते हैं....समृद्ध सोचता है कि उसने उस बलात्कारी को नहीं मारा है, वह स्वयम् अपनी मौत मरा है....रघुराज कहीं बाहर गये हुए हैं....समृद्ध जहां भयपूर्वक निज आवास में बैठा है वहीं निज पिता के यूं अदृश्य हो जाने से वह बहुत चिन्तित भी है.... न कोई फोन् आया और न ही उनके मोबाइल् से कोई उत्तर मिला अतिरिक्त स्विच्ड् औफ् होने के.... एक दिन रघुराज का बैंक् ष्टेट्मेण्ट् आता है जिसमें इन दिनों के कैश्-विथ्ड्रावल् का उल्लेख है जबसे वे अदृश्य हैं....समृद्ध का मस्तिष्क तीव्र गति से काम करने लगता है....वह तुरत उस बैंक-ब्रांच् में पहुंचता है और अनुरोध करता है कि उसे बताया जाये इस दिनांक से लेकर अभी पर्यन्त के कैश्-विथ्ड्रावल् किन स्थानों के एटीएम् से किये गये हैं....उसे उस स्थान का पता बता दिया जाता है जहां से ये सारे विथ्ड्रावल् किये गये थे.... समृद्ध वहां पहुंच जाता है....वह स्थान उसके आवास से बहुत दूर पर उसी नगर के एक किनारे पर है....समृद्ध उस एटीएम् पर दृष्टि जमाये बैठा है....दूसरे ही दिन वह देखता है कि रघुराज को एक ऐम्बुलेंस् से लाया गया....वे किसी प्रकार नीचे उतरे और कैश्-विथ्ड्रावल् कर पुनः ऐम्बुलेंस् में बैठ चले गये....समृद्ध उस ऐम्बुलेंस् का पीछा करता है....उस हौस्पीटल् में पहुंच रघुराज के कक्ष में भी पहुंच जाता है....रघुराज उसे देख पूर्व तो घबडाये पर पुनः मन शान्त कर बोले-"मैं नहीं इच्छता था कि तुमलोगों को मेरी अस्वस्थता के कारण चिन्तित होना पडे इसलिये यहां एकाकी पडा हूं...."
"पर विना सूचित किये यूं अदृश्य हो जाने से तो हमलोग और भी अधिक चिन्तित हो गये थे....!"
कुछ और प्रेम और स्नेह की बातें होती हैं जिसके पश्चात् वह आवास लौट मां को भी संग ले आने की बात कहता है....उस कक्ष से बाहर निकल वह सम्बद्ध डौक्टर् से रघुराज के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में पूछता है तो डौक्टर् बताता है कि यह तो ईश्वरीय चमत्कार है कि इतनी ऊंचाई से गिर भी अभी जीवित हैं....कहां कितनी ऊंचाई से गिरे यह जिज्ञासा होने पर डौक्टर जो बताता है वह वही मौल् है तथा वही दिन और समय भी है जब समृद्ध के हाथों वह बलात्कारी गिरा था....समृद्ध आश्चर्यचकित रह जाता है....वह पुनः रघुराज के कक्ष में लौट उनसे सारी बात बताने को कहता है....रघुराज विवश हो उसे बताता है- "मेरी यह हार्दिक इच्छा थी कि मेरी लिखी एक कथा पर एक अच्छी फिल्म् बने जिससे मैं न केवल एक कथाकार के रूप में प्रसिद्धि पाउं अपितु होनेवाले करोडों की आय भी मेरी अपनी आय होती....पर उसी समय विशेष ने भारत लौटकर न केवल मेरे करोडपति बनने की आशा तोड दी अपितु मेरे फिल्मी कथाकार के रूप में उभरने के सपने को भी चूर कर दिया....मैंने उसकी डुबती फैक्ट्री को करोडों की वार्षिक आय देनेवाली फैक्ट्री बनाया और उसके स्थान पर मुझे क्या मिला....?...निराशा....! मैं राजा की भांति जीवन जी रहा था जो मुझसे छिन गया....बौलिवुड् में उभरने की सम्भावना भी छिन गयी....ऐसे में मेरे संग एक ही कामना जन्म ले चुकी थी....और वह थी प्रतिशोध की.... एक सेल्स् रीप्रेजेण्टेटिव् को विशेष ने मार भगाया था....मैंने उसकी सहायता से फैक्ट्री में आग लगवायी....मैंने उसकी सहायता से सीमा के फ्लैट् की वाटर्-टंकी में एसिड् मिलवा दिया....मैंने सीमा की मां का रेप् किया....तत्पश्चात् मैंने ही सीमा का रेप् करना इच्छा....(आह् आह् करता वह कुछ तीव्र सांसें लेता है) इस संसार में केवल सनातन अध्यात्म दर्शन के अनुसार सम्यक् रूप से जीवन जीनेवाले ही निज मन पर नियन्त्रण रख पाते हैं....अन्य सभी न जाने कब मित्रता से शत्रुता पर उतर आयें....मन परिवर्तित होते विलम्ब नहीं होता....मैं आत्मसुधार करना इच्छता हूं पर अब जीवन के अन्तिम चरण में मैं आ चुका हूं.... अब और जीने की इच्छा नहीं रह गयी है यह सारा रहस्य खुल जाने के पश्चात्....मैं स्वेच्छा से मृत्यु का आलिंगन कर रहा हूं...." ऐसा कहते-कहते रघुराज ने आंखें बन्द कर लीं और देखते-देखते उसके प्राण निकल गये....
समृद्ध इन सारी घटनाओं को गुप्त रखता है....रघुराज का वह दाह-संस्कार करवाता है....राघवेन्द्र कश्यप की लिखी कथा पर बनी वह फिल्म् हिट् सिद्ध होती है जिससे करोडों की आय विशेष को होती है....सीमा और समृद्ध विवाह कर दोनों सानन्द जीवन जीने लगते हैं....
समाप्त
बट इण्डियन ष्टाइल है.... फकर तो कोई इण्डियन ही जान पडता है..... फेस छुपा रखा है.... लगता है कभी मैंने इसे कहीं देखा है..... इसका फेस सुनील के फोटो से मिलता-जुलता है.... और ये तो साधारण स्तर की गायिका राधिका है.....!... तो इससे यह स्पष्ट होता है कि राधिका को गायन क्षेत्र में सफल बनाने का आश्वासन दे सुनील से उसकी फकिंग की... और चुपके-से उसकी ब्लू फिल्म भी बना ली.... यह वीडियो तो सुनील के नाश के लिये पर्याप्त है..... वह राज को फोन लगाता है पर राज उसकी कौल देख सम्पर्क-विच्छेद कर देता है..... हूं.... तो राज अप्रसन्न है मुझसे.... कोई बात नहीं.... मैं स्वयम् ही देखता हूं क्या करना चाहिये.... वह सौफ्ट्वेयर इंजीनियर से इस सम्बन्ध में बात करता है.....इंजीनियर भी यह देख स्पष्ट करता है कि यह सुनील ही है....और अब सुनील को निज अपराध स्वीकार के संग-संग राज सर से क्षमाप्रार्थना के लिये विवश करना चाहिये.... इंजीनियर राज से बात करता है.... राज समर को - "सोच-विचार कर कार्य करो.... कहीं इससे सुनील हमारे लिये संकटकारी न बन जाये....."
"सुनील से मुझे इस सम्बन्ध में कोई भय नहीं जान पडता.... वो दब जायेगा...."
"तो ऐसा ही करो..."
समर सुनील को - "हमें एक वीडियो फाइल कहीं से मिली है.... जिसमें तुम गायिका राधिका का रेप कर रहो हो..."
"मैंने उसका कभी रेप नहीं किया है....."
"ओहो.... रेप नहीं किया है....पर पूजा तो की है, न? जो तुमने राधिका देवी की पूजा की है उसके दृश्य हमारे संग हैं...क्या कहते हो.....?"
"तुम...तुम क्या इच्छते हो.....?"
"बहुत कुछ नहीं....केवल इतना ही सा....कि जितने अपराध तुमने राज म्यूजिक के विरुद्ध किये हैं उन सबके सम्बन्ध स्पष्ट और सार्वजनिक अपराध-स्वीकृति करो...और राज जी से सबके समक्ष क्षमायाचना करो....."
"नहीं तो...?"
"नहीं तो, वो अभी मैं नहीं जानता.... यदि तुम ’न’ बोलो...तो हम रणनीति निश्चित करेंगे कि आगे क्या करना है.... हम तुम्हें छोडेंगे नहीं इतना निश्चित है...और तब तुम नष्ट हो जाओगे यह भी निश्चित जान पडता है...."
"कहां से बोल रहे हो अभी...?"
समर कुछ भी उत्तर नहीं देता है..... कुछ क्षणों तक शान्ति छायी रहती है....तत्पश्चात् कौल डिस्कनेक्ट हो जाता है....समर का मन अशान्त होने लगता है.... उसे लगता है सुनील उसपर आक्रमण करा सकता है....वह इंजीनियर से इस सम्बन्ध में बात करता है.....
"क्या आवश्यकता थी उसे सीधे धमकी देने की....किसी और से कहलवा सकते थे यही बात....वो वीडियो कहीं और शो करवा दे सकते थे..... अब हो गयी गुण्डों मवालियों से दुश्मनी और अशान्ति एवम् भय का आरम्भ...और ये राज सर क्यों अप्रसन्न हैं ...?”
समर सारी बात इंजीनियर को बताता है और उसे बोध कराता है कि वह कोई रौंग व्यक्ति नहीं है...बाइ मिष्टेक ही जो हुआ...वह सभा को बहुत प्यार करता है... सभा उसके जीवन में आयी प्रथम स्त्री है.....इंजीनियर यही बात राज को बताता है...राज - "मैं तो मान लूं....पर सभा जो बहुत क्रुद्ध है समर पर....वह तो केवल यह बोली कि समर ने ही उसके एक लाख रुपये चुराये थे.... वह यह भूल गयी कि समर ने उसका उस दिन रेप भी किया था..."तभी सभा राज के कक्ष में प्रवेश करती है -"किसने मेरा रेप किया था...?"
"वो मैं किसी और की बात कर रहा था...."
"यहां कोई और सभा नहीं है.....समर ने मेरा रेप किया और मुझे इसकी जानकारी नहीं...!"
"तुम भूल रही हो....उस दिन चोरी के संग-संग....."
"हां....हां.... मैं समर को एक अच्छा मनुष्य मानती थी....वह इतना गिरा हुआ निकलेगा ऐसा मैंने कभी सोचा भी नहीं था...."
"नहीं....ऐसा नहीं है...समर एक अच्छा ही मनुष्य है... उसने जो भी किया केवल तुम्हारे संग ही किया.... हो सकता है कि उसे ही तुम्हारा पति बनना तुम्हारे भाग्य में लिखा हो.... वह तुम्हें बहुत प्रेम करता है...."
सभा के मन सहसा समर के प्रति प्रेम उमडने लगता है..."अच्छी बात है...कहां है वह, उससे मैं मिलना इच्छती हूं....." तभी रिसेप्शन से फोन आता है कि सभा के परिवारवाले उससे मिलने आये हैं..... सभा रिसेप्शन को जाती है.... वहां खडा एक व्यक्ति बताता है कि सामने के गेष्ट हाउस में वे ठहरे हैं....आइये.....वह उसके संग जाती है..... इधर इंजीनियर लौट अपने कार्यकक्ष में आता है तो समर वहां बैठा इण्टरनेट सर्फ कर रहा है...."समर... अब तुम्हारे ग्रह पुनः तुम्हारे पक्ष में आ रहे लगते हैं....सभा मान गयी है तुमसे विवाह करने को और अभी तुमसे मिलने ही आ रही थी...."
"तो...! क्या हुआ...अब नहीं आ रही है..?"
"रिसेप्शन से फोन आया कि उसके परिवार वाले उससे मिलने आये हैं...अतः वह उधर ही गयी है....."
समर सीसीटीवी से रिसेप्शन का दृश्य देखता है पर वहां न तो सभा दिखी न ही सम्बन्धित कोई व्यक्ति.... वह चिन्तित हो इंजीनियर से कहता है कि वह देखने जा रहा है कि कहां गये सब...!....रिसेप्शन से जानकारी मिली कि वह सामने के गेष्ट हाउस में गयी है.....रिसेप्शन से कुछ आगे बढ उसने सभा को फोन किया पर सभा का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला...इधर जब सभा वहां गेष्ट हाउस के कम्यूनिटी हौल में पहुंची तो अन्दर घुसते ही उस व्यक्ति ने बाहर से द्वार बन्द कर दिया.... अन्दर एक व्यक्ति कुर्सी पर सर पीछे किये बैठा है....
"कौन हो तुम..? और मुझे इस प्रकार से यहां लाने का उद्देश्य...?"
"राज की दिन-प्रतिदिन हो रही उन्नति के पीछे तुम हो...यदि तुम न रहो संग उसके तो हमारी कम्पनी बहुत सरलता से राज म्यूजिक को बहुत पीछे छोड दे सकती है....."
"तुम्हारी कम्पनी? क्या करते हो तुम...? क्या है तुम्हारा नाम?"
"जिसपर मेरी दृष्टि टेढी हो जाये.....करा दूं उसकी हाय हाय... नाम है मेरा.....सुनील उपाध्याय....." उसकी चेयर सभा के समक्ष मुडती है...."तुमने मुझे अभिजान लिया होगा....तुम यदि कौण्ट्रैक्ट के अनुसार हमारे संग काम करती होती तो राज म्यूजिक के स्थान पर सुनील म्यूजिक की धूम मची होती.... पर तुमने हमारे संग विश्वासघात किया.... कोई बात नहीं...हम उसे भूलने को तैयार हैं... यदि तुम अब भी हमारी कम्पनी में आ जाओ....."
"कभी नहीं....मैं राज सर से ऐसा विश्वासघात कभी नहीं कर सकती...."
"अओऽऽऽऽ...राज के संग विश्वासघात विश्वासघात है.....और हमारे संग विश्वासघात क्या कुत्ते की मुंह पर मारी लात है...!!!!!!"
सभा अपने हाव-भाव से दृढ जान पडती है....सुनील क्रुद्ध होता है - "अरे ओझा....कहां गया ओझा रे धरती का बोझा.....शीघ्र पान ला....!"
ओझा पान ले अन्दर घुसता है - "का रे उपधिया....चिल्लाता क्यों है....तुम्हारा मैं पीयून हूं का??? फ्रेण्ड्ली वे में ला दिया....ले पकड...."
"अरे....का बोला...उपधिया?????? यहां लोग मुझे कितने सम्मान से गुरुजी गुरुजी कहते हैं....और तुम मुझको उपाध्याय जी भी नहीं, उपधिया कह दिया....दुबारा बोला तो तेरा टिकट कटवा दूंगा...सीधे जौनपुर का....कुछ बात पल्ले पडी...!"
"जो स्त्रियां होती हैं उनका पल्ला होता है.....जो पुरुष होते हैं उनका बल्ला होता है.... और मेरा कोई कुछ बिगाड नहीं सकता....क्योंकि मैं जहां खडा हो जाऊं...वहां केवल धूंये का छल्ला होता है....."
"तुझे तो मैं अभी देखता हूं..." सुनील का मोबाइल बजता है....-"हां...हलो...क्या...वह रिसेप्शन से चल पडा है....अच्छा....अरे ओझा...फटाफट इस देवी जी का मोबाइल छीनकर ला...."
ओझा पहुंचता है सभा के समीप तो सभा उसे निकाल कर मोबाइल दे देती है....ओझा वह मोबाइल स्विच औफ कर सुनील को दे देता है.....सुनील -"सभा....अन्तिम बार पूछ रहा हूं... संग मेरे आती क्या....? नहीं??????????? तो मरने को अब मन बना ले.....न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.... न रहेगी सभा राज के संग... न लगेगी उन्नति राज के अंग... ओझा, इसे इसके चिताकक्ष में ले चल...."
"मुझ एकाकी से यह नहीं ले जा पायेगी...तू भी इसे पकड...."
दोनों उसे पकड एक खम्भे से बान्ध देते हैं और सभी लकडी की वस्तुओं पर एवम् चारों ओर पेट्रोल छिडक कर आग लगा देते हैं..... आग अभी सभा से दूर है... ऐसे में दोनों द्वार से बाहर निकल बाहर से द्वार का हैण्डल लगा देते हैं... पर संयोग से उनके जाते समय अन्दर आते हुए समर की दृष्टि उनपर पडती है.... सुनील उसे देख कुछ घबडाया-सा तेजी से आगे बढने लगता है तो समर का साहस बढ जाता है - "ए....तुम सुनील हो, हां ??"
"कौन सुनील ??"
पर समर को विश्वास हो जाता है कि यह सुनील ही है, और उसने सभा के संग कुछ गडबड की है....वह तुरत फोनकर इंजीनियर व अन्य कर्मचारियों को वहां पहुंचने कहता है...और सुनील को ललकारता है....इसपर सुनील उसे मारने को आगे बढता है....दोनों में मारामारी आरम्भ हो जाती है.....इतने में इंजीनियर आदि भी वहां आ सुनील को मारने लग जाते हैं.....ओझा वहां से भागना चाहता है पर समर उसे पकड मारने लग जाता है और कहता है बता कहां है सभा? वह बता देता है....
"तो चल मेरे संग और उसे बचा...." उधर सबलोग सुनील से मारामारी में लगे हैं इधर समर और ओझा गेष्ट हाउस से हाथवाला अग्निशामक यन्त्र ले हौल में अन्दर घुसते हैं....किसी प्रकार बचते और कुछ संघर्ष करते सभा तक पहुंचते हैं....दोनों किसी प्रकार सभा को खम्भे से खोल निकालना चाहते हैं...पर आग ही आग तबतक पूरा फैल गया है कि जीवित बच निकलना सम्भव नहीं लग रहा है....तभी समर विपरीत दिशा के द्वार को अपने बहुत समीप देखता है जिधर आग भी न्यून है....दोनों जलते लट्ठे से मार-मार वह द्वार तोड देते हैं और उधर से बाहर रोड पर निकल टैक्सी ले हौस्पीटल पहुंचते हैं....तीनों ही को भर्ती कर लिया जाता है.... सभा जलने से अधिक नर्वस हो अचेत हो गयी है....
उधर सभी सुनील को अपने वश में कर इतना मारने लग जाते हैं कि वह त्राहि-त्राहि करने लग जाता है.....सभी उससे पूछते हैं कि चल बता सभा कहां है नहीं तो हम तुम्हें यहीं मारकर गाड देंगे... हारकर कहता है कि वह सामने के हौल में है.... तब उसे ले सब उस हौल की ओर बढते हैं तो देखते हैं कि आग की लपटें उस द्वार को भी जलाते बाहर निकल रही हैं.... तब वे सुनील को और मारने लग जाते हैं....सुनील अपने प्राणों की भिक्षा मांगता है....सभी - "यदि हमारे हाथों से नहीं मारा जाना चाहता है तो सभा को अन्दर से जीवित बचाकर ला...नहीं तो तेरी मौत निश्चित है"
....सुनील विवशता में अन्दर घुस जाता है सभा को जीवित निकाल लाने को... तब सभी का ध्यान समर की ओर जाता है....समर कहां है....समर को इंजीनियर फोन करता है....समर बताता है कि वे तीनों हौस्पीटल पहुंच गये हैं..... कुछ चोटें लगी हैं, कुछ जल भी गया है पर सब कुछ दिनों में ठीक हो जायेगा...सभा नर्वस हो कुछ अचेत हो गयी थी पर अब धीरे-धीरे उसकी स्थिति में सुधार हो रहा है....तब सबलोग यह सोचते हैं कि अब क्या किया जाये अन्दर तो सुनील फंस गया होगा.... तभी पुलिस भी सूचना पा आ जाती है... सब उसे सारी बात बताते हैं.... तुरत अग्निशामक यन्त्र मंगवाया जाता है....जब सारी आग बुझाकर हौल को शीतल कर दिया जाता है तब सबलोग अन्दर घुसते हैं.... अन्दर मध्य में सुनील का जला शव पडा है.... सब एकसह बोल पडे -"अरे इसकी तो हो गयी हाय-हाय....नाम था जिसका सुनील उपाध्याय...." और ठहाके फूट पडते हैं...अब दृश्य में सभा और समर विवाहित हो किसी गार्डेन में और समुद्रतट पर एक-दूसरे की बांहों में प्रेमगीत गाते हुए...
समाप्त
आनेवाले सम्भावित कथा-प्लौट्स --
१. वाय्रस्
२. विनय ठाकुर का भूत
नामपट्ट से सभी औफिसेज के नाम देखता है....देखते-देखते एक औफिस के नाम पर उसकी आंखें चौडी हो रुक जाती हैं ---’सुनील म्यूजिक’......वह फोन कर राज को बताता है कि वह अभी वहां से बोल रहा है और उसने ऐसा-ऐसा देखा है....अभी वह राज से बातें कर ही रहा था कि लिफ्ट से निकल तीन बदमाश जैसे व्यक्तियों को उसकी ओर आते देखता है....वह मोबाइल नीचे कर नामपट्ट से अन्य दिशा में देखने लग जाता है....वे तीनों वहां आ बात करते हैं - "वो समर का बच्चा यहीं से बोल रहा था...दूर नहीं निकला होगा...चलो बाहर देखें...." वे मेन रोड पर जाते हैं, समर समानान्तर द्वितीय सडक पर निकल टैक्सी ले सीधे राज को पहुंचता है..."मैं जीवित तो हूं...! कहीं मुझे कोई चोट तो नहीं लगी है...?"
"क्या बात है..?बडे भयभीत जान पडते हो.....!"
"आपको बताया नहीं मैंने!!!!"
"हां.....तो अब भयभीत तो उन्हें होना चाहिये.....तुम क्यों हो रहे हो...!"
"वो उस समय मोबाइल पर हो रही हमारी बातचीत सुन रहे थे, और तुरत तीन व्यक्ति मुझे पकडने वहां पहुंचे भी थे...पर वे मुझे अभिजानते नहीं थे....संयोग से मैं अभी सकुशल आपके समक्ष खडा हूं....."
"हूं....इसका अर्थ कि वे न केवल रिकार्डिंग के समय अपितु निजी वार्ताओं को भी सुनते रहते हैं...ओः....मोबाइल कम्पनियों से सांठ-गांठ कर कोई किसी की भी सारी बातों को सुनते-रिकार्ड करते रह सकता है जबतक कि मोबाइल औन है....”
दोनों चिन्ता और विचारों में मग्न बैठे सोच रहे हैं....तभी राज को एक कौल आती है किसी लैण्ड्लाइन फोन से - "बहुत दौड-भाग लगा रहे हो समस्याओं के समाधान के लिये....पर आज तुम पुनः लुट गये...पूछो कैसे....."
राज यह स्वर अभिजान गया कि यही वह स्वर था जब द्वीप से लौटने पर इसने किसी पीसीओ से कौल किया था...-"कैसे ?"
"तुमने आज जो मधुर गीत रिकार्ड किया वह हमारे अधिकार में आ चुका है...."
"पर मैंने तो सुरक्षा की सारी व्यवस्था की थी....रिकार्डेड सौंग अभी मेरे लैपटौप में सुरक्षित है....!!!!!!!"
"कहीं न कहीं तो कुछ न्यूनता रह गयी होगी......"
"मेरी टीम से किसी ने विश्वासघात किया है.!!!!!!"
"न.....”
"तब यह कैसे हो पाया?????"
"तुम जानो....." सम्पर्कविच्छेद हो गया....
राज सभा को फोन कर इस कौल के सम्बन्ध में बताता है....सभा दुःखी होती है....अभी राज और समर बातें कर रहे हैं कि सभा का फोन आता है -"सर.....मुझे राघवेन्द्र कश्यप सर के दिये परामर्श स्मरण में आ रहे हैं...उनने यह भी बताया था कि इण्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर कम्पनी के अधिकारियों/एग्जिक्यूटिव्स से सांठगांठ कर जिस किसी के कम्प्यूटर से सारे फोल्डर्स और फाइल्स कौपी कर लिये जा सकते हैं जब इण्टरनेट उस कम्प्यूटर पर औन हो....यही काम हमारे दुश्मनों ने इस बार किया जान पडता है...."
राज और समर पुनः बातें कर रहे हैं....."सर....आप तुरत अपना मोबाइल औफ करें..."
राज तुरत मोबाइल औफ करता है - "हूं....अब बोलो.... मोबाइल अब अधिकतर बन्द ही रखना पडेगा...."
"ये दो बार जो कौल आपको आये हैं...बोलनेवाला सुनील ही है या उससे निकट का कोई व्यक्ति यह जानने को एक युक्ति मेरे मन में आयी है.....अपने फिल्म का निर्माता आपका मित्र है.....उसके किसी व्यक्ति को सुनील के समीप आनेवाली फिल्म में संगीत देने के सम्बन्ध में बात करने भेजें....वह निज मोबाइल से आपका...नहीं...यहां किसी और का नम्बर डाय्ल कर औन रखेगा जिससे वहां की सारी बात हम सुनते रहें....सुनील और अन्य भी वहां के लोगों से उसके बात करते समय देखते हैं किसका स्वर उस स्वर से मेल खाता है.... प्लान के अनुसार एक व्यक्ति सुनील को जाता है.... राज और समर बहुत मानसिक मन्थन पाने से बच गये, क्योंकि सर्वप्रथम वह व्यक्ति सुनील से बातें करता है, और सुनील का ही स्वर पूर्णतया उस स्वर से मेल खाता प्रतीत होता है....दोनों को यह जान बहुत आराम अनुभूत होता है कि दुश्मन कौन है यह स्पष्ट हो गया है....अब दोनों प्रोड्यूसर की सहायता से प्रिया म्यूजिक से सम्पर्क कर यह जान जाने में सफल होते हैं कि उसे वे राज की कम्पनी से चुराये गये गीत सुनील के ही व्यक्तियों ने बेचा था....
"सर...जैसा सुनील हमारे संग कर रहा है वैसा उसके संग भी तो किया जा सकता है....?"
"हां....पर अन्यों को सतानेवाले ये मानकर दुष्टता करते जाते हैं कि ऐसा केवल वही कर सकते हैं, कोई उनके संग ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता...किसका साहस है जो हमारे विरुद्ध सोच भी पाये ?"
"आपको हानि पहुंचाने की जो-जो युक्तियां उसने लगायीं , वे सभी उसके संग भी की जा सकती हैं.....तबतक...जबतक कि वह आ आपसे क्षमायाचना न करे...."
"तो जान लो कि सभा भी तुमको मिल गयी......"
"पर, हीरो बने विना वह मुझे स्वीकार नहीं करेगी...."
"तुम्हें हीरो बनवाना मेरा काम है...तुम अपना प्लान देखो...."
२० समर राज की कम्पनी के गेट से निकल रोड पर चला जा रहा है.....सहसा एक कार उसकी दायीं ओर सर्र् से आ रुकी....-अरे....समर.....तू मर गया है या जीवित है!!!!!!" समर उसे देख भी अनदेखा कर चुपचाप चलता जाता है...."अरे..तू सुन नहीं रहा क्या....?" वह व्यक्ति कार से निकल समर के कन्धे पर हाथ रख बोलता है- "अरे...मुझे भूल गया क्या??? दो बार तेरे आवास गया पर वहां ताला लटका था....तेरे मोबाइल पर तीन बार कौल किया पर स्विच्ड औफ.....हैं..?????"
"अं...कौन बोल रहे...अच्छा, क्या बोल रहे....?"
"अरे...तू क्या मुझे नहीं अभिजाना!!!!!!!!!"
समर ने ध्यान से उसकी आंखों में देखा और सोचा -"राज ने मुझे जो हीरो बनवाने का आश्वासन दिया है वह समर्थ है मुझे ऐसी प्राप्ति करवा देने में....इस जौन के बच्चे से तो कोसों दूर रहने में ही अपनी भलाई है.... सभा को पाना है तो स्वच्छ जीवन ही जीना होगा.... जौन से सम्बन्ध का परिणाम होगा ऐसी सम्पत्ति पाना जो अशान्ति के संग किसी दिन विनाश ला देगी...-"कौन हो तुम? मेरा तुमसे न कभी परिचय रहा है न रहेगा......"
"क्या तुझे मुझसे लाखों रुपये नहीं लेने हैं?????"
"न...."
"पश्चात् यह न कहना कि मैंने तुम्हें चीट किया है......!"
"तुमसे मैं कभी मिला नहीं....और भविष्य में कभी मुझसे मिलने का प्रयास भी न करना...."
"तू स्वच्छ जीवन जीना चाहता...मैं समझा...ओके डियर....गुड्बाई....." जौन चला गया......
समर ने चारों ओर देखा कहीं कोई उसे जौन संग बात करते देख रहा था क्या.......वह निज आवास पहुंचता है....वहां पडोस में एक नवयुवक है जो एक मोबाइल कम्पनी में कष्टमर केयर एग्जिक्यूटिव है....समर उससे मिलने जाता है....वह उसकी बहुत प्रशंसा करता है कि अब तो आप हीरो भी बन जायेंगे!!!!!!! समर उसे सारी आपबीती सुनाता है....
"जो सुनील आपलोगों के संग करता रहा है वह तो उसके संग भी किया जा सकता है... इसमें आप इतना टेंशन न लें.... हमलोग तो जब चाहें जिसके भी मोबाइल से उसकी निजी बातों को सुनते रहें... जिसपर मन अप्रसन्न हो जाये उसके टाक-बैलेन्स को न्यून कर दें.... कौल रेट अधिक चार्ज कर लें.... इण्टर्नेट सर्फिंग में चाहे तो दस गुणा बीस गुणा बढाकर दिखा दें इतना अधिक डेटा सर्फ कर लिया है.... कष्टमर कम्प्लेन करे भी तो कोई अन्तर पडता.... ऊपर से नीचे पर्यन्त सब मिलीभगत रहती है....एक दोषी का कम्प्लेन किसी अन्य दोषी से करने पर कुछ अन्तर नहीं पडता.... कष्टमर कन्ज्यूमर कोर्ट भी नहीं जा सकता, क्योंकि कष्टमर के संग न तो टाक-बैलेन्स का न ही सर्फिंग टाइम या टाकिंग टाइम का कोई वैध प्रमाण होता है....ही ही ही....."
’मन तो करता है इस कमीने को मारकर यहीं गाड दूं...’..."भई सूरज....अभी पर्यन्त जो कुछ भी तुम करते रहे उससे तुम्हें कोई धनार्जन हुआ ?"
"नहीं...पर रंजन बहुत आया.... बहुत मनोरंजन हुआ करता है....."
"इसी काम के लिये तुम्हें अब धन मिलेगा...सहस्रों रुपये....."
"वो कैसे !!" वह गम्भीर और उत्सुक हो गया....
समर ने सारा प्लान उसे विस्तार से समझा दिया...संग ही चेतावनी भी दी कि यदि यह बात किसी को बता दी तो.....अगले दिन एक मोबाइल फोन सिम कार्ड ले समर राज को गया.... दोनों कोई भी बात करते तो मोबाइल औफ रखते हैं.... "यह सिम अपने दूसरे मोबाइल में लगा लें....अब देखें कितना रंजन आता है हमें...." राज सिम लगा औन करता है... समर कुछ विशेष नम्बर दबाता है तो कहीं की बातें और ध्वनि मोबाइल से आने लगती हैं.... "ये सुनील के मोबाइल से आ रही हैं...."
"क्या !!!!!!! " राज की आंखों में प्रसन्नता की किरणें तेज उभरीं....
"आप इस नम्बर से कहीं बात न करना.... केवल सुनना है सुनील को....और देखना है...शीघ्र बहुत कुछ करना है..."
"आज के दिनांक में सुनील म्यूजिक हमारी प्रतिस्पर्धा कर रहा है.... कभी-कभी हमारी पोजिशन उससे लो होती भी जान पडती है....मैं उसे तबतक झटके देना चाहता हूं जबतक वह आकर मुझसे क्षमा नहीं मांगता है...."
वे दोनों उधर की बातें सुन रहे हैं .... कोई सुनील को रिपोर्ट दे रहा है - "लगातार विलम्ब करने से, और गीत चोरी चले जाने की भी बात सुनकर वह प्रोड्यूसर राज से बहुत अप्रसन्न है....कह रहा था कि क्या जाने कहीं फिल्म प्रदर्शित होने के पश्चात् किसी ने क्लेम कर दिया कि ये गाने चोरी के हैं तो बडी समस्या हो जायेगी........ मैंने कहा हमारा म्यूजिक प्रोडक्शन बहुत सेफ और राज से हायर ष्टैण्डर्ड का है.... वह चुप रहा...."
"हां... लगे रहो....और... हमारे नये ऐल्बम का क्या हुआ...?"
"आज आठवें गाने की रिकार्डिंग पूरी हो रही है....इसके पश्चात् शूटिंग होनी है....."
"सबकुछ सुरक्षित तो है न???"
"अरे हमलोग भी क्या कोई राज म्यूजिक वाले हैं....!....पक्षी का भी साहस नहीं घुस जाये अन्दर विना हमारी अनुमति के.....सारा कुछ वैसे ही रिकार्डिंग रूम के कम्प्यूटर में रखा है...." सुनील इसके पश्चात् लंच करने चला जाता है....
"सर...हमलोगों का कम्प्यूटर इंजीनियर पास्वर्ड तोडने में कुशल है...उसे और एक कीमेकर को संग ले हमलोग उन सारे गानों की कौपी अपने हाथों में भी ले लें....."
"जैसा भी प्लान बनाओ, केवल इतना है कि सफलता मिलनी चाहिये....."
तीनों प्लान के अनुसार रात को सुनील म्यूजिक में सफलतापूर्वक प्रवेश कर जाते हैं....अन्दर भी एक व्यक्ति सोया मिलता है...उसे अनेस्थेटिक सूंघा गहरी निद्रा में भेज दिया जाता है... तत्पश्चात् कीमेकर सेफ का लौक खोलने में लग जाता है तो इंजीनियर कम्प्यूटर का पास्वर्ड तोडने में लग जाता है....कीमेकर सेफ का लौक खोल देता है....पर उसके अन्दर एक और लौक लगा है....अब उस लौक को खोलने में वह लग जाता है.....तबतक इंजीनियर पास्वर्ड तोड लेता है.....औपरेटिंग सिष्टम खुल जाता है....तब कीमेकर भी उस द्वितीय लौक को खोल लेने की प्रसन्नता जताता है....पर यह क्या!! अब अन्दर एक और लौक है.....कीमेकर उसे भी खोल जब एक और लौक खोलता है तब जाकर अन्दर एक बौक्स निकलता है... इंजीनियर निज संग लाये लैप्टौप के २५० जीबी हार्ड डिष्क में उस कम्प्यूटर के सेव्ड महत्त्वपूर्ण फोल्डर्स और फाइल्स कौपी करने में लगा है... लौकर के बौक्स में कुछ नोटों की गड्डियां, डाक्युमेण्ट्स, और सीडी-डीवीडीज रखे हैं..... गड्डियां छोड दी जाती हैं पर डाक्युमेण्ट्स स्कैण्ड और सीडी-डीवीडीज कौपी कर लिये जाते हैं..... सारा कार्य निबटा, सबकुछ यथापूर्व छोड वे तीनों लौट आते हैं.....राज इंजीनियर को सभी फाइल्स और फोल्डर्स से निज उद्देश्य की वस्तु-सामग्री निकालने को कहता है...समर आवास जा सो जाता है.....अगले दिन आने पर उसे इंजीनियर बताता है कि सभी नये ऐल्बम आदि प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण फाइल्स अपने हाथ लग चुकी हैं.... पर... किस प्रकार अब क्या किया जाये ?....समर एक पिम्प से बात करता है जिसकी बौलिवुड में अच्छी पकड है.....वह इस सम्बन्ध में गुप्त रूप से कहीं बात करने का वचन देता है.... इधर राज एक फिल्म निर्माता से समर के लिये बात करता है और उसे समर के मौडलिंग और ऐक्टिंग के वीडियोज दिखाता है.... कुछ अधिक ही रुचि दिखाने पर निर्माता मान जाता है समर को हीरो ले फिल्म बनाने पर... समर वहां जा कौण्ट्रैक्ट साइन करता है...... राज आराम से बैठा सभा को बता रहा है कि समर ने आज हीरो के रूप में अभी कौण्ट्रैक्ट साइन किया है.... सभा अनुमान कर लेती है कि समर अब आकर कौन्ट्रैक्ट पेपर्स दिखा उससे विवाह की बात कर सकता है.... कुछ समय पश्चात् जब समर समक्ष गेट से प्रवेश करता दिखता है तो वह वहां स्थित उद्यान के पुष्पों को निहारती खडी है.... पर समर उसके समीप से उसे ’हाय’ कह हथेली हिलाता औफिस में चला जाता है.....सभा कुछ उदास हो जाती है यह सोच कि कहीं इसे कोई और तो नहीं मिल गयी..!... अन्तः जा समर राज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है.... तत्पश्चात् आराम से बैठ पिम्प से सम्पर्क करता है.... पिम्प तुरत कहीं बातें कर समर को फोनकर बताता है कि प्रिया म्यूजिक इन गानों के क्रय के लिये मान गया है... पर एक तो वे रेट न्यून बता रहे हैं द्वितीय वह स्वयम् उस रेट का आधा लेगा..... समर राज से बात करता है.... राज कहता है कि सारा रेट वह पिम्प ही ले ले....हमें रुपये नहीं सुनील को हानि पहुंचती दिखनी चाहिये.... समर यही बात पिम्प को बता २४ घण्टे के अन्तर्गत उस ऐल्बम के रिलीज कर देने की बात कहता है.... वैसा ही होता है... सुनील और उसके संगी प्रिया म्यूजिक से क्रोध में बात करते हैं......प्रिया वाले बोले -"जैसा तुमलोग अभी तक करते आये हो वैसा ही किसी ने तुमलोगों के संग आज कर दिया है.... और तुम तो जानते हो कि ऐसे सम्बन्धों में हम किसी का नाम उजागर नहीं करते.... और तुमलोग हमारी शक्ति जानते हो.... पुनः ऐसे हमपर क्रोध दिखाने का साहस नहीं करना...."
समर राज को बताता है कि काम हो गया है.... कल उसका औडियो अल्बम रिलीज हो जायेगा.... राज- "पर गीतकार ने तो उन गीतों को कौपीराइटेड करा रखा होगा..?"
"नहीं....सुनील विकेड होने के संग-संग डेयरडेविल भी है....वह अपने गीतकारों को कौपीराइट लेने नहीं देता... फिल्म की कथा के अनुसार गीत लिखने को देता और कहता है अल्बम या फिल्म में उसका गीत उसके नाम के संग प्रकाशित हो जायेगा तो वही उसका कौपीराइट भी हो जायेगा कि वह गीत उसने लिखा है....."
"हमलोग तो ऐसा नहीं करते.... क्योंकि ऐसा कर सुनील किसी गीतकार की रचनाओं को चुरा भी ले सकता है....!"
"वो तो है...."
राज को सन्तोष है कि चलो कुछ तो झटका दिया.... अब वह बहुत सावधानी से रिकार्डिंग आदि सभी कार्य करता करवाता है....अब उसका व्यवसाय पुनः प्रगति के पथ पर आगे बढ रहा है...
२१ राज मन ही मन सभा के मन को समर के प्रति आकर्षित करने का प्रयास करता है..... सभा आजकल नये-नये फिल्मों में गाने गा रही है जिनमें अधिकतर लोकप्रिय हो रहे हैं....इधर समर ने भी हीरो के रूप में शूटिंग आरम्भ कर दी है.... उसके प्रोड्यूसर ने फिल्म की शूटिंग एक से दो मास पर्यन्त में पूरा कर लेने की बात दुहरायी है....सभा और समर एक-दूजे के निकट आ रहे हैं.... संग समुद्र किनारे भ्रमण कर रहे हैं.... हाथ में हाथ लिये प्रेमगीत गा रहे हैं.... एक मनोहर उद्यान में दोनों बेंच पर आराम से बैठे बातें कर रहे हैं...."सभा, तुम्हारे जीवन में और कौन तुम्हारे निकट आया है?...."
"बहुत सारे.... मैं कितने नाम गिनाऊं.....!"
समर गम्भीरता से - "हंसी कर रही हो या सच कह रही हो...?"
"सच्च्च्च्च्च्च्च्च कह रही हूं......"
"पर...जब प्रथम बार गाते ही तुम्हारा मधुर गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था, और तुम्हारा इण्टरव्यू हुआ था...तब तो तुमने कहा था कि न केवल वर्जिन हो अपितु तुम्हारा आजतक कोई ब्वाय्फ्रेण्ड भी नहीं रहा है....?"
"हूं.... आई हैड टोल्ड द ट्रुथ....."
"अर्थात् ????????"
"इसका अर्थ यह है कि मैं वर्जिन हूं...और मेरा किसीसे कोई प्रेम-जैसा कोई सम्बन्ध नहीं रहा है.....मेरी तो बहुत छानबीन कर रहे... अपने सम्बन्ध में भी तो बताओ...तुम कितने अच्छे हो.....?"
"मेरा सम्बन्ध केवल एक से ही बना है....इसी मार्च ....और अब मैं उससे विवाह करने वाला हूं....."
"अच्छा....अर्थात् तुम्हारे भी जीवन में इससे पूर्व कोई नहीं आयी....पर...तुम मुझसे मार्च में कब मिले हो...??"
"बता दूं!!!!!!.."
"हां बताओ...."
"पर मुझे भय है कहीं तुम मुझे छोड न दो...."
"तुम्हें तो मैं कभी नहीं छोडूंगी...."
"छोडो...कोई और बातें करते हैं...."
"नहीं.....अब तो तुम्हें बताना ही होगा.... बताओ.....हां बताओ....“
उसके बार-बार आग्रह पर समर को बताना ही पडा - "मैं आज जिस भी ऊंचाई पर पहुंचा हूं वह सब तुम्हारी सहायता से ही सम्भव हो पाया....."
"मैंने कब तुम्हारी सहायता की??"
"तुम्हारे एक लाख रुपयों से ही मैं मौडल बनने योग्य अच्छी स्थिति में आ सका...."
"कौन-से एक लाख रुपये..????"
"जो तुम्हारे पर्स से लुप्त हुए थे...."
"क्या !!!!!!!!"
"उसके लिये मुझे क्षमा कर दो....."
सभा को इतना क्रोध आ रहा था कि वह उसे एक थप्पड तो अवश्य मारे पर उस गार्डेन से वह चुपचाप उठकर एकाकिनी चली गयी.....समर उदास कुछ समय उपवन में इधर-उधर टहलता हुआ पुनः राज म्यूजिक पहुंचा... वहां अन्तः प्रवेश करते समय राज को बाहर निकल जाते देखा.... उसने राज को ’गुड नून’ कहा, पर राज अनसुना कर निकल गया....समर बोध गया कि सभा ने राज को बता दिया है.... तब भी चिन्ता की कोई बात नहीं....राज उसे नहीं छोडने वाला.....वह इधर-उधर निरीक्षण करता कम्प्यूटर रूम में गया और सुनील की कम्पनी से प्राप्त फाइल्स का निरीक्षण करने लगा.....लम्बे अन्वेष पश्चात् एक फोल्डर के अन्दर के अन्दर के अन्दर कुछ वीडियो फाइल्स दिखीं..... ये.... ये तो पोर्नोग्रैफी है..... हूं... वाह... क्या फाष्ट फकिंग है......ऊंह... बट इण्डियन ष्टाइल है.... फकर तो कोई इण्डियन ही जान पडता है..... फेस छुपा रखा है.... लगता है कभी मैंने इसे कहीं देखा है..... इसका फेस सुनील के फोटो से मिलता-जुलता है.... और ये तो साधारण स्तर की गायिका राधिका है.....!... तो इससे यह स्पष्ट होता है कि राधिका को गायन क्षेत्र में सफल बनाने का आश्वासन दे सुनील से उसकी फकिंग की... और चुपके-से उसकी ब्लू फिल्म भी बना ली.... यह वीड
भगवान्...मैं अब औनेष्ट्ली ही धन एकत्र करूंगा....सभा चाहे मुझे मिले अथवा निकल जाये हाथ से....’
१५ उधर दोनों भागे-भागे रेल्वे ष्टेशन पहुंचे....पर तबतक कितनी ही रेलगाडियां दोनों ही दिशाओं में निकल जा चुकी थीं.....अर्थात्....अर्थात् वह चोर गया हाथ से....अब क्या करें!!! इस्पेक्टर की कडी चेतावनी थी कि यदि वे उस चोर को पकडे विना लौटे तो उन्हें सस्पेण्ड कर दिया जायेगा...उन्हें आकाश घूमता दिख रहा था....कुछ समय वे सर थामे भूमि पर बैठे... तत्पश्चात् उठे और उन्हीं पदचिह्नों का अनुसरण करते प्रत्यागमन करने लगे....ऐसा बोले तो वे रिटर्न होने लगे....क्या जाने मार्ग में कोई उनका अभिज्ञान बताने वाला मिल जाये... पीछे लौटते-लौटते उन चिह्नों से मेल खाते एक युग्म जूते-चिह्न और मिले....समान आकार था...उनके पीछे चलते-चलते वे एक बस-ष्टैण्ड पहुंचे जहां एक साधारण-सा व्यक्ति हाथ में बैग लिये बस की प्रतीक्षा कर रहा था..... एक पुलिस्वाले ने द्वितीय की आंखों में देखा - "क्या बोलता तू ?"
"क्या मैं बोलूं ?...." दोनों ने ही आंखों ही आंखों में बातें कीं... "तो चलो.."
"हां चलो....."
"ए...."
"मुझे बस पकडनी है...."
"कहां जाने के चक्कर में है?"
"मुझे अपने पैतृक आवास जौनपुर जाना है...."
"अच्छा...माल जौनपुर ले जाकर रखेगा....!चल, माल यहां रख दे और फूट ले....हम कह देंगे अपराधी माल छोडकर भाग गया...."
"माल...! कैसा माल..?"
"अरे...यह शौप के अन्दर गया कब...? ये तो बाहर ही अभी ताले खोलने में लगा था..."
"हूं....तब तो इसे पकडना ही होगा...चोर....अन्ततः पकडा गया न तू......."
"चोर....कौन चोर ???????????"
"चुप्प स्साले.... गार्ड को अचेत कर ज्वेलरी शौप लूटने चला था!!!! अब चल थाने...." दोनों उसे पकड लेते हैं......
"छोड दे...तू लोग पुलिस्वाला है या कोई गुण्डा बदमाश है?????? चल हट...."
"अरे....तू हमें छाती दिखा रहा है?? तेरा ये दुःसाहस कि तू मुझसे आंखें दिखा बात करे....अरे...इसके विरुद्ध आरोप लिखो......इसने हमें गालियां दीं....पुलिस्वालों पर हाथ उठाया....पिस्तौल छीनने का प्रयास किया....और यह एक देशी पिस्तौल, जो कि हम कल एक भागते अपराधी के हाथ से गिर जाने पर उठा लिये थे, इसके पौकिट में डाल देते हैं कि साला इसके पौकिट से एक देशी पिस्तौल निकला.... "
वह चिल्लाना चाहता है पर वे दोनों उसका मुंह पकड लेते हैं और देख रहे हैं कि कोई आटो इधर आये... एक औटो आया तो उसमें उसे पकड बिठा चल देते हैं....थाने पहुंच उसे अन्दर बन्द कर देते हैं....वह कितना भी अपनी निर्दोषता बताये कोई उसकी सुनता नहीं....पुलिस अधिकारी समर के जूते के समान ही जूता उसे पहना देख दोनों पुलिस्वालों की पीठ थपथपाते हैं....वह व्यक्ति मोबाइल से परिवारवालों को बताता है....उस समय परिवार में केवल महिलायें थीं...वे दो-तीन और महिलाओं को संग ले आ उसे निर्दोष बता छोड देने का बार-बार आग्रह करती हैं....इसपर सभी पुलिस्वाले उनपर क्रुद्ध हो लाठी चार्ज का आदेश देते हैं....लाठियां चलने पर वे स्त्रियां वहां से भाग खडी होती हैं....एक प्रेस-रिपोर्टर इनका फोटो खींचता है...समाचारपत्र में प्रकाशित भी होता है....पर इन पुलिस्वालों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होती....
दृश्य - वह व्यक्ति थाने में अन्दर बन्द -"भाग्य फूटा मेरा...देखो मैं कहां आ गया......!"
वे दोनों पुलिस्वाले - ष्टाइल में - "भाग्य निखरा हमारा...देखो हमदोनों न्यूज में छा गया....!"
१६ समर अपनी फिल्म की शूटिंग के क्रम में व्यस्त है....तभी राज निर्माता से मिलने वहां आता है....राज सारी आपबीती निर्माता को सुना रहा है.....संयोग से कुछ बातें समर भी सुन जाता है..... वह राज से इस सम्बन्ध में बात करता है.....यह जानकर कि सभा उसी की म्यूजिक कम्पनी के लिये गाती है, समर राज में विशेष रुचि लेता है, क्योंकि सहायता के नाम पर उसे सभा से निकटता प्राप्त होने का सुनहरा अवसर दिख रहा है.....
"मिष्टर राज.....मुझे आपके ऊपर आ रहे संकटों के सम्बन्ध में कुछ जानकारी यहां बैठे सुनते मिली....रियलि आइ सिम्पैथाइज विथ यू....नौट ओन्लि सिमपैथि बट आइ विश टू हेल्प यू आल्सो....बताइये मैं आपकी किस प्रकार से सहायता कर सकता हूं...?"
"आप सारी बात समझ रहे हैं....आप स्वयम् विचार करें...."
"वैसे आपने मुझे अभिजाना?.....मैं आपसे कुछ दिनों पूर्व द्वीप पर मिला था....मेरे बोट की छींटें आपलोगों पर पडी थीं..."
"हं....मौडल!!!"
"पर अब मैं केवल मौडल नहीं हूं......इस फिल्म में छोटा-सा ही, पर अच्छा रोल मिला है...."
"नाइस...बी ग्रोइंग आल्वेज....."
"और यही कामना मेरी आपके लिये भी है....अभी मैं फ्री हूं....आपको यदि स्वीकार हो तो मैं चलुं आपकी कम्पनी आपके संग..."
"हां, अवश्य..." राज ने सोचा क्या जाने इससे कुछ अच्छी सहायता मिल ही जाये...पर वो क्या जाने समर सभा के चक्कर में जाने को उत्सुक था वहां....राज अपनी कार में उसे ले जाता है.....सभा आज वहां नहीं आयी है....तब भी समर अपनी पकड बनाने के लिये इधर-उधर घूमकर निरीक्षण करता रहा कि चोर कैसे आया होगा...क्या हथकण्डे अपनाये होंगे उसने...सभा के प्रेम में उसे सच में रुचि आने लगी इन बातों में....उसपर निज प्रभाव छाने के विशेष उद्देश्य से उसने सारी छानबीन आरम्भ की...कोई दुश्मन तो नहीं...कभी किसी के संग.....सभा जी के पीछे तो कोई नहीं पडा...इतनी अच्छी गायिका जो हैं....!"
"हां...सभा की नियुक्ति प्रथम सुनील म्यूजिक में हुई थी...पर मैंने रातों-रात उसे यहां राज म्यूजिक के लिये गाने को मना लिया जिसपर सुनील बहुत क्रुद्ध हुआ था....इस बात पर तो मैंने अभी पर्यन्त ध्यान नहीं दिया था....सुनील भी हमारा दुश्मन हो सकता है..."
"हूं....पर यह कन्फर्म तो करना होगा कि दुश्मन वही है इन सभी चोरियों के पीछे......”
"वो कैसे..?"
"मैं बताता हूं..."
"एक नये गाने की रिकार्डिंग की जाये...अपने मोबाइल्स और इण्टरनेट आदि पूर्व की भांति स्विच्ड औफ रखें....रात को पूर्व की भांति ही सबकुछ यहां छोड जायें, पर एक अन्तर होगा... वह यह है कि कक्ष में डिम लाइट में भी वीडियो रिकार्डिंग चल रही होगी....तब देखते हैं हमें क्या सफलता मिलती है...."
राज को यह परामर्श बहुत रुचिकर लगा....उसने समर की बहुत प्रशंसा की...अगले दिन एक नये गाने को साधारण संगीत दिया गया पर बताया गया कि मोष्ट हिट सौंग यह है.....रात को वाच्मैन भी असावधान ऊंघता रहा.....पर प्रातःकाल राज पहुंचा और उसने रिकार्डिंग रीप्ले की जिसमें चोर पकडा गया था...पर यह था कौन !....कोई उसे अभिजान न सका....इस घटना से दो बातें हुईं....एक तो चोर का अभिज्ञान न हो सका...द्वितीय, सुनील इस साधारण गाने को सुन सम्भवतः सावधान हो गया था...क्योंकि पुनः ऐसे ट्रिक अपनाये गये पर कोई नहीं आया....राज पुलिस इंस्पेक्टर से मिल सीक्रेट्ली इस वीडियो रिकार्डिंग की एक कौपी उसे सौंप देता है कि यदि वे लोग उस चोर को कभी आइडेण्टिफाइ कर पायें...
१७ एक दिन संयोग से समर और सभा दोनों राज म्यूजिक में एक स्थान पर मिल जाते हैं....सभा उसे देख आंखें फाड अप्रसन्नता से कुछ कहना ही चाहती है कि तभी राज वहां आ सभा को बताता है - "ये मिष्टर समर....मौडल टर्ण्ड ऐक्टर....आजकल मेरी बहुत सहायता कर रहे हैं....आइ रियलि एम वेरी ग्रेट्फुल टू हिम...."
राज समर संग बातें कर रहा है...."समर, तुम्हारे बताये ट्रिक्स से मैं आजकल आराम की नीन्द सो पा रहा हूं....मोबाइल आदि औफ...कुछ भी रिकार्डिंग यहां न रख संग अपने आवास लेता जाता हू...वहां भी रात-दिन वीडियो रिकार्डिंग सीसीटीवी से चलती रहती है....मैं तुम्हें क्या प्रतिदान में दूं...?"
"आप दे सकते हैं कुछ मुझे...ऐसी ही सहायता...."
"सहायता!!! किस काम में...?"
"मैं सभा से विवाह करना चाहता हूं...."
सुनते ही प्रथम तो राज के मन में कुछ क्रोध-सा उभरा...पर तत्पश्चात् समर को ध्यान से परखते समझते बोला - "पर वो तुमसे क्यों विवाह करेगी!! निःसन्देह वह स्वयम् से अधिक प्रगत पति का चयन करेगी....."
"मैं भी तो प्रगति कर रहा ही हूं...कुछ नहीं से मौडल....मौडल से फिल्म अभिनेता....और अब आप यदि मेरी सहायता करें तो मैं हीरो भी बन जा सकता हूं....."
"हां....हीरो बन जाओ यदि तो तुम दोनों का पेयर अच्छा लग सकता है....पर तुम तो हीरो हो नहीं...."
"इसीलिये तो कह रहा हूं आप सहायता करें मेरी हीरो बनने में..."
"अभी ये रोल तो दिखाओ....कैसा कर रहे हो...."
१८ समर मन लगाकर अच्छा से अच्छा अभिनय करने का प्रयास कर रहा है....वह अब अधिक स्मार्ट भी लगने लग गया है....सभा उससे कम्पनी में कभी-कभी बात कर लेती है....समर उसके प्रेम में गीत गा रहा है....उसने निज टेबल पर एक फोटो अल्बम रखा है जिसमें मध्य में एक बडा गोल छेद है...उस रिक्त गोले से कुछ आगे बढकर उस गोले के आकार का ही फोटो किनारे से लगा है...वहां सभा का फोटो लगा है....गाते-गाते आंखें मूंदे वह सभा के चित्र को चूमता है....पर तभी एक छोटी बिल्ली वहां आ उस गोले में सर डाल देती है जिससे वह चित्र तो बिल्ली के सर के ऊपर चला जाता है और समर उस बिल्ली के ओष्ठों को चूमता है...-"आः...ऐसा लगता है सच में सभा को चूम लिया...गीला मांसल ओष्ठ...." वह आंखें खोलता है तो समक्ष बिल्ली का सर...बिल्ली की ’म्याऊं...’ समर उछल भागता है....
१९ समर के उस फिल्म में अभिनय को देख सभा भी उसकी अच्छी प्रशंसा करती है -"प्रशंसनीय अभिनय किया है तुमने....पर इस छोटे-से रोल से तुम्हारा हीरो की ऊंचाई को पा पाना बहुत दूर की यात्रा जान पडती है......हाउएवर...मेरे संग फ्रेण्ड्ली रिलेशन के योग्य तो तुम बन गये हो.... आओ, तुम्हें मैं अपने कार में तुम्हारे आवास ड्रौप कर दूं...." समर अभी भी अपनी कार न ले औटो/टैक्सी और लोकल ट्रेन-यद्यपि फर्ष्ट क्लास में ही यात्रा करता है.... सम्भवतः अभी भी स्वयम् को बहुत नीचे ही अनुभव कर रहा है....मार्ग में जाते समय एक बिल्डिंग से एक व्यक्ति निकल बाहर आता दिखता है जिसे देख समर चौंकता है.....-"सभा जी....ये वही व्यक्ति नहीं है जो हमारी उस दिन की वीडियो रिकार्डिंग में है...?" सभा उसे ध्यान से देख नहीं पाती है और वह व्यक्ति कार में घुस चला जाता है....समर सोचता ही रह जाता है और वह उस कार का नम्बर नोट करना भी भूल गया...." आप अभी जाइये...मैं कुछ देखता हूं यदि यहां से कोई जानकारी मिल पाये...." वह उतर उस बिल्डिंग में जाता है.....नामप
....पांच मिनट आराम की सांस लेने के पश्चात् वह बोला- "डार्लिंग....प्रेरित की क्या रिपोर्ट है?....."
"आपने जैसा कहा, उसने वैसा ही किया है.....शुभम् कम्पनी के औफिस में रात को कीमेकर को संग ले जा उसने डुप्लीकेट चाभी बनवा वहां के सारे महत्त्वपूर्ण डाक्युमेण्ट्स स्कैन कर लिये, और सीडीज कौपी कर ली....तत्पश्चात् सबकुछ यथावत् रखा हुआ छोड बाहर ताला लगा ऐसे लौट आये जैसे वहां कोई घुसा ही नहीं था....और शोभन की भी सूचना....नेहा के गर्भवती हो होनेवाले बच्चे के डीएनए टेष्ट के द्वारा पिता ज्ञात हो जाने पर विवाह का क्लेम की बात पर कल रात भेजे गये दो व्यक्तियों ने उसके कक्ष में घुस उसे इतनी फाष्ट फकिंग दी उसका होनेवाला बच्चा गर्भ में ही मर गया....इस प्रकार इस समस्या का समाधान हो गया..... पर एक सूचना अच्छी नहीं है...."
"क्या हुआ....?"
"आपने राज को किसी को परेशान करने को कहा था.....राज इसपर बोला -”अब बौस बौस नहीं रह गये, गैंग्लीडर हो गये हैं.....अपने ऐम्प्लौयिज से क्या नहीं करवा लें.......जो न करें उनके लिये एक ही धमकी है - ’जौब से निकाल दूंगा’.....और ऐम्पलौयिज भी अब कुर्सी से चिपके ही रहना चाहते हैं....बौस के आदेश पर चोरी, धमकी, बलात्कार, हत्या आदि चाहे जो भी अनुचित करना पडे वे करने को उद्यत हैं....फीमेल्स भी कुर्सी नहीं छोडना चाहती, भले ही इसके लिये अपना तन एक बार अनेक बार एक व्यक्ति को अनेक व्यक्ति को सौंपना पडे.....भारत में अधिकतर छोटी ही कम्पनियां, औफिसेज, शौप्स आदि हैं जहां एम्प्लायर्स फीमेल ष्टाफ की मार दनादन करते हैं.......पर भारत में कुछ प्रतिशत में बडी कम्पनियां, औफिसेज, मौल्स आदि शौप्स आदि भी हैं जहां एम्प्लायर्स और सीनियर्स दोनों फीमेल ष्टाफ्स की मार दनादन फकिंग करते हैं....क्या दशा हो जाती होगी स्त्री के मुख और पूरे शरीर की....!.. कुछ एम्प्लायर्स ने अभी ऐसा करना आरम्भ नहीं किया होगा....पर जिस तीव्र गति से और निर्भयता से यह बढता जा रहा है उससे प्रेरणा ले वे भी शीघ्र या विलम्ब गड्ढों में कूद ही पडेंगे.... बहती गंगा में हाथ धोना सबको अच्छा लगता है....जान पडता है कि फीमेल्स को कहीं काम करने भेजना अब उनको वेश्या बना देने जैसा हो गया है ’..."
"हूं....देखता हूं.....इसे यहीं सोने दो...तुम चलो अन्दर....प्रातः चार-पांच बजे अब जाना...." दोनों अन्दर चले जाते हैं....समर यह देख वह भी प्रातः चार बजे तक सोने का विचार कर सिकुडा सोया रहता है....प्रातः काल उसकी नीन्द उस डार्लिंग के स्वर से टूटती है....वह अपनी पुत्री को तुरत आने को कह द्वार बाहर निकल जाती है...पुत्री अंगडायी ले उठने का प्रयास कर रही है...अवसर देख समर वहां से निकल जाता है...वह गेट की ओर झांककर देखता है तो वहां एक पुलिस्वाला कभी आंखें खोलता तो कभी इधर-उधर घूरता दिखता है...जबकि वाच्मैन झुकता-झुकता सो रहा है....समर ने मन में सोचा कि एक पुलिस्वाला इधर है तो द्वितीय पीछे के साइड होगा...वह पीछे की ओर जा देखता है तो वहां वह द्वितीय घूमता दिखता है....वह बहुत सावधान नहीं जान पडा....समर ने सावधानी से उसे दीवार की विपरीत दिशा में निहारता देख दीवार फान्द विना ध्वनि किये तीव्र गति से चलना आरम्भ किया....कुछ मिनटों पश्चात् पुलिस्वाले ने पुनः दीवार से लगे-लगे चारों ओर देखता चलना आरम्भ किया...अभी कुछ उजाला होता जा रहा था....सहसा उसके टार्च की किरण समर के जूते के चिह्नों पर पडी....वह चिल्लाया...तुरत उसने सीटी बजायी....उसका सहकर्मी दौडा आया....उसने भी वह देख तुरत उन चिह्नों के पीछे दौड लगायी....समर वहां से भागता-भागता नाले-खेत-रोड सब पार करता एक प्रातःकालीन विद्यालय को पहुंचा....गेट से अन्दर घुस एक कक्षा में किसी शिक्षक को न देख उसमें घुस गया...
"सर...आप हमलोगों को क्या पढायेंगे? सर, बताइये न...."
समर चुप रहा।
द्वितीय, तृतीय छात्र ने भी ऐसे ही प्रश्न दुहराया...
समर को तब भी चुप देख एक छात्र ने पूछा- "सर, हमलोग इतने समय से पूछ रहे कि आप क्या पढायेंगे, आप बताते क्यों नहीं?"
"तुमलोग ही तो कह रहे हो कि बताइये न अर्थात् मैं न बताऊं....तब मैं क्यों बताऊं ?..."
"पर सभी लोग तो ऐसे ही बात करते हैं - आइये न, खाइये न...जाइये न...."
"जो-जो ऐसे बोला करते हैं वे सभी उल्लु हैं....."
"पर मेरे मां-पिता श्री भी ऐसे ही बातें किया करते हैं, तो क्या वे भी उल्लु हैं?????”
"अं....!!!...." समर ने आंखें फाडीं....
"मेरा जन्म दो उल्लुओं से हुआ है....अंऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ" वह गला फाड चिल्लाया....सारी कक्षा हंसने लगी.....
"चुप....तुम हंसी कर रहे हो मेरे संग!!!!!!"
इतने में एक शिक्षक आ बाहर खडा हुआ....
"सर...अभी जो हमारा विषय है उसके शिक्षक आ गये हैं...."
समर उस शिक्षक की ओर मुस्कुरा देखता बाहर निकल जाता है....वह इधर-उधर टहल एक बेंच पर बैठ जाता है....उधर पुलिस्वाले विचार करते हैं कि यहां से यदि भीड बाहर निकलने लगी तो किसी का भी जूता-चिह्न अभिजाना नहीं जा पायेगा...अतः एक अन्दर जा पदचिह्नों का अनुसरण करे....एक पुलिस्वाला अन्दर घुसता है....तुरत ही उसे उस जूते के चिह्न मिलने लग जाते हैं....वह द्वितीय को भी दिखलाता है....दोनों ही पीछा करते जाते हैं....चिह्न उसी कक्षा की ओर जा रही है....पर समर यह बात देख लेता है....और अभी दोनों पुलिस्वाले उस कक्षा से बहुत दूर हैं तभी समर कक्षा की ओर जाते चिह्नों को मिटा वहां से वह बढता विद्यालय के पिछवाडे में दीवार फान्द बाहर भाग निकलता है....वह जानता है शीघ्र ही दोनों उसके पीछे इधर भी आयेंगे पर इस बात का सन्तोष है कि वे कक्षा में जायेंगे...क्योंकि वहां जानेपर छात्र उसकी रूपरेखा बता दे सकते थे...कभी अभिजान भी ले सकते थे....आगे बढते वह एक चाल-जैसे क्षेत्र में घुस जाता है....एक स्त्री चश्मा पहने एक खाट पर बैठी है...उसके समक्ष एक समाचारपत्र रखा है.....जब समर वहां से गुजरता है तो वह उसे स्वर देती है..."एऽऽऽऽ..सुन इधर.... पढना-लिखना आता है तुझे????" समर हां कहता है... "तो चल, यह समाचारपत्र पढ सुना....."
"आज वर्षा अच्छी होने की सम्भावना है....चुनाव प्रत्याशियों ने निज सम्पत्तियों की घोषणा की....केरल के बाढ-पीडितों की सहायता के लिये पूरे देश में चन्दे एकत्र किये जा रहे हैं...."
"अरे मुझे अच्छे-से दिखता नहीं..पर मैंने टीवी पर इतना देखा कि वे बाढ-पीडित अब भी वैसे ही कठिनाइयों में जी रहे हैं....चन्दा एकत्र करो.....कोक-पेप्सी पीओ, व्यंजन पर व्यंजन खाओ...आराम की यात्रा करो....कितने परिश्रम से इतना एकत्र किया....तो इसका उपभोग क्या बाढ-पीडित लोग करेंगे? नहीं...ये एकत्र करनेवाले ही करेंगे...और वस्त्र जो पीडितों के नाम एकत्र किये गये उन्हें थोक में बेच दो....उन्हें सी-सिला पुनः विक्रय-योग्य बना बेच दिया जायेगा...."
वह स्त्री जबतक बोलना बन्द करे तबतक समर वहां से खिसक चुका था....कुछ समय पश्चात् दोनों पुलिस्वाले आ उस स्त्री से पूछे पर वह समर के सम्बन्ध में कुछ बता नहीं पायी....समर उस क्षेत्र से निकल एक स्थान में घुसा...देखा तीन-चार खिडकियों पर लोगों की पंक्तियां लगी हैं....
"ये यहां पर लाइन क्यों लगी है?...."
"टिकट, टिकट....कहां जाने का??"
"लोकल ट्रेन का भी?.."
"और क्या....कहीं और जाने का तो अगले ष्टेशन पर जाओ...."
समर ने विना विलम्ब किये अपने आवास लौटने को एक दिन का औलरूट पास लिया और विना विलम्ब किये उससे विपरीत दिशा में जा रही एक ट्रेन में बैठ अगले ष्टेशन पर उतर पुनः निज आवास की दिशा में जा रहे ट्रेन में बैठ निज आवास पहुंच गया....विस्तर पर लेट उसने आराम की सांस ली....उसे विश्वास थी कि पुलिस उसे अब कभी पकड नहीं पायेगी.....कुछ समय आराम करने के पश्चात् वह उठा और टीवी खोला...टीवी पर समाचार आ रहे थे....पर यह क्या!!! प्रमुख समाचारों में उस ज्वेलरी शौप में लूट के प्रयास की घटना दिखायी जा रही थी....उसके जूते के चलने के चिह्न भी दिखाये गये.....समर को अपनी सांसें रुकती-सी जान पडीं....उसने विना विलम्ब किये दोनों जूतों को तेज धार से काटना आरम्भ किया....तत्पश्चात् उन्हें एक पौलिथीन में पैक कर अपने बैग में रख बाहर निकला....कुछ दूर जानेपर एक बहता खुला नाला दिखा....उसने इधर देखा और उधर देखा और उसमें वह पौलिथिन खोल सभी टुकडे एक संग डाल दिये....टुकडे अलग-अलग बहते-डूबते नाले में खो गये....पुनः आवास आ आराम से लेटा...अब वह स्वयम् को कुछ निश्चिन्त अनुभूत कर रहा था....-’यह जौन की दी बुद्धि थी जो मैंने धनवान् बनने को ऐसा उपाय विचारा....जीवन मेरा डूबते-डूबते बचा....भगवा
सडक पर आते-जाते वाहनों और व्यक्तियों की दृष्टि में कभी-कभी आ जा सकती है.....अल्प ही आवागमन हो रहा है....कोई उधर ध्यान भी नहीं दे रहा कि उस घुप्प अन्धेरे में क्या हो रहा है..... ऐसे में समर बहुत सरलता से सफल हो सकता है....पर...ये कौन-सा वाहन आ रहा है....ये तो पैट्रोलिंग पुलिस की जिप्सी है....चारों ओर आंखें फाड निरीक्षण करते गुजरते हैं....उनमें एक की दृष्टि समर की ओर पड ही जाती है कि वहां अन्धेरे में कोई किरण निकली-छुप गयी सी दिखी है...वह जीप रुकवाता है....उसके हाथ में बडा टार्च है पर वह विना टार्च जलाये ही वहां की बात जानना चाहता धीमे-धीमे पगों से आगे बढता है....इधर समर जीप रुकते ही तुरत सभी उपकरण वहीं छोड वहां से आगे की ओर सरकने लगता है....अन्धेरे में पुलिस्वाला उसे देख नहीं पाता है....पुलिस्वाला शटर को पहुंच कुछ भी समझ न आने पर टार्च जलाता है....देखता है ताले खोलने के उपकरण पडे हैं.....वहां से किसीके जूते के चिह्न भी आगे बढते दिख रहे हैं....चिह्नों का अनुसरण करता वह कुछ आगे बढता है तो छोटी दीवार के पीछे गार्ड अचेत पडा मिलता है....ओ......वह मुंह खोलता है और टार्च की लाइट जूते के चिह्नों पर आगे बढाता जाता है.....फोकस दूर जाते समर पर पडती है....दूर स्थित समर अभिजाना तो नहीं जाता है पर वह तुरत वहांसे भागना आरम्भ करता है जबकि जिप्सी से दो पुलिस्वाले उसके पदचिह्नों...नहीं... जूते चिह्नों को देखते उसका पीछा करने दौड पडते हैं....वायरलेस पर इन दोनों पुलिस्वालॊं को सन्देश मिलता है कि ’उस व्यक्ति ने गार्ड को अचेत कर ज्वेलरी शौप लूटने का प्रयास किया है....चाहे जैसे भी हो उसे पकड कर ही लौटना....यदि रिक्त हाथ लौट आये...तो तुम दोनों....’ यह सुन दोनों घबडा गये....एक समर के पदचिह्नों के पीछे दौड लगा रहा था तो द्वितीय ने कुछ रुककर उन जूते-चिह्नों की अपने मोबाइल से कुछ रिकार्डिंग भी कर ली....पुनः उसने तीव्रगत्या दौड लगायी और वह निज सहकर्मी के संग हो लिया...समर भागता-भागता एक अपार्ट्मेण्ट की दीवार फान्द अन्दर घुस गया....वह वाचमैन की दृष्टि से बचता सीढियों से ऊपर चढने लगा....इधर ये दोनों अपार्ट्मेण्ट की दीवार के समीप से जूते-चिह्नों को अदृश्य पाते हैं....वे तुरत वाचमैन से कहते हैं कि अन्दर एक चोर घुसा है...
"कब घुसा?..."
"अभी...कठिनाइ से दो-चार-पांच मिनट हुए होंगे..."
"मैं बडी सावधानी से...सचेत इधर चारों ओर देख रहा हूं....अभी आधे घण्टे से न तो कोई यहां आया है, न ही कोई बाहर निकला है..."
"पर जूते के चिह्न यहीं आकर अन्त हो रहे हैं....वो सामने दीवार से चोर अन्दर कूदा है...."
"और मैं क्या उस समय कहीं बाहर गया था...या सो रहा था जो उसे नहीं देखा?.. मेरी क्या यहां से छुट्टी करवाना चाहते?...”
"देख वाच्मैन...मुझसे बहस न कर....इस अपार्ट्मेण्ट की चार दीवारों से इन दो दीवारों को मैं देख रहा हूं....ये मेरा सहकर्मी तुम उस साइड की दोनों दीवारों पर दृष्टि रखो....और तुम वाच्मैन....अन्दर प्रत्येक फ्लैट में बारी-बारी से जा सर्च करो, कोई चोर कहीं घुसा मिल ही जायेगा...यदि बाहर निकल भागता नहीं है तो....चलो....जाओ......" दोनों वैसा ही करते हैं.... उधर समर ऊपर चढता एक फ्लैट के द्वार को हाथ लगाता है तो वह खुल जाता है....वह चुपके से अन्दर घुसता है....समीप उस फ्लैट की पानी की टंकी दिखती है....वह वहां चढ उसके पीछे छिप जाता है....चुप सिकुडा लेटा है...धीरे-धीरे उसे नीन्द आने लग जाती है.....वह जानता है कोई वहां तो किसी काम से, वह भी रात में तो आयेगा नहीं....कुछ समय पश्चात् सहसा खट-खट-खट सुनायी देती है जिससे उसकी नीन्द खुल जाती है....वह चुपके से देखता है....समक्ष हौल है....अन्दर वाले कक्ष से एक अधेड निकलता है - "अरे डार्लिंग...तुम्हारे लिये तो मैं द्वार खुला ही रखता हूं....इतनी खटखट....आज तुम..." द्वार खोलता है तो समक्ष वाच्मैन को पाता है....
"सर....अन्दर कोई चोर तो नहीं आया है ?...."
"क्यों! आज चोरों की मीटिंग है क्या...?"
"नहीं, दो पुलिस्वाले आये हुए हैं....कहते हैं इस अपार्ट्मेण्ट में एक चोर घुसा है....मुझे सभी फ्लैटों में अन्वेषने भेजा है..."
"हूं....मेरी जानकारी में तो नहीं है...तुम सर्च करो...क्या जाने कहीं से निकल जाये...."
"सर...आप यहीं द्वार पर रहिये...मैं सभी कक्षों में अन्वेषता हूं..."
"ऐं....बहुत चतुर समझता अपने को?....अन्दर नोटों के बण्डल खुले पडे हैं....एटीएम, क्रेडिट कार्ड्स रखे पडे हैं....वे सब मैं तुझे सौंप दूं और यहां द्वार पर खडा-खडा मैं भिखारी बन जाऊं!!!! ये मैंने सिटकिनी अन्दर से लगा दी...अब चल मेरे संग....देखता हूं....चोर पूर्व आया था या अभी आया है...." दोनों संग में अन्दर सभी स्थानों पर अन्वेषते हैं....तत्पशचात् निकल द्वार के समीप पहुंचते हैं..."ये देख सिटकिनी अभी भी लगी हुई है....यदि कोई चोर अन्दर आया रहा होता तो सिटकिनी खोल अभी तक भाग गया होता...क्या बोलता तू...?"
"क्या मैं बोलूं!!!"
"चल, अदृश्य हो जा मेरी आंखों से..." ऐसा कह वह द्वार खोल पुनः सिटकिनी चढा देता है....’ये...डार्लिंग को आ जाना चाहिये था...अभी तक आयी क्यों नहीं...!’ वह वहां खडा सोच रहा था जिसके ऊपर पानी टंकी के पीछे छिपा समर यह सब देख-सुन रहा था....तभी उस व्यक्ति को द्वार कुछ हिलता-सा जान पडा....यह देख वह घबडाया-’कहीं चोर तो नहीं द्वार खोलने का प्रयास कर रहा है....पर मेरा साहस भी किसीसे न्यून नहीं....अन्य स्थानों पर फियर्लेस्ली की जा रही ऐसी बातों की सूचना से प्रेरणा पा मैंने एक ही दिन औफिस में सभी के संग मार दनादन किया...इतना साहस कितनों के संग है!!! अभी देखता हूं इस चोर के बच्चे को....’ ऐसा विचार वह अन्दर गया और पिस्तौल ले आया....धीमे से सिटकिनी खोल द्वार के पीछे छुपा....दो पैर अन्दर घुसते देखा उसने...उसने उसके सर पर पिस्तौल सटाया और बोला -"हैण्ड्स अप...." वह एक स्त्री थी....वह चिल्लायी.... "अरे...डार्लिंग तुम....." उसने फटाक से द्वार बन्द किया और उसे बांहों में ले उस हौल में सोफा पर बैठ गया...."इतना विलम्ब कैसे हुआ!....."
"बेटी को मना रही थी...वह आने को तैयार नहीं हो रही थी...”
"अब मान तो गयी हां...कहां है वो?"
"द्वार पर ही खडी होगी..."
वह व्यक्ति द्वार खोल एक १५ - १६ वर्ष की लडकी के कन्धे पर हाथ रख कहता है - "आजा बेटी, अन्दर आ जाओ...."
"बेटी??????" वह क्रोध दिखलाती है....अन्दर आ मां के संग बैठ जाती है....
"अरे...यहां कहां...अन्दर चलो...." उसे उठा ले जाने लगता है...पीछे से मां बेटी को संकेत करती है कि वह आगे वाले कक्ष में जाये... तब जैसे ही वह व्यक्ति उसे उससे पूर्व वाले कक्ष में ले जाना चाहता है, वह उसके अगले कक्ष में ही चलने का आग्रह करती है....हारकर वह उसे उसी कक्ष में ले जाता है....अन्दर घुसते ही वह देखती है विस्तर पर नोटों की कई गड्डियां पडी हैं....
"ये तीन-चार गड्डियां मुझे दे दो...मैं निज जीवन संवारुंगी...."
"ये क्या बोल रही हो तुम...मैंने तो आजतक विना रुपये दिये ही लिया है...."
"लिया होगा....अपनी ऐमप्लौयिइज को....मैं उनमें नहीं....यदि चाहिये तो देने ही होंगे..."
"अच्छा....ये एक ले ही लो तो....."
"एक नहीं, ऐट लीष्ट दो...” वह दृढ स्वर में बोली....
"अं....अच्छा...चलो...तुम निज मन को तृप्त कर लो....मैं भी निज मन को तृप्त किये विना नहीं छोडुंगा...."
कुछ समय पश्चात् दोनों बाहर हौल में निकल आये....लडकी थकी-सी निज ब्लाउज में दोनों गड्डियां डाली हुई सोफे पर लेट सो गयी...वह व्यक्ति भी द्वितीय सोफे पर आराम से प्रसर बैठ गया....<
"हूं...ठीक अभिजाना आपने...."
समर ने हाथ मिलाने के उद्देश्य से हाथ बढाते हुए कहा -"मैं समर....एक उभरता हुआ मौडल हूं....अभी रूपा च्यवनप्राश और गोल्डन अण्डरवियर के लिये माड्लिंग की है जो टीवी पर और सिनेमाहाल में भी आ रहे हैं...." सभा हाथ मिलाये विना मुस्कुराती हुई सिर हिलाती है....राज सबको चलने को कहता है....सभी उद्यत हो जाते हैं...राज समर से हाथ मिला बाई कहता है, और वे सभी वहां से चले जाते हैं....समर उन्हें जाता देख रहा है -’अभी मौडल हूं इसलिये तुमलोगों को वैल्यूएबल नहीं जान पडा....अब मैं तुमलोगों से हीरो बन ही मिलुंगा....’
१२ पिक्निक से लौट सभी अपने-अपने आवास चले जाते हैं पर राज पुनः औफिस लौटता है नये गीतों का पुनर्मूल्यांकन करने....वाचमैन गेट खोलता है.....राज अन्तः प्रवेश कर हौल में प्रवेश करता है कि उसका मोबाइल फोन बजता है....राज -"हलो..."
"मिष्टर राज....बहुत मनोरंजन कर लिया....अब तुम्हारे हंसने नहीं रोने का समय है...."
"कौन बोल रहा है????"
"तुम्हें मिथ्या आनन्द से बचानेवाला...व्यर्थ में समय नष्ट करोगे, उससे भी बचानेवाला....समय रहते तुम्हें वास्तविकता का बोध करानेवाला...."अजित-सम स्वर में बोला...
"व्हाट डू यू मीन.....कहां से बोल रहे हो....ये फोन नम्बर???"
"पीसीओ से बोल रहा हूं.....बूथ वाला भी मेरा मुखडा नहीं देख रहा है....न ही देख पायेगा...."
"कहना क्या चाहते हो...?"
"इन दोनों गीतों के संगीत भी अब तुम्हारे नहीं रहे...."
राज को तीव्र दुःख की अनुभूति हुई, पर तुरत सम्भलकर बोला- "कितने रुपये चाहते हो?...."
"कितना भी नहीं....क्योंकि उन गीतों के संगीत तो मैंने प्रिया म्यूजिक को बेच दिये हैं....वे किन्हीं और गीतों पर वे संगीत सेट कर रिलीज कर देंगे.....हूउउउउउउउउउउउउउउ..."
’ओ....इसका अर्थ हुआ कि मेरा दुश्मन प्रिया म्यूजिक वालों से कोई इतर है...’ "पर...ये तुम्हारे हाथ लगे कैसे????"
"चमत्कार है....वो मैं तुम्हें क्यों बताउं?????"
राज सोचता है कि यदि एक बार भी इस व्यक्ति को इसके नाम के संग बात कर लूं तो इसका स्वर पकड में आ जायेगा...तभी कौल डिस्कनेक्ट हो गया....उसने वाचमैन से पूछा कोई आया था क्या....वाचमैन ने बताया कोई-कोई आया तो था पर बाहर से ही पूछकर चला गया....राज समझ गया कि वाचमैन की दृष्टि से बचकर किसी ने द्वार अन्लौक किया होगा...ओह्...ये ताले उन्नीसवीं शताब्दी के~!!!!!!!
थके मन से राज आवास लौटता है और पत्नी आदि को उसे न जगाने को कह नीन्द की गोली खा सो जाता है.....सभा आदि सारी टीम यह बात जान ऐसा अनुभव करती है मानो मिठाइयों का डब्बा खा अब किसी ने कडवे मिर्च मुंह में डाल दिये हों....
१३ समर के भाग्य ने उसका कुछ और अच्छा संग दिया.....उसे एक फिल्म में एक साधारण पात्र के रूप में ही पर कोई पन्द्रह-बीस मिनट पर्यन्त कहानी में अभिनय का रोल मिल गया था...उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं थी....उसने विचार किया- ’अन्दाज में अक्षय कुमार विवाह करने का प्लान बनाते ही रह जाता है और उधर जिससे वह विवाह करना चाहता है उसका किसी और से विवाह हो जाता है....पर मैं विलम्ब न कर शीघ्र उसके समक्ष अपना प्रेम अभिव्यक्त कर दूं.....कल मैं सभा से बात करता हूं....वैसे, कल क्यों आज ही....आज कब.....अभी..और कब....शुभम् सुशीघ्रम्....’ वह सभा से मिलने उसके आवास पहुंचता है...वहां स्वयम् को सभा से पूर्व-परिचित बताता है और किसी विशेष कार्यवश मिलने की बात कहता है....समर!!! इस नाम का कौन व्यक्ति मेरा बहुत परिचित है!!! ऐसा चिन्तन करती वह अपार्ट्मेण्ट के गेष्ट रूम में आती है....
"हलो...आपने मुझे अभिजाना....मैं समर...आपलोग जब द्वीप पर पिक्निक मनाने आयी थीं तब मेरे बोट से आपलोगों पर छींटें पड गयी थीं...."
"हां....मौडल....."
"तब मैं केवल मौडल था...अब मैं फिल्मों में भी आ गया हूं....ये देखिये कौण्ट्रैक्ट पेपर....आज ही मुझे इतना अच्छा रोल मिला है..."
"हूं...अच्छी बात है...पर....मुझसे सम्पर्क का कारण?"
"आपने अन्दाज फिल्म देखी है ? अक्षय कुमार की.....?"
"देखी होगी...अभी ध्यान नहीं है मुझे इस बात का...."
"उसमें अक्षय कुमार विवाह करने का प्लान बनाते ही रह जाता है और उधर जिससे वह विवाह करना चाहता है उसका किसी और से विवाह हो जाता है....पर मैं विलम्ब न कर शीघ्र अपना प्रेम अभिव्यक्त कर देना चाहता हूं...."
"किससे अभिव्यक्त कर देना चाहते हैं? और उसमें मुझसे क्या सहायता आपको चाहिये...?"
"मैं आपसे ही विवाह करना चाहता हूं....द ग्रेटेष्ट फैन औफ यू....”
"मुझसे?????" उसे कुछ क्रोध आ गया - ’आज न जाने किसका मुंह देख उठी थी....’ "आप हैं कौन? और क्या बायो-डेटा है आपका?..."
समर फटाफट अपना बायो-डेटा निकाल देता है....सभा ध्यान से पढती है...."इतना अच्छा बायो-डेटा है....कहीं सर्विस के लिये क्यों नहीं प्रयास किया....?"
"कहां आजकल गुणवान्विद्वान् लोगों सर्विस मिलती है....सर्विस तो अब जन्म के आधार पर मिलने लग गयी है....इस जाति या सम्प्रदाय में जन्म लिया है तो उसे सर्विस मिल जाती है..इन लोगों को सर्टिफिकेट्स और मार्क्शीट्स भी मनचाहा मिल जाते हैं....और सच में जो विद्वान् है उसे लात मार दिया जाता है - क्लेम करो तो ढूंढ-ढूंढ कर उनमें त्रुटियां दिखायी जायेंगी...."
"मेबी...बट तुमने ऐसी कौन-सी सफलता पा ली कि तुम अपने को मुझसे विवाह के योग्य समझने लग गये....जानते हो...मेरा केयरियर कितना संवरा हुआ है...और मुझे गाने के लिये गीतों की लाइन लगी है....कई फिल्मों से औफर आ रहे हैं - मेरा गायन राज के संगीत के संग......डू यू अण्डर्ष्टैण्ड द रियलिटी...ऐण्ड द डिफ्रेन्स बिट्वीन यू ऐण्ड मी...?"
"हां...पर आप मेरा केयरियर भी तो देखिये...कितना ग्रो कर रहा है...तीव्र गति से.....आपको स्मरण होगा एक बार आपके किसी और्डिनरी फैन ने आपको फोन किया था, तो आपने उसे विना किसी वैल्युएवल पोजीशन में आये बौलिवुड सेलिब्रेटीज को फोन करने से मना किया था.....?"
सभा कुछ स्मरण करने का प्रयास करती कहती है - ”अं...हं...."
"वो फैन मैं ही था....तब मैं कुछ नहीं था....उसके पश्चात् मैं मौडल बना...आपकी कृपा से...और अब फिल्मों में भी आ गया....एक दिन हीरो भी बन जाउंगा...."
"तो तभी तुम मुझे प्रोपोज करने की सोचना....वैसे तुम्हारे लुक्स अच्छे हैं, पर मेरी कामना है कि मेरा पति मुझसे हायर ष्टेटस का हो....."
"हायर ष्टेटस की परिभाषा मैं क्या समझुं?"
"रिचनेस हो...तुम्हारे संग ऐट लीष्ट एक-दो करोड रुपये तो हों ही....तभी तुम्हारा संग करना अपने ष्टैण्डर्ड के अनुकूल जान पडेगा...."
"मैं न्यूनतम इतना धनवान् बनने का प्रयास करता हूं....पर कहीं ऐसा न हो कि आप इस अवधि में किसी और से विवाह कर लें...."
"अभी इस वर्ष तो विवाह नहीं कर रही...अगले वर्ष की बात अगले वर्ष देखी जायेगी.....अभी इस वर्ष भी सात-आठ मास शेष हैं....और तुम....विना इतना रिच बने मुझसे फोन पर भी बात न करना, मिलने की तो बात भूल जाओ...." सभा वहां से चली जाती है.....समर गम्भीरता से उसे जाता देख रहा है.....
१४ समर ने धनवान् बनने का संकल्प लिया, क्योंकि सभा उसके मन और हृदय में समाती चली जा रही थी....उसने जौन का दुःसाहस अपने बल पर करने का विचार किया....उस ज्वेलरी काम्प्लेक्स में सिक्युरिटी बहुत टाइट हो चुकी होगी..या प्रत्येक व्यक्ति सन्देह की दृष्टि से देखे जा रहे होंगे, ऐसी आशंका कर उसने कहीं और कुछ कर डालने को सोचा...रात के आठ बए वह आवश्यक उपकरणों के संग वह बाहर निकला....वह सडक पर आते-जाते ऊंचे-ऊंचे भवनों को देख रहा है...चलते रोड पर के किसी शौप में घुसपैठ करना अच्छा रहेगा....ऐसा सोच वह मुख्य मार्ग के एक बडे ज्वेलरी शौप को लक्ष्य बनाता है.....शौप का शटर गिर चुका है और गार्ड वहीं मंडरा रहा है....वह सावधानी से शटर के ऊपर के जल रहे लाइट को लक्ष्य बनाता है....लाइट चटाक से फूट जाती है....इसके पूर्व कि गार्ड कुछ निश्चय कर पाये, समर उसे पीछे से अनेस्थेटिक सूंघा देता है...शरीर को खींच साथ लगे छोटे दीवार के पीछे छुपा देता है....तत्पश्चात् सावधानी से शनैःशनैः चाभी बनाना आरम्भ करता है....उसके पेन्सिल टार्च की किरण यद्यपि उसके शरीर से छिपी है तथापि समक्ष
"आपको जिस काम के लिये लाखों रुपये मिल रहे हैं उस काम को सुनील आपसे फ्री में नहीं करा सकता है....उस डौक्युमेण्ट को आप फाड डालिये....विशेषकर ऐसी स्थिति में जबकि आपने अभी काम वहां आरम्भ भी नहीं किया है...."
"पर वे यदि कोर्ट गये तो????’
"कोर्ट भी सुनील को आपका शोषण करने की अनुमति नहीं देगा....न ही उसे आपकी गायन क्षेत्र में होनेवाली प्रगति में उसे बाधा डालने की अनुमति देगा....हम लडेंगे आपकी ओर से केस....आप उसकी चिन्ता न करें..."
"तो ठीक है...मैं कब आपसे मिलुं?"
"अभी रिकार्डिंग करनी है...मैं कार भेज रहा हूं आपके ऐड्रेस पर.....आ जाइये..."
"पर इतनी रात मैं बाहर कहीं कैसे जा सकती हूं???"
"ठीक है....आप प्रातः आठ बजे कम्पनी में स्वयम् आ जाइये....वैसे मैं आपको रिमाइण्ड करा दूंगा...."
"ओके....गुड नाइट...."
"गुड नाइट"
अगले दिन समय से सभा वहां पहुंच जाती है...राज उसे रिकार्डिंग रूम में ले जाता है.....उसकी व्वाइस-टेष्टिंग आदि कई प्रक्रियाओं से गुजरना पडता है.....अन्ततः गाने के लिये सर्वथा उपयुक्त मान उसका गायन रिकार्ड होता है...सप्ताह पश्चात् वह फिल्म रिलीज होती है जिसके सभा द्वारा गाये दोनों गीत हिट सिद्ध होते हैं.....उसे बहुत प्रशंसा मिलती है....इसी मध्य सुनील का फोन आता है -"सभा जी, आपने हमारे संग कौण्ट्रैक्ट साइन किया था?????"
"पर सुनील जी....यहां मुझे डायरेक्ट फिल्म में एण्ट्री मिल गयी है....और रुपये कितने मिले आप जान गये होंगे!!! फिल्म रिलीज होने से सप्ताह भर पूर्व ही दो गाने इन्सर्ट करने थे जिन्हें मैंने गाया...आपको तो प्रसन्न होना चाहिये कि यदि मैं आपके संग रहती तो कहीं अन्धेरे में भटकती रहती...."
"व्हाट??" मन में ’यदि इसके सर पर राज का हाथ नहीं होता तो मैं इसे बताता ऐग्रिमेण्ट तोडने का अर्थ क्या होता है...’
जान पडता है सभा उसके मन की बात जान गयी...बोली -"वैसे, कोर्ट भी....लिखित ऐग्रिमेण्ट होने पर भी किसी के शोषण की अनुमति नहीं देता है...और न ही किसी की प्रगति में बाधा डालनेवाले ऐग्रिमेण्ट को स्वीकार्य मानता है....."
सुनील फोन रख देता है। पर उसका हृदय जला हुआ है....उसने एक अन्य नयी गायिका को ले एक एल्बम रिलीज किया...पर कठिनाइ से वह मात्र लगायी पूंजी जितना ही धन अर्जित कर पाया उससे....जैसे-जैसे वह राज म्यूजिक की उन्नति होता देखता, वैसे-वैसे उसके हृदय में पीडा बढती जाती -"यदि सभा मेरे संग होती तो आज सुनील म्यूजिक इस ऊंचाइ को पा रहा होता....उसने कुछ प्लान बनाया....
१० सभा बौलिवुड के प्रसिद्ध गीतकार और कथा-लेखक राघवेन्द्र कश्यप से प्रेरणा ले स्वयम् गीत लिखने का अभ्यास करती है....एक अच्छा-सा गीत लिख उसे राघवेन्द्र को दिखाती है....राघवेन्द्र उसकी प्रशंसा करते हैं....राज को भी यह गीत प्रिय जान पडता है....वह उसे संगीत देता है....तब सभा उसे बहुत ही मधुर गाती है.....राज ऐसे-ऐसे आठ-दस गीतों का संग्रह कर एक एल्बम बनाने की बात कहता है....तभी एक फोन आता है - ”मैं प्रिया म्यूजिक से बोल रहा हूं....अभी-अभी हमें ज्ञात हुआ है कि एक गीत ’आंखों में आधी रात है...’ जो हमने चार-पांच दिन पूर्व ही रजिष्टर्ड करा लिया था, तथा कल उसे संगीत में ढाल हमारी गायिका प्रिया ने उसे स्वर भी दिया....उसे उसी संगीत के संग आपने आज अपनी गायिका सभा से गवाया है?????"
"क्या बोल रहे!!! वह सभा जी की मौलिक रचना है....और उसकी धुन भी मैंने कल पूर्ण की है....!!!"
"वह तो कल शाम ही हमने टीवी पर प्रस्तुत करने भेज दिया है जिसका प्रूफ भी हमारे संग है...."
"क्या प्रूफ है तुम्हारे संग??? अपने गाने की रिकार्डिंग आदि हमें ईमेल करो...."
"पांच मिनट प्रतीक्षा करो...”
ईमेल आता है जिसकी फाइल में किसी और के स्वर में यही गाना इसी धुन के संग गाया हुआ मिलता है... राज आश्चर्यचकित रह जाता है....सभा भी मूक देखती रह जाती है.... चोरी हुई...पर कैसे हुई!!! किसने विश्वासघात किया!!!
दोनों पुनः साहस करते हैं...सभा नया गीत लिखने बैठती है....राज को एक नयी फिल्म में संगीत देने का औफर मिला है....सभा ने बहुत लगन से इस फिल्म के लिये दो गीत लिख अपनी गीतों का भावार्थ राज को समझा दिया है...राज तीन-चार दिन लगा बहुत परिश्रम से अभी द्वितीय गाने को भी संगीत में ढाल आराम कर रहा है....विचारता है कि अभी दो-तीन दिन पश्चात् अन्य तीन गानों को भी मधुर संगीत दे देगा....रिकार्डिंग रूम बन्द है...कोई इन्ष्ट्रूमेण्टलिष्ट भी आज नहीं आयेगा....पर अपनी गायिका सभा तो आ ही सकती है.....राज ने टीवी औन किया....न्यू रिलीज में नये गाने आ रहे थे....अच्छा संगीत है....पर यह क्या!! अभी चार दिन पूर्व जिस गाने को उसने सुरों में ढाल संगीत से सजाया था वह इस शुक्रवार को रिलीज होनेवाली एक नयी फिल्म के गाने के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा था.... कितना धन व्यय हुआ था इस गाने के निर्माण में, और इसे कोई फ्री में ही उडा ले गया....द्वितीय गीत जो उसने संगीतबद्ध किया है वह भी निश्चय ही हाथ से जा चुका होगा!!! कुछ समय वह हताश लेटा रहा....तत्पश्चात् सभा व अन्य इन्ष्ट्रूमेण्टलिष्टों को यह बताता है -"ऐसा कैसे हुआ?????" सभी की बोलती बन्द थी....सभा आदि सभी वहां पहुंचते हैं....राज उन सबको टीवी की वह रिकार्डिंग दिखाता है.....सब चकित हैं....कार्यक्रम आगे बढता है....आनेवाले ऐल्बमों के गीतों की आरम्भिक पंक्तियां दिखायी जा रही हैं...."अरे...ये क्या!!! ये तो वो गाना है जिसे मैंने अभी परसों लिखा है और इसे मैं अभी राघवेन्द्र सर को दिखाने को विचार कर रही थी...!!!" सभा चिल्लायी...
१० सभा राघवेन्द्र से बात करती है....सारी बात बताती है...."सर...मुझे तो लगता है कोई एक ही दुश्मन राज और मुझे दोनों को हानि पहुंचाने पर उतारु है...."
"सुरक्षा के कुछ उपाय बता रहा हूं....लम्बे समय पर्यन्त मुझे ऐसी समस्यायों से संघर्ष करना पडा है....तुम मिलो तो मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूं...”
सभा उनसे मिलने जाती है....राघवेन्द्र -"ये मोबाइल फोन और इण्टरनेट कनेक्शन दो ऐसे माध्यम हैं जिनसे होकर ये सारी जानकारियां लीक हो अन्यों के हाथ में पहुंच जाती हैं....यदि अपने मध्य ही कोई विश्वासघाती न हो तो....”
"फोन और इण्टरनेट!! कैसे???"
"फोन चाहे मोबाइल हो या लैण्ड्लाइन...दोनों ही से सीनियर एग्जिक्यूटिव्स आदि फोन के चारों ओर एक निश्चित दूरी पर्यन्त सीमा में हो रही सारी वार्ताओं व ध्वनियों को सुनते व रिकार्ड करते भी रह सकते हैं....मेरी जानकारी में तीन-चार मोबाइल कम्पनियों में ये सीनियर एग्जिक्यूटिव्स इतने दुष्ट प्रतीत हुए हैं कि जब चाहो तुम्हारे मोबाइल के टाक बैलेन्स से कितना भी रुपया काट लें... तत्पश्चात् कोई सुनने वाला नहीं...और तो और जानने में ऐसा आया है कि ये जिसे चाहे उस फीमेल एगजिक्यूट्व्स का फियरलेस्ली रेप करते हैं, और वहां भी कोई सुननेवाला नहीं....!!!! एक बार एक अभिनेत्री वेब्साइट्स सर्फ करते-करते पौर्न वेब्साइट्स पर चली गयी.... इण्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर ने यह देखा और उस अभिनेत्री के सौतेले अभिनेता भाई को सूचित कर दिया....भाई ने पिताश्री को सूचित किया प्रेरणा देते हुए....पिताश्री ने पुत्री को.... तत्पश्चात् सौतेले भाइयों ने भी.... ऐसा है कि जब पौर्न वेब्साइट्स तुम देख रहे हो तो समझ लो कि तुम्हारा माइण्ड इतना करप्ट हो चुका है कि तुम अब पुत्री, पुत्र, भाई, स्वसा, मां, पिता किसी के भी संग विना हिचकिचाहट के सम्भोग कर सकते....करते ही जाते...तृप्ति नहीं मिलती ऐसी प्यास जग जाती है....इससे आत्मा का - मानव का सर्वनाश बहुत निकट आता चला जाता है.... पौर्न वेब्साइट्स का ऐसा विनाशकारी प्रभाव है... सोचो...इन मोबाइल और इण्टरनेट सर्विस के एग्जिक्यूटिव्स और औफिसर्स को किसी भी उपभोक्ता के निजी जीवन में अवैध प्रवेश की छूट नागरिक और समाज दोनों के लिये कितनी हानिकारक है!!!! इसलिये अपने लिखे गीत आदि को फोन या इण्टरनेट के औन रहते न तो गुनगुनाओ, न किसी को सुनाओ, और न ही कम्प्यूटर में या फोन मेमोरी में कहीं रखो...क्योंकि वहां से भी शेयर्ड नेट्वर्क से चोरी से कौपी कर लिये जाते हैं....”
"पर...इतने...लाखों कष्टमरों को कुछ कर्मचारी कैसे इन माध्यमों से देखते-सुनते रह सकते हैं????"
"राइट...सबको नहीं...पर जिनके पीछे पडने का उन्हें निर्देश मिला हो...या जिस किसी की निजी बातों को सुनने-जानने का उनका मन बन जाये..."
"समझी...ऐसे ही हमारा सारा गीत-संगीत अन्यों के हाथों में पहुंचा है.....!!!! तो क्या अब सावधानी से अपने फोन्स और कम्प्यूटर्स को बन्द रखने पर सब सुरक्षित रहेगा???"
"वहां उपस्थित सभी के फोन्स औफ होने चाहिये...साथ ही यह भी चेक करवा लो कि कहीं कोई माइक्रोफोन तो नहीं लगा है..... एक बात और...नयी रचना या म्यूजिक कम्पोजिशन को सर्वप्रथम रजिष्टर्ड या कौपिराइटेड आदि किसी विश्वसनीय रूप में सुरक्षित करवा लो, तत्पश्चात् ही कहीं उसे ईमेल करो या भिजवाओ...."
"आह....अब सुरक्षा की आशा जगी है....इतनी लाभदायक जानकारी के लिये मैं किस प्रकार से आपको धन्यवाद दूं....."
"सभी किसी-किसी से लाभ पाते ही रहते हैं...."
११ राज राघवेन्द्र से हुई बात सभा से जान बहुत प्रसन्न होता है...उसे भी लगता है कि अब वह सुरक्षित है...वह स्वयम् भी राघवेन्द्र से बातकर उनको धन्यवाद देता है....सभी फोन्स और इण्टर्नेट आदि बन्द रखते हुए सुरक्षित रूप से उन दोनों गानों को पुनः संगीत में ढाल सारी टीम बहुत प्रसन्न है कि इसके लीक होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.....राज आज अपनी जीत सेलिब्रेट करने सारी टीम के संग निकटवर्ती द्वीप पर जाता है.....पिकनिक मनाते हैं, गाना गाते हैं...शाम होने को है और अब सभी लौटने को उद्यत हैं.....तभी एक व्यक्ति बोट तीव्र गति से चलाता आता है जिससे छींटें पडती हैं सभी और राज दोनों को....वह कोई और नहीं, समर है...समर उनके समीप आता है और इन छींटों के लिये सौरी कहता है... राज - "इट्स औल राइट"
"और आपसे भी मैं क्षमाप्रार्थी हूं....यदि मैं भूल नहीं कर रहा तो आप प्रसिद्ध गायिका सभा हैं!!!"
"सभा जी, बधाई हो....आपके गाने इतने सुमधुर कि आह...मैं क्या बताऊं.....एक पर एक हिट होते जा रहे हैं...."
"आप कौन?"
"सभा जी, मेरी यह शुभ कामना है कि आप भारत की नम्बर वन गायिका बनने का भी सौभाग्य प्राप्त कर पायें...मैं आपका एक साधारण-सा फैन बोल रहा हूं...."
"आपने गायन में अभी क्या स्थिति प्राप्त कर ली है....?"
"गायन ! और मैं ! मैं तो केवल वैसे ही गुनगुना लेता हूं...."
"तो आप किस क्षेत्र में काम करते हैं?"
"मुझे तो कोई कला नहीं आती...मैं अनेम्प्लौय्ड हूं.....कहीं कोई अच्छा-सा जौब मिल जाये..."
"यदि तुम्हें गाने, लिखने, अभिनय, आदि की कोई कला अच्छे-से आई होती, और तुम बौलिवुड में अवसर पाने के अन्वेष में मुझसे सम्पर्क करते, तो यथासम्भव मैं तुम्हारी सहायता कर सकती थी...क्योंकि प्रतिभाशाली लोग गिनती के ही होते हैं....पर तुम तो लाखों करोडों साधारण लोगों में से एक के रूप में मुझसे बात कर रहे हो....यदि इसी प्रकार तुम्हारे जैसे ही अन्य करोडों लोग मुझे फोन करने लग जायें तो मेरा क्या होगा????? इस साधारण अवस्था में रहते मुझे या किसी और कलाकार को भी फोन करने का साहस नहीं करना....फोन रख दो..." समर रिसीवर रख देता है.....मिनट दो मिनट शान्त खडा रहता है...तत्पश्चात् फोनकौल के रुपये दे वहां से चला जाता है....
७ एक व्यक्ति लम्बे-लम्बे पग बढाते रोड्पर चला जा रहा है.....उसके संग एक छोटा-सा बैग्कन्धे से लटक रहा है...अभिजानने की मुद्रा बनाते वह एक अपार्ट्मेण्ट्में घुसता है....लिफ्ट्में घुस तृतीय तल पर जाता है....एक-एक द्वार से होते हुए वह एक किनारे के द्वार पर रुकता है.....इस फ्लैट्का द्वार अन्य आते-जाते लोगों की दृष्टि से छिपा-सा है, जिसे देख वह व्यक्ति प्रसन्नता से ’ओ...माइ लक्...’ बुदबुदाता है....वह जानता है कि अभी अन्दर कोई नहीं है.....सावधानी से पर शीघ्रता से वह उस द्वार की चाभी बना अन्दर घुसता है....इधर-उधर निरीक्षण कर वह बाहर आ द्वार लौक कर वहां से चला जाता है....पुनः रात आठ बजे वह वहां आ द्वार खोल अन्दर लाइट जलाता है....प्रकाश में उसका मुख दिखता है....अरे ये तो कोई और नहीं, समर ही है....वह पुनः द्वार अन्दर से लौक कर लाइट बुझा पलंग के नीचे घुस जाता है....कोई आधे घण्टे पश्चात् सभा द्वार अन्लौक कर अन्दर प्रवेश करती है....यह गायिका सभा पटेल का ही आवास है....वह डिनर कर ही आ रही थी....थकी...एसी चला सैण्डल उतार वह आराम से वैसे ही पलंग पर लेट जाती है.....लाइट जल रही है....वह आराम का मात्र आलिंगन करना चाह रही थी पर उसकी आंखों ने यह दिखाया कि वह आराम में डूबती जा रही थी....जब समर को यह विश्वास हो गया कि वह सो गयी है तो वह पलंग के नीचे से बाहर निकला.....उसने विना विलम्ब किये अचेत करने वाली औषधि क्लोरोफार्म सभा को सुंघायी....अब सभा प्रायः अचेत हो चुकी थी....समर ने बडे आराम से सभा को कुछ प्यार किया....तत्पश्चात् संग उसके सम्भोग करना आरम्भ किया, विचारा - ’कण्डोम लगा ही लूं....इसके शरीर में मेरे वीर्य का अभिज्ञान भविष्य में कभी भी न हो पाये....’ कुछ मिनट सम्भोग कर तत्पश्चात् उठा, सभा के पर्स को टटोला....उसमें आज उसे मिले एक सहस्र रुपयों के सौ नोटों की एक गड्डी मिली....उसे उसने अपने पौकिट में डाला...सभा के शरीर के वस्त्रों को पूर्ववत् ही कर, अन्य भी परिवर्तित स्थितियों को पूर्ववत् कर आराम-आराम से द्वार से बाहर निकल उसे लौक कर, आंखों पर काला चश्मा चढा, लिफ्ट से उतर वाच्मैन के समीप से ही आराम से निकल चला गया...अभी रात के नौ बजने वाले थे पर चहल-पहल अभी भी बनी थी इसलिये वाच्मैन ने उसपर विशेष ध्यान नहीं दिया....
८ सभा की जब नीन्द टूटी तब रात के कोई ढाई बज रहे थे....वह चिन्तित हुई...उसने पर्स से रुपये निकाल अल्मीरा में रख देने को सोचा....पर यह क्या!!! पर्स में तो कोई गड्डी नहीं थी....सबकुछ वैसा ही था पर वह लुट चुकी थी....उसने तुरत राज अपने म्यूजिक डायरेक्टर को फोन किया - "मुझे भलीभांति स्मरण है कि वह एक लाख रुपये की गड्डी मेरे पर्स में थी जब मैं निज फ्लैट में प्रवेश की थी....मेरे सोये में ही यह चोरी हुई जबकि कहीं किसी के अन्दर आने का कोई चिह्न नहीं दिख रहा...."
"किसी ने तुम्हारे फ्लैट की डुप्लिकेट चाभी बना अन्दर प्रवेश कर वे रुपये उडा लिये....अभी भी हम तालों के सम्बन्ध में तो उन्नीसवीं शताब्दी में ही जी रहे हैं....कहीं तुम्हारे संग तो कुछ नहीं किया?"
"कुछ लगता तो है पर मैं श्योर नहीं हूं...."
"अभी तीन बजने वाले हैं....तुम आठ - साढे आठ बजे पर्यन्त आ जाओ.... हमारा डौक्टर तुम्हारी वर्जिनिटि चेक कर लेगा...."
सभा का चेकप होता है तो उसकी वर्जिनिटि तो सिद्ध होती है पर विथ कण्डोम सेक्सुअल इण्टरकोर्स भी दिख रहा है...’किसने किया होगा!!! तब भी, थैंक गौड बच गयी..
....’"क्या मैं चोरी की कम्प्लेण्ट पुलिस को दूं..?"
"सभा, तुम मेरा कहना मानो और ऐसा कुछ न करो जिससे समस्या न्यून न होकर और बढ जाये....क्योंकि जिन-जिन प्रदेशों में मैं अभी तक रहा हूं वहां की घटनाओं से व कभी व्यक्तिगत अनुभव से भी मेरे अनुभव में ऐसा आया कि पुलिस तुम्हें कम्प्लेण्ट के नाम पर थाने बुला सकती है.... तू, तेरा बोलना, गाली भी देना, अन्दर कर देने की धमकी देना, मिथ्या आरोप में फंसा देना, कभी जान भी मार देते हैं लौकप में....मदिरा पीये हुए ये ऐसे डेंजरस वर्दी वाले अपराधी हो सकते हैं जिनके पीठ पर प्रशासन, शासन, पूरे संसार की पुलिस और शासन का हाथ रहता है....पुलिस और क्रिमिनल्स दोनों से निर्दोष और अच्छे लोगों को बहुत दूर रहना चाहिये....क्योंकि ये निर्दोष और सीधे लोगों के संग विना भय के दुर्व्यवहार या अन्याय कर सकते हैं, तथा धनवान् और पावरफुल लोगों को सैल्यूट मारते हैं चाहे वे कितने भी दुष्ट हों...अपराधियों के संग इनकी सांठ-गांठ हो सकती है....इसलिये तुम मेरा कहना मानो...तुम्हारे एक लाख के स्थान पर तुम्हें मैं न्यूनतम दस लाख की आय तुरत करवा देता हूं...केवल मैं यह इच्छता कि तुम्हारा मन प्रसन्न रहे....कोई चिन्ता तुम्हारे मन में न रहे....और तुम मधुर से मधुर स्वर में गाते रहो.... तुम फ्लैट के अन्दर सिटकिनी लगाना न भूलो....और मैं केवल विशेष लेसर बीम से ही खुलने वाले लौक्स के सम्बन्ध में जानकारी लेता हूं....."
९ सभा ने एक मास की इस लघु अवधि में ही कोई आठ-नौ हिट गाने गा निज के केयरियर के संग-संग राज की म्यूजिक कम्पनी को भी उन्नति के मार्ग पर आगे बढा दिया था....पर.... पर राज की इस उन्नति पर किसी की दृष्टि टेंढी हो गयी थी....वह है --- एक व्यक्ति खडा पीछे से आगे की ओर मुडता स्क्रीन पर उभरता है....कहता है---"जिसपर मेरी दृष्टि टेढी हो जाये.....करा दूं उसकी हाय हाय... नाम है मेरा.....सुनील उपाध्याय....." वह निज औफिस में बैठा सोच रहा है - ’सभा मेरे लिये गायेगी ऐसा निश्चित हो चुका था...पर रातों-रात राज ने उसे मुझसे छीन अपनी कम्पनी के संग कर लिया...यदि आज वह मेरी कम्पनी के संग होती तो मेरी कम्पनी नम्बर वन म्यूजिक कम्पनी बनने की ओर बढ चुकी होती....राज ने मेरी उन्नति छीनी है...मैं उसकी उन्नति छीन लूंगा....इयाह्...."
पर वास्तविकता यह है कि -(फ्लैश बैक) कहीं ब्रेक मिले इस अन्वेष में उसने कई म्यूजिक कम्पनियों और म्यूजिक डायरेक्टरों से उसने सम्पर्क किया था....अन्ततः उसने सुनील की म्यूजिक कम्पनी के लिये गाना स्वीकार कर लिया, और डौक्युमेण्ट्स भी साइन कर दिये.....अगले दिन प्रातःकाल उसे वहां गाने का रिहर्सल आदि आरम्भ कर देना था....पर....इस प्रातःकाल से पूर्व ही रात में राज की कम्पनी में एक फिल्म-विशेष के लिये ही गानों की रिकार्डिंग हो रही थी.....गायिका का स्वर राज को गाने के उपयुक्त नहीं लग रहा था....उसने नयी गायिकाओं के आवेदनों को परखना आरम्भ किया....सभा का स्वर उसे बहुत मधुर और आकर्षक जान पडा....उसने उसका मोबाइल नम्बर डायल किया.....एक बार घण्टी बज-बजकर थक गयी....पुनः डायल किया...इस बार सभा की नीन्द टूट गयी....उसने कौल रिसीव किया....-"मिस सभा पटेल?"
"यस...स्पीकिंग..."
"मैं राज....राज म्यूजिक से.....हमने आपका मधुर गायन सुना, और अपनी नयी रिकार्डिंग के लिये आपको अवसर देने का विचार किया है....."
"पर मैंने आज ही सुनील म्यूजिक से कौन्ट्रैक्ट पेपर पर साइन किया है...अभी कुछ समय के लिये तो मुझे केवल उन्हीं के लिये गाना है....."
"ओ-ऽऽऽऽ.....पर....रुपये कितने मिलेंगे आपको वहां से?"
"अभी एक एल्बम में मुझे प्रायः फ्री गाना है...इसकी सफलता मेरा पारिश्रमिक निश्चित करेगी..."
"ऐसे तो आपका शोषण होगा....आपका स्वर इतना मधुर है कि आपको अभी से लाखों रुपये मिलने चाहिये, जो मेरी कम्पनी में सम्भव है...."
"पर....ये कौण्ट्रैक्ट जो साइन कर दिया है मैंने???"
सारा रौंग मैं करूंगा....उस शौप में अभी कुछ और घण्टों के लिये हीं कहीं और से उडाया हीरे का एक छोटा पीस रखा है....मुझे वह चाहिये....कोई एक करोड उसका मूल्य होगा....सुन रहा है?????" समर ’हूं’ कहता है....
"अब प्लान सुन...जैसे ही गार्ड रेष्टोरेण्ट की ओर बढेगा, हम शौप की ओर बढेंगे...मैं शौप के तीनों तालों को खोल अन्दर घुसुंगा...तू शटर गिरा कम्बल लपेट ऐसा लेट जायेगा कि आते-जाते लोगों को ताले खुले न दिखें.....जैसे ही मैं अन्दर से नौक करूं, तू प्रथम यह देखेगा कि किसी की दृष्टि शौप की ओर है या नहीं....तब शटर उठायेगा.....आज इस शौपिंग काम्प्लेक्स में केवल टी-ष्टाल और रेष्टोरेण्ट ही खुले हैं...."
योजनानुसार वैसा ही उन दोनों ने किया....कोई पन्द्रह-बीस मिनट अन्दर रह जौन सफलतापूर्वक हीरा ले बाहर निकला...पर शटर गिरा जैसे ही ताले लगाना चाहा कि समर ने कहा कि सामने से इस गली में कोई मुडा है, इधर ही आयेगा.....जौन का काम हो चुका था, इसलिये वह ताले शौप के अन्दर डाल शटर भूतल से सटा छोड समर संग दूसरी ओर से निकल जाता है....मार्ग में रेष्टोरेण्ट है.....देखता है कि गार्ड आराम से खा रहा है.....जौन रेषटोरेण्ट के कोने पर बैठ सिगरेट बेच रहे लडके से एक सिगरेट लेने को मुडता है....वह सिगरेट जला एक कश मारता है और गार्ड की ओर देखता है तो उसका हृदय धक्क से रह जाता है....गार्ड वहां बैठा नहीं था.....दोनों वहां से भाग निकलने को अभी सोचते ही हैं कि संकटकालीन सायरन बजता है....दोनों के पांव आगे की ओर बढते हैं कि रेष्टोरेण्ट स्वामी बोलता है- "ये चोरी होने की सूचना देनेवाला सायरन बजा है....कोई भी अपने स्थान से हिलेगा भी नहीं....नहीं तो उसे ही चोर समझा जायेगा.....”
जौन को मिला स्वर्ग छिनता-सा लगा....दोनों ही अभी भौंचक्के खडे थे कि कोई पांच-दस मिनट पश्चात् उस शौप का गार्ड आया और बोला - "चोर ने शटर से ताले खोल हीरे का एक आभूषण चुरा लिया है.....केवल उसी का बौक्स खुला पडा है....चोर इस शौपिंग काम्प्लेक्स में ही है....आप सभी आराम खाना-पीना कर सकते हैं, पर यहां से बाहर आप तभी जा पायेंगे जब यहां इंच-इंच स्थान की छानबीन कर हीरे के आभूषण को पुनःप्राप्त कर लिया जाता है...इसमें घण्टों लग जा सकते हैं" गार्ड के ऐसी घोषणा से जौन की फंसी-फंसी सी सांस आराम से चलने लग गयी....दो-चार मिनट में पुनः चहल-पहल आरम्भ हो गयी.....जौन समर को वहीं रुकने को कह अन्दर की ओर जाता है....कोई आधे घण्टे पश्चात् वह लौट कर आया और बडे धीमे स्वर में निश्चिन्तता की सांस लेता समर से बोला -"समझ लो हमलोग अब राजा बन गये....हीरा किसी को मिल नहीं पायेगा और हमलोग आराम से बाहर निकल जायेंगे....आ कुछ खाया-पीया जाये...." दोनों ने निश्चिन्तता से खाना-पीना किया....पुलिस और वहां के कर्मचारियों ने चप्पा-चप्पा छान मारा, प्रत्येक व्यक्ति को पूरा सर्च किया, पर कहीं कुछ नहीं मिला...वे चिल्लाये- "चोर कोई भूत रहा होगा...चुराकर कहीं अदृश्य हो गया..." अन्ततः सबको वहां से जाने दिया गया.....पर जाने देते समय कुछ कर्मचारियों की दृष्टि जौन पर पडी और वे परस्पर परामर्श किये - ’यह व्यक्ति बहुत समय इधर बैठा नहीं दिखा है...’ "ए....चोरी होने से पहले और पश्चात् भी तू बहुत समय इधर बैठा नहीं दिखा है, जबकि अन्य सभी लोगों का कर्मचारियों ने अभिज्ञान कर लिया है कि ये इधर बैठे या घूमते दिखे हैं...कहां था उतने समय????"
"ये कर्मचारी न हो कोई आइंष्टीन हैं जिनकी स्मृति में सबकी छवि बन्धी हुई है....अरे एकाध व्यक्ति ध्यान से उतर गया भी तो हो सकता है!!!"
वाच्मैन - "अच्छा, हो सकता है ऐसा ही हो...पर हो सकता है ऐसा न भी हो....इसलिये तुम अब इधर इस शौपिंग काम्प्लेक्स में नहीं आओगे....प्रवेश प्रतिबन्ध....."
जौन तिरस्कारपूर्वक ’हूं’ कह कन्धे उचकाता वहां से निकल चला जाता है....
४ कोई आठ-नौ दिन बीत गये तो जौन ने समर को बुलाया - "तू आज जायेगा ज्वेलरी शौपिंग काम्प्लेक्स.....मेन गेट से घुसकर राइट से पांचवी गली में अन्दर घुसेगा....सबसे अन्तिम शौप का शटर तुझे गिरा मिलेगा, क्योंकि वे इस साइड का शटर गिरा ही रखते हैं....शटर के राइट साइड वाले ताले के समीप पहुंचते ही तेरे हाथों से फाइल गिर जायेगी और तू गिरे कागजों को उठाने अपने जूतों पर बैठ जायेगा....इस प्रकार कि तेरा मुख ठीक उस ताले के ऊपर होगा....तू विना विलम्ब किये अपने छोटे हैण्ड बैग से अपने उदर के समक्ष उस ताले को खोल उस ताले के सर्वांग समरूप इस ताले को निकाल वहां लगा देगा...यह काम आधे मिनट में हो जाना चाहिये....कोई तुझे ऐसा करते देख न पाये...और उस ताले को ले यहां तू यथाशीघ्र आ जा....." समर - "मैंने कहा था मैं कोई रौंग वर्क नहीं करूंगा..."
"अरे, वाच्मैन ने रोका नहीं होता तो मैं ही जाता....किसी को उसके पुराने ताले के स्थान पर कुछ नया-सा ताला देना कोई रौंग वर्क होता है क्या??? ये तो भलाई का काम है....जा फटाफट...." समर निर्देशानुसार सारा कुछ कर सफलतापूर्वक वह ताला ले लौट आता है....तब जौन द्वार की सिटकिनी चढाता है, आराम से बैठ ताले को उपकरणों से खोलता है...उसके हाथ की कुशलता ऐसी कि कोई विशेष ध्वनि भी नहीं होती ताले के अन्दर की बौडी खोल देने में....खोलते ही समर की आंखें फैल जाती हैं....हीरे का एक जगमगाता टुकडा अन्दर से निकला....
"समर, तू आगे की सुन....इस हीरे को बेचने मुझे बाहर जाना है.....कितने समय में लौटकर आउंगा यह अभी बता नहीं सकता....पर जब भी लौटकर आउंगा....तुझे कुल आय का पच्चीस प्रतिशत अवश्य दूंगा....पर तुझे यह बात किसी को भी नहीं बतानी है....समझ ले, ऐसी कोई बात हुई ही नहीं है....” समर हां में सर हिलाता है....सायंकाल पर्यन्त में जौन नगर से बाहर चला जाता है....
५ कितने ही दिन बीत गये, जौन की कोई सूचना नहीं.....समर एकाकी ही अब निज भविष्य बनाने की चिन्ता में बैठा है....टीवी पर बौलिवुड समाचार आ रहा है...एक नयी गायिका अपने प्रथम गीत से ही चारों ओर छा गयी है....सभी उसके मधुर स्वर की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा कर रहे हैं.....नाम है सभा.....सभा पटेल.....उसका इण्टरव्यू दिखाया जा रहा है...."आपको निज प्रथम गीत पर ही मिल रही इतनी प्रशंसा पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?"
"इससे मेरा उत्साह बहुत बढा है....यह मेरे सुखद भविष्य का सूचक है...."
"अपने पति या ब्वाय्फ्रेण्ड के सम्बन्ध में बतायें?"
"विवाह मेरा हुआ नहीं है....और ब्वाय्फ्रेण्ड मैंने कभी किसी को बनाया नहीं....मेरा पति ही मेरा ब्वाय्फ्रेण्ड होगा..."
"आपकी इस चौबीस वर्ष की अवस्था पर्यन्त में कभी किसी से कुछ भी रिलेशन तो रहा होगा?"
"नहीं....मेरा फर्ष्ट रिलेशन मेरे पति के संग ही बनेगा..."
"इतने आत्मविश्वास से बोलने का कारण?"
"इस सम्बन्ध में मैं अपना भविष्य जानती हूं....." वह मुस्कुरायी।
६ समर सभा की ओर बहुत आकर्षित हुआ - ’काश ये मेरी पत्नी बन जाये.....पर मेरी तो कोई ऐसी स्थिति ही नहीं है कि मेरा इससे विवाह सम्भव हो सके....’ कुछ दिन और बीते....सभी के एक पर एक हिट गाने आते गये....संयोग से एक समाचार में सभी का ऐड्रेस और फोन नम्बर लिखा उसे दिखता है....वह उससे बात करने का मन बनाता है....उसका पुराना मोबाइल फोन अच्छे-से काम नहीं कर रहा है....’नये मोबाइल का क्रय कर उससे सभा से बात करूंगा..’ ऐसा विचार कर कुछ रुपये ले एक शौप पर जाता है...."ये मोबाइल फोन कितने का है?..."
"जितना एम आर पी उसपर लिखा है..."
"अभी मेरे एक मित्र ने एक मल्टीमीडिया मोबाइल फोन का क्रय किया....एम आर पी लिखा था दस सहस्र रुपये....जबकि मिला केवल पांच सहस्र रुपये में....कोई पुराना नहीं...पूरा नया....उसका मार्केट रेट ही ऐसा है.....तुम तो उसे भी दस सहस्र में ही बेचते!!!....."
"हां..निःसन्देह.....सौ-दो सौ रुपये...या बहुत अनुरोध करने पर पांच सौ रुपये पर्यन्त भी छोड दे सकता हूं..."
"और बोलोगे, ये ही दो-चार सौ रुपये तो मिलेंगे मुझे इसे बेचने पर...यदि वह भी छोड दिया तो मुझे क्या मिलेगा???’
"ही ही ही....बुद्धिमान् हो...."
समर का मन अप्रसन्न हो गया....’देश में जिसे देखो वही एक-दूसरे को लूटने के प्रयास में लगा है.....पर लूटकर भी धन आदि सुरक्षित कहां रखेंगे!!! क्योंकि ताले अब भी उन्नीसवीं शताब्दी के चलते आ रहे हैं जिन्हें बहुत सरलता से कोई भी खोल अन्दर घुस इच्छापूर्वक अपने कार्य कर बाहर आ पुनः ताले वैसे ही लगा दे सकता है जैसे कि वह अन्दर घुसा नहीं था...हाय रे मानव-बुद्धि!!! कितनी की साइण्टिफिक उन्नति!!! कहां हैं तुम्हारे साइण्टिफिक ताले???? जिसे कोई और खोल न पाये?.......’
उसने पीसीओ से सभा को फोन करने को विचारा....नम्बर लगा....सभा ने रिसीव किया - "हलो..."
"
फिल्म बनाने के उद्देश्य से लिखा गया यह कथा-प्लौट काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है...
Locks - ताले रहस्य भरे
लेखक - राघवेन्द्र कश्यप
१ ताले ही ताले स्क्रीन पर दिख रहे हैं - चक्कर खाते.....मन्त्री निज कार्यालय में बैठा, क्रुद्ध स्वर में - "शीघ्र ज्ञात करो....यह कैसे हुआ??? किसका हाथ है इसके पीछे????" वह रिसीवर रखता है कि एक नेता अन्तः प्रवेश करता है - "ये क्या गडबड कर डाले? हाइकमान आपपर बहुत क्रुद्ध हैं....शाम चार बजे उनसे मिलने पहुंच जाइयेगा.... ...... ..... वैसे...आपने ऐसा किया क्यों, कुछ मुझे भी समझ नहीं आया....???" मन्त्री - "नेता विश्वास करो मुझपर....मैंने ठीक वैसी ही रिपोर्ट बनवायी थी जैसा हाइकमान ने मुझे निर्देश दिया था....पर रातों रात न जाने कैसे किसी ने उस रिपोर्ट में टैम्परिंग कर दी....!!!" नेता - "टाइप कौन किया था?" मन्त्री - "अरे किया तो यही अपना असिष्टेण्ट राजु था.....पर...वह भी आश्चर्यचकित है कि यह इस रिपोर्ट में इतना परिवर्तन कैसे हो गया!!!....कक्ष रात भर लौक रहा है....फाइल अल्मीरा में लौक थी....साला कैसे अक्षर सब....इतने सारे वाक्य कैसे परिवर्तित हो गये???? मेरी बुद्धि तो काम नहीं कर रही है.....नेता, तुम ही सोचो...मैं ऐसी मूर्खता का काम कर सकता हूं कि मन्त्रिपद से हाथ धोना पड जाये!!!!!!"
"तब ये काम राजु के बच्चे का ही है....लटका दो साले को शूली पर....विरोधी दल ने उसे लाखों रुपये अवश्य खिलाये हैं......"
"हूं.....ऐसा ही होता, यदि उसपर मेरा विश्वास इतना नहीं होता......वह मेरा पूरा विश्वासपात्र है.....गडबड कहीं और है.....क्या जाने रात में यहां कोइ जिन्न प्रकट हुआ होगा....मैंने रिपोर्ट बनावायी थी अपने दल के पक्ष में...पर लिखा मिला कि चुंकि मेरे दल के लोगों ने ही हिंसा का आरम्भ किया था इसलिये विरोधी दल के अर्ध मृत व घायल बीस सदस्यों को बीस-बीस लाख रुपयों की क्षतिपूर्ति दी जाये जिसमें आधा अपनी पार्टी और आधा शासन वहन करेगा....साथ ही पदारूढ दल के घायल पांच सदस्यों को भी एक-एक लाख रुपयों की सहायता दी जाये..."
"चलो, मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं...हाइकमान को भी मनाता हूं....पर कुछ तो अवश्य ही तुम्हें सुनना पडेगा....."
२ सनसनी - टीवी समाचार चैनलों पर यह घटना बहुत ही रोचक और रोमांचक रूप में प्रस्तुत की जा रही हैं....’नगर प्रशासन ने कल एक ही समय पदारूढ और विपक्षी दोनों ही दलों को विशाल मैदान में भाषण देने की अनुमति दे जो भूल की उसका परिणाम आपसी संघर्ष और चिकित्सकों की दौडा-भागी तक ही सीमित न रहा....न्यायालय ने त्वरित सुनवायी में दोनों ही दलों की ओर से रिपोर्ट मांगी थी....उस समय मैदान में उपस्थित मन्त्री ने अपनी पार्टी की ओर से जो रिपोर्ट सौंपी उसपर त्वरित कार्यवाही करते हुए न्यायालय ने विपक्षी पार्टी के अर्धमृत/घायल बीस सदस्यों को दस-दस लाख रुपयों की सहायता तुरत भिजवा दी तथा पदारूढ दल को तुरत दो करोड रुपये इन पीडितों को सौंपने का निर्देश भी दिया....पर चौंकने वाली बात यह है कि पदारूढ दल ने अपनी ही रिपोर्ट में दिये परामर्शों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट कल रात ११ बजे के लगभग निर्मित हो गयी थी पर पांच-छः घण्टे के अन्दर ही किसी ने इसमें परिवर्तन कर इसे विपक्षी दल के पक्ष में बना दिया...जिसके आधार पर न्यायालय ने दोनों ही दलों की रिपोर्टों को प्रायः समान मानते हुए दिये परामर्शों पर त्वरित कार्यवाही का आदेश दिया....चूंकि दोनों ही रिपोर्टें वैध रूप से सौंपी गयी थी जिनके आधार पर कार्यवाही भी की जा चुकी है यतः न्यायालय ने अब किसी प्रकार के परिवर्तन को अस्वीकार कर दिया.....परन्तु----यह बात सनसनी की रह जाती है कि रिपोर्ट परिवर्तित हुई....तो कैसे हुई!!!!!!!! स्पष्ट है कि किसी ने कार्यालय के द्वार का लौक खोला...तत्पश्चात्अल्मीरा का भी लौक खोल लिया....या तो उसने कम्प्यूटर का भी पास्वर्ड जान लिया था या अपने संग लाये छोटे लैप्टौप पर सारा कुछ परिवर्तन के संग टाइप किया....दो व्यक्ति रहे होंगे.....बडी सावधानी से कार्यालय में रखे उस पत्र-विशेष पर ही वह प्रिण्ट-आउट निकालता है....मूल प्रपत्र को इस नये प्रपत्र से स्थानान्तरित करते हुए बडी सावधानी से सबकुछ यथावत्रहने देते हुए वह वहां से निकल जाता है....ताले वैसे ही पडे हैं......कागज, टेबल, अल्मीरा सब वैसे ही हैं.....लगता सबकुछ सामान्य और यथापूर्व है, पर वास्तविकता में ऐसा ही नहीं है....चिन्ता की बात यह है कि यह घटना किसी भी आवास में भी घट सकती है....आज एक भी आवास सुरक्षित नहीं है....चोर को ताले की चाभी बनाना आना चाहिये - वह गेट, द्वार, अल्मीरा आदि सभी के तालों की चाभियां देखते-देखते बनाकर उन्हें खोल पुनः वैसे ही बन्द कर दे सकता है जैसे कहीं कुछ चोरी हुई ही नही हो....कहने को संसार ने बहुत साइण्टिफिक उन्नति कर ली है, पर ताले अभी भी पुराने प्रकार के ही लग रहे हैं जिनकी चाभियां बना लेना या बनवा लेना बहुत ही सरल है....तीन अंकों वाला डिजिटल लौक मार्केट में आया, पर वह भी सफल नहीं रहा क्योंकि कुछ ही समय में सम्भव सभी अंकों का प्रयास कर ऐसे ताले खोल लिये जा सकते हैं....अब इलेक्ट्रोनिक लेसर बीम वाले लौक्स की आवश्यकता है जिससे चोरी इतनी सरल नहीं रह जायेगी.....कहने को ही ऐसे प्रोडक्ट्स हैं मार्केट में, पर व्यवहार में कितने आवासों में ऐसे लौक्स का प्रयोग हो पा रहा है!!!.....
३ जौन ने सारा समाचार बडी उत्सुकता से सुना....उसकी आंखों में एक विचित्र-सी ज्योति थी....उसने मोबाइल पर एक नम्बर डायल किया....."समर....क्या कर रहा है अभी...तुझे जौब का अन्वेष था हां.....आजा...तेरे लिये एक अच्छा जौब मुझे मिला है....लाखों मिल सकते हैं तुझे...हां सच में....आ मिल बैठ विस्तार से बातें करते हैं...."
"आ गया जौन.....बता ये कैसा जौब है जिसमें लाखों मिल सकते हैं!!!....पर एक बात तुझे स्पष्ट कर दूं कोई रौंग वर्क मैं करूंगा नहीं....."
"अरे तू तो विना सुने ही बोलना आरम्भ कर दिया.....बैठ तुझे समझाता हूं....बहुत हो गया धन के लिये तरसना...अब मुझे मिल गया है मार्ग - धनी...समृद्ध बन जाने का....केवल एक विश्वसनीय सहायक की आवश्यकता है....जिस पद पर मैंने तेरी नियुक्ति कर दी है...तू आजा कल से ड्यूटी पर...."
"अरे आण्टी, कहीं इसका माइण्ड बिगड तो नहीं गया!!!"
"मुझे भी ऐसा ही कुछ कह रहा था...देख तो ले, कैसा प्लान इसके माइण्ड में उभरा है..."
"समर, तू दुविधा में न पड....कल प्रातः आठ बजे ही यहां आजा...हमलोग साथ चलेंगे.....अभी तो तू जा, आराम कर..."
समर चुप रहा, चलो, देखुं सच में कुछ लाभ होता है या नहीं....प्रातः आठ बजे वह उपस्थित था जौन के समक्ष....जौन की आंखों में प्रसन्नता उभरी - "तुम्हारी सिन्सियरिटी को देखकर अपना सक्सेस श्योर जान पडता है.....चलो...." दोनों निकल पडते हैं....
जौन की बाइक एक चाभी बनानेवाले के समीप रुकी...उसने एक ताला निकाल उसकी चाभी बनाने को कहा और सारी प्रक्रिया की हैण्डीकैम से रिकार्डिंग करने लगा....चाभी बनानेवाले से बात ही बात में उसने सारी विद्या सीखी-समझी, और पर्याप्त रुपये दे उसने उसकी प्लेन चाभियां आदि सारे उपकरण पर्याप्त रुपये दे क्रीत कर ली....बाइक का बौक्स और समर के हाथ दोनों ही इन वस्तुओं से भरे पडे थे....आवास पहुंच जौन उसे अपने कक्ष में ले जा अन्दर से सिटकिनी लगाता है और आराम से विस्तर पर प्रसर जाता है....समर इन वस्तुओं को एक ओर रख सोफे पर बैठता है - "ये तुम क्या करने जा रहे हो???"
"अरे, चाभी बनाने का धन्धा आरम्भ करना है.....तू ग्राहक पकड कर लायेगा....दस रुपये की एक चाभी...चार रुपये उससे तुझे मिलेंगे....समझा क्या...."
"ए....तूने मुझे समझ क्या लिया है....जानता है मेरी एडुकेशनल क्वालिफिकेशन क्या है....तू इतना लो ग्रेड निकलेगा इसका मुझे अनुमान न था...." समर उठ अप्रसन्नता से जाने लगता है....
"अरे रुक...ये तो मैं हंसी कर रहा था....ऐसे क्या कभी लाखों रुपये मिल पायेंगे....आज तुम्हारी ड्यूटी पूरी...ध्यान रहे, इन सब बातों की किसी को कुछ भी जानकारी न मिलने पाये... कल पुनः इसी समय यहां आ जाना....हां???"
समर हां में सर हिला चला गया। अगले दिन जौन समर को संग ले ज्वेलरी मार्केट जाता है....मार्केट - शौपिंग कौम्प्लेक्स आज किसी कारणवश क्लोज्ड है....वहां की एक विशेष ज्वेलरी शौप के आगे से गुजरते हुए जौन समर को बताता है - "अभी साढे आठ बजे हैं....इस शौप का गार्ड प्रायः नौ बजे सामनेवाले टी-ष्टाल पर चाय-बिस्कुट के लिये जाता है....वहां वह कोई बीस-तीस मिनट पर्यन्त समय चाय, बिस्कुट, और समाचारपत्र में बीताता है, पर कभी-कभार अपने शौप की ओर भी देख लेता है....इसी अन्तराल में मुझे इस शौप के तीनों तालों की चाभियां द्रुत गति से बनानी हैं.....तुझे क्या करना है कि उसी टी-ष्टाल पर बैठ उससे कुछ आश्चर्यजनक बातें कर उसे वहां कुछ और समय रोकने का प्रयास करना है....इतनी बुद्धि तो तेरे संग है ही....बहुत पढा-लिखा जो है....."
"मैंने तुमसे स्पष्ट कहा था कि मैं कोई रौंग वर्क नहीं करूंगा..."
"तुम्हें कोई रौंग वर्क नहीं करना है....जो भी रौंग है वह मैं करूंगा....तू केवल राइट-राइट किया कर....अरे...ये किसी से प्यारी-प्यारी बातें करना क्या कोई रौंग वर्क होता है????"
समर नहीं में सर हिलाता है....
"तब चल, और कर जैसा-जैसा मैं कहता हूं...."
जैसे ही गार्ड टी-ष्टाल की ओर चलना आरम्भ करता है जौन एक कम्बल लपेटे शौप के शटर के नीचे ऐसे लेट जाता है कि दोनों-तीनों ताले उसके कम्बल से ढंक जाते हैं....इधर टी-ष्टाल पहुंचकर जैसे ही गार्ड अपने शौप की ओर देखता है, ’ऐ’ चिल्लाता वह दौडा-दौडा लौटता है, और धकेलकर पुनः पैर से ठोकर मार उसे उठाने का प्रयास करता है....पर कम्बल के अन्दर घुसा जौन उठने का नाम ही नहीं लेता है...."अच्छा, अभी आता हूं चाय पीकर, तब देखता हूं तुझे..." ऐसा कह गार्ड पुनः टी-ष्टाल को चला जाता है.....अब जौन सर कम्बल के अन्दर ही रख फटाफट एक ताले की चाभी बनाने लगता है...बनाकर निकटस्थ दूसरे की बनाता है.....तृतीय ताले की चाभी बनाने को वह उलटकर लेट जाता है....वह सफलतापूर्वक इसकी चाभी भी बना लेता है इसके पूर्व कि समाचारों व समर संग गप्प में उलझा गार्ड लौट आये.....तत्पश्चात्कम्बल लपेटा जौन वहां से निकल चुका था.....समर के मोबाइल की घण्टी बजी - "समर, फटाफट मेरे आवास पहुंच जा..." जौन बोला....
समर जौन के आवास पहुंचता है....जौन निज कक्ष में तीनों चाभियां एक रिंग में डाल उंगली पर घुमाता लम्बा मुस्कुरा रहा है।
"इन चाभियों से क्या करोगे?" समर बैठता हुआ पूछा....
"अभी गार्ड डेढ बजे लंच खाने रेष्टोरेण्ट में जायेगा....कोई आधा घण्टे से चालीस मिनट तक का समय वह वहां बीता सकता है....इसी मध्य हमें सारा काम पूरा कर वहां से निकल जाना है..."
"क्या....कौन-सा काम कर निकल जाना है!......"
"घबडा मत...तू केवल राइट-राइट क